बलिदानी सुखदेव थापर प्रत्यक्ष रूप से सांडर्स की हत्या से संबंधित नहीं थे, फिर भी उन्हें फांसी दे दी गई थी
देश के अमर क्रांतिगान में शामिल बलिदानी सुखदेव थापर कभी भी प्रत्यक्ष रूप से सांडर्स की हत्या में शामिल नहीं थे और उस केस से वह संबंधित भी नहीं थे। इसके बाद भी अंग्रेजों ने उनको फांसी दे दी थी।
By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Sun, 15 May 2022 10:19 AM (IST)
बलिदानी सुखदेव थापर प्रत्यक्ष रूप से सांडर्स की हत्या से संबंधित नहीं थे, फिर भी क्रांतिकारी दल के संगठनकर्ता होने के नाते उन्हें फांसी दे दी गई थी। आज (15 मई) सुखदेव की जन्मजयंती पर प्रस्तळ्त है बोस्र्टल जेल, लाहौर से ताऊ श्री चिंताराम थापर के नाम उनका लिखा यह पत्र...
बोस्र्टल, लाहौरमान्य ताया जी,
दो पत्र पहले लिख चुका हूं। कोई उत्तर नहीं मिला।मैं सुन रहा हूं कि मेरे कारण आपको बहुत कुछ मानसिक कष्ट उठाना पड़ रहा है। इसके पूर्व भी इस ख्याल से आपको पत्र द्वारा कहने की चेष्टा की है। अब फिर वही कह रहा हूं।
मैं जानता हूं कि आपको मेरे स्वभाव के कारण बहुत चिंतित रहना पड़ता है और मैं यह भी चाहता हूं कि आपकी यह चिंता किसी प्रकार दूर हो जाए। खासकर इन दिनों में, जबकि आपके लिए दूसरे कष्ट काफी इकट्ठे हो रहे हैं। परंतु एक बात मैं आपसे साफ-साफ कहना चाहता हूं। मुझसे कोई बात सिर्फ इसीलिए कि उससे दूसरे खुश होंगे, नहीं हो सकती। दाढ़ी की ही बात लीजिए। भला इससे आपको इतना दुखी होने की क्या आवश्यकता थी? जैसे दाढ़ी-मूंछ कटाना एक फैशन है, वैसे ही दाढ़ी रखना भी तो एक फैशन ही है। अब क्या किसी व्यक्ति को इस बारे में भी माता-पिता द्वारा इतना बाध्य होना पड़ेगा और उसे सिर, दाढ़ी और मूंछ के बाल अपने माता-पिता की इच्छा पर ही रखाने या कटाने चाहिए? तो क्या वह लोग जो दाढ़ी इत्यादि धर्म अथवा मां-बाप की खातिर या रूढ़ि को कायम रखने की खातिर रखाते हैं, ऐसा करने वाले जस्टिफाई हुए?
मैं नहीं समझता कि आप जैसे स्वतंत्र विचार रखने वाला पुरुष क्यों अपने पुत्र से ऐसी आशा करता है कि वह मामूली-मामूली बात या काम करने में इस बात का विचार रखे कि उसके द्वारा वैसा करने से उसके पिता तो बुरा नहीं मानेंगे! और वह आदमी स्वतंत्र विचारों वाला कैसे हो सकता है जो दूसरे व्यक्ति को उसके अपनी इच्छानुसार करने पर बुरा समझे जबकि वह बात कोई ऐसी नहीं है जिसे बुरी दृष्टि से देखा ही जाना चाहिए।
हां, एक बात और है, शायद आपका यह विचार होता होगा कि इससे मैं बदसूरत मालूम होता हूं और मैं जान-बूझकर अपनी हालत ज्यादा गंदी रखना चाहता हूं, जिसे आप अपने पुत्र के लिए अच्छा नहीं समझते। यदि ऐसा है तो मैं आपको बताना चाहता हूंं कि आपका ऐसा विचार करना आपकी भूल है। अपने शरीर की जितनी फिकर मुझे रहती है और देश तथा धर्म की खातिर अपने शरीर को खराब करने के बरखिलाफ जितना मैं हूं, शायद ही कोई और हो। ऐसी अवस्था में मैं समझ नहीं पाता कि आपकी नाराजगी का क्या कारण है।
साथ ही यह बात भी मैं आपके आगे रख देना चाहता हूं कि मैं इस बात को बहुत बुरा समझता हूं कि मैं कुछ भी करने में सदा इस बात का ध्यान रखूं कि दूसरे उस पर क्या विचार करेंगे और न ही मैं यह अच्छा समझता हूं कि कोई और व्यक्ति मेरे व्यक्तिगत जीवन की बातों में मुझे अपनी इच्छाओं से बाध्य करने का प्रयास भी करे। वह चाहे कोई भी हो, मैं किसी भी व्यक्ति के खातिर अपना व्यक्तित्व खोना नहीं चाहता और फिर ऐसी-ऐसी मामूली बातों की खातिर मैं स्वयं इन बातों से तंग हो जाता हूं।
दूसरा कारण आपके दुखी रहने का है-मेरा आजकल का एटिट्यूड। ठीक है। माता-पिता के लिए गौरव की बात यही है कि उनका लड़का उनकी नेकनामी पैदा करे न कि कलंक लगाए। माता-पिता की सदा यह इच्छा रहती है कि उनका लड़का बड़ा नाम कमाए और जीवन में सामने आने वाले हर प्रकार के संग्रामों में किसी से भी पीछे न रहे। मैं जानता हूं कि आपकी भी ऐसी ही मानसिक अवस्था और सोच है। जब आप देखते हैं कि किसी बात में भाग नहीं लेता और हमेशा चुप रहता हूं तो आपको बहुत दुख होता है। सचमुच, मैं आपसे सच्चे दिल से कहता हूं कि आपको इस बारे में दुखी देखकर मैं स्वयं भी बहुत दुखी होता हूं।
और क्या कहूं, मैंने इस कारण से कितने अपनों को नाराज किया है और कितनों की ही नजर में बुरा बना हूं। इतना होने पर भी इस बारे में मैं कुछ नहीं कहना चाहता और न सफाई देना चाहता हूं।पर आपसे यह अवश्य कहूंगा कि आप कभी इन विचारों को लेकर दुखी न हों और मैं क्या करता हूं और मुझे क्या करना चाहिए, इन बातों पर कभी विचार ही न करना चाहिए।क्योंकि आपको यकीन करना चाहिए कि मैं आपका पुत्र हूं। बस यही मेरी सफाई है। इस पर यकीन कीजिए।
क्या मैं आशा कर सकता हूं कि आप मेरी ओर से निश्चिंत हो जाएंगे।आपका पुत्र,सुखदेव(‘भगतसिंह और उनके साथियों के दस्तावेज’ से साभार)
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