Bhagwat UP Visit: आज काशी आएंगे RSS प्रमुख मोहन भागवत, ये है पूरे पांच दिन का प्लान; 22 को मुंबई होंगे रवाना
पीठाधीश्वर ने बताया कि संघ प्रमुख का सिद्धपीठ में रात्रि प्रवास का मूल उद्देश्य यहां सिद्धिदात्री मां वृद्धिका से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करना है। 800 वर्ष पुरानी है सिद्धपीठ हथियाराम मठ की परंपरा महंत भवानी नंदन यति महाराज ने बताया कि देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में हथियाराम मठ भी है। साकार ब्रह्म के उपासक शैव समुदाय के हथियाराम मठ की परंपरा 800 वर्ष प्राचीन है।
By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Tue, 18 Jul 2023 05:30 AM (IST)
वाराणसी, जागरण संवाददाता। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत मंगलवार देर रात रेल मार्ग से काशी आएंगे। विश्व संवाद केंद्र में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन 19 जुलाई को सिद्धपीठ हथियाराम मठ में सिद्धिदात्री मां वृद्धिका का दर्शन-पूजन करेंगे। पूजन काशी के ब्राह्मण कराएंगे। वह मठ में ही रात्रि प्रवास भी करेंगे। अगले दिन 20 जुलाई को वह मीरजापुर के सक्तेशगढ़ स्थित स्वामी अड़गड़ानंद आश्रम और वहां से विंध्याचल स्थित देवरहा हंस बाबा आश्रम जाएंगे। रात्रि विश्राम कर 21 जुलाई की सुबह वाराणसी लौटेंगे।
सम्मेलन में 25 देशों के 450 से ज्यादा मंदिरों के पदाधिकारी शामिल होंगेकाशी में वह संघ की धन्धानेश्वर महादेव शाखा में शामिल होंगे। शाम को श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में दर्शन-पूजन कर अगले दिन 22 जुलाई को रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में आयोजित टेंपल कनेक्ट की ओर से आयोजित विश्व के मंदिरों के सम्मेलन इंटरनेशनल टेंपल्स कन्वेंशन एंड एक्सपो का उद्घाटन करेंगे। 22 से 24 जुलाई तक होने जा रहे इस सम्मेलन में 25 देशों के 450 से ज्यादा मंदिरों के पदाधिकारी शामिल होंगे। हिंदुओं के अलावा सिख, जैन, बौद्ध धर्म के मठों, गुरुद्वारों के पदाधिकारी भी आएंगे। भागवत 22 जुलाई को ही शाम को मुंबई रवाना हो जाएंगे।
800 वर्ष पुरानी है सिद्धपीठ हथियाराम मठ की परंपरायह जानकारी सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर महंत भवानी नंदन यति महाराज ने सोमवार को पत्रकार वार्ता में दी। पीठाधीश्वर ने बताया कि संघ प्रमुख का सिद्धपीठ में रात्रि प्रवास का मूल उद्देश्य यहां सिद्धिदात्री मां वृद्धिका से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करना है। 800 वर्ष पुरानी है सिद्धपीठ हथियाराम मठ की परंपरा महंत भवानी नंदन यति महाराज ने बताया कि देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में हथियाराम मठ भी है। साकार ब्रह्म के उपासक शैव समुदाय के हथियाराम मठ की परंपरा 800 वर्ष प्राचीन है।
तप से मानव कल्याणइसका प्रमाण जनश्रुतियों व प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों में मिलता है। यहां की गद्दी परंपरा दत्तात्रेय व शंकराचार्य से प्रारंभ होती है। 800 वर्ष पूर्व जंगल में बेसो नदी के तट पर गुरुजन ने तपस्या की। पूर्व में मां की मूर्ति को मिट्टी के कच्चे चबूतरे पर स्थापित कर जनकल्याण के लिए पूजन-अर्चन करना शुरू किया। इनके तप से मानव कल्याण के लिए आज भी सिद्धपीठ में कच्चे चबूतरे में मां वृद्धिका मौजूद हैं, जहां अखंड ज्योति जलाई जाती है। लोकमान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मां के दर्शन-पूजन करता है, वह खाली हाथ वापस नहीं जाता।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।