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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब शास्त्री की उपाधि पर बीए का भी उल्लेख करने का लिया निर्णय

डिग्री की वैधता को लेकर उठ रहे सवाल को देखते हुए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब शास्त्री की उपाधि पर बीए का भी उल्लेख करने का निर्णय लिया है। वर्ष 2022 की परीक्षा उत्तीर्ण करने शास्त्री के छात्रों के अंकपत्र व उपाधि में अब बैचलर आफ आटर्स का भी उल्लेख रहेगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Fri, 07 Jan 2022 07:20 AM (IST)
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संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब शास्त्री की उपाधि पर बीए का भी उल्लेख करने का लिया निर्णय
वाराणसी, जागरण संवाददाता। डिग्री की वैधता को लेकर उठ रहे सवाल को देखते हुए संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय अब शास्त्री की उपाधि पर बीए का भी उल्लेख करने का निर्णय लिया है। यह व्यवस्था वर्तमान सत्र से ही लागू की जाएगी। ऐसे में वर्ष 2022 की परीक्षा उत्तीर्ण करने शास्त्री के छात्रों के अंकपत्र व उपाधि में अब बैचलर आफ आटर्स का भी उल्लेख रहेगा।

प्राच्य विद्या का केंद्र होने के कारण संस्कृत विश्वविद्यालय अब भी हाईस्कूल का अंकपत्र पूर्व मध्यमा, इंटर का उत्तर मध्यमा व स्नातक का शास्त्री के नाम से अंकपत्र व प्रमाण पत्र जारी करता है। जानकारी के अभाव में कुछ संस्थाएं विश्वविद्यालय की डिग्री को अमान्य कर देते हैं। खास तौर पर विदेशी संस्थाओं में विश्वविद्यालयों की डिग्री को लेकर भ्रम की स्थिति बनी रहती है। इसे देखते हुए वर्ष 2011 से विश्वविद्यालय आचार्य की उपाधि पर एमए-संस्कृत का भी उल्लेख कर रहा है। अब आचार्य की डिग्री को लेकर देश में ही नहीं विदेशों में भी भ्रम की स्थिति समाप्त हो गई है। वहीं शास्त्री की डिग्री को लेकर कुछ संस्थाओं में भ्रम की स्थिति अब भी बनी हुई हैं। छात्रों का दावा है कि भारतीय सेना ने शास्त्री की डिग्री स्नातक के समकक्ष मानने से इंकार कर दिया है।

‘‘वर्ष 2022 से पूर्व मध्यमा के प्रमाणपत्र पर हाईस्कूल, उत्तर मध्यमा के प्रमाणपत्र पर इंटर, शास्त्री की उपाधि पर बैचलर आफ आटर््स भी दर्ज कराने का निर्णय लिया है। यही नहीं पहले भी विश्वविद्यालय के पुराने छात्रों को यदि कोई दिक्कत आ रही है तो वह निर्धारित शुल्क जमा कर नई डिग्री हासिल कर सकते हैं। इसमें बैचलर आफ आटर््स का भी उल्लेख रहेगा। इसके अलावा संस्कृत भाषा के साथ-साथ अंग्रेजी में डिग्री मिलेंगी ताकि छात्रों को विदेशों में भी परेशानी का सामना न करना पड़े।

-प्रो. हरेराम त्रिपाठी, कुलपति, संस्कृत विश्वविद्यालय

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