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काशी में सावन : भगवान राम ने काशी के रामेश्‍वर में की थी वरुणा नदी की रेत से शिवलिंग की स्‍थापना

काशी में मनभावन सावन एक बार फ‍िर से दस्‍तक दे चुका है। हर बार की तरह इस बार भी काशी के रामेश्‍वरम की मान्‍यता रखने वाले रामेश्‍वर में भगवान राम ने काशी के रामेश्‍वर में वरुणा नदी की रेत से शिवलिंग की स्‍थापना की थी।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Fri, 15 Jul 2022 11:48 AM (IST)
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भगवान राम ने वाराणसी के रामेश्‍वर में वरुणा नदी की रेत से शिवलिंग की स्‍थापना की थी।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। भगवान राम और शिव के मिलन का काशी में स्‍थल ही रामेश्‍वर महादेव के नाम से विख्‍यात है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान राम ने शिवलिंग की स्‍थापना रेत से रामेश्‍वरम में किया था। इसके पौराणिक नगरी काशी में वरुणा नदी के तट पर वरुणा की रेत से रामेश्‍वर महादेव की स्‍थापना की थी। इस प्रकार यह भगवान राम के द्वारा रेत से स्‍थापित यह देश में दूसरा शिवलिंग है। इस स्‍थान पर आज भी संतान की कामना से लोटा-भंटा मेला का आयोजन किया जाता है।

काशी भगवान शिव की नगरी है और वेद, शास्त्र, पुराणों द्वारा इसे भगवान शंकर के त्रिशूल पर बसी हुई नगरी स्वीकार किया गया है। रामेश्वर, काशी पंचक्रोशी के तृतीय पड़ाव स्थल पर बसा हुआ है। किसी जमाने में करौंदा पौधे की बहुतायतता के कारण इसे "करौना" गांव के नाम से जाना जाता था किन्तु भगवान श्रीराम द्वारा पंचक्रोशी यात्रा में आने पर वरुणा नदी के एक मुठ्ठी रेत से "शिव की प्रतिमा" स्थापना और भगवान "शिव" एवम् "राम" के आरम्भिक मिलन होने से अब इसे रामेश्वर महादेव (रामेश्वर तीर्थ धाम) के नाम से जाना जाता है।

श्रावण मास में काशी के सभी शिवालयों में श्रद्धालुओ की भीड़ उमड़ती है। आध्यात्मिक दृष्टि से विविध रूपों में शिव एक ही सत्ता के साथ विराजमान हैं, पर लौकिक दृष्टि से प्रत्येक शिव स्थान या शिवालय के साथ अलग -अलग परम्पराएं जुड़ी हैं जो लोक आस्था की प्रतीक हैं। पापों के विनाश के लिए पंचक्रोशी यात्रा की शुरुआत हुई जब भगवान श्री राम ने कुम्भोदर ऋषि से महा विद्वान रावण के वध से प्रायश्चित उपाय पर चौरासी कोस की यात्रा करने क्षत्रिय वंश द्वारा ब्राह्मणों की मर्यादा को स्थापित रखने के आदेश पर चौरासी कोस की काशी यात्रा (जहां 56 करोड़ देवता वास करते हैं) प्रारम्भ की।

कर्दमेश्वर, भीमचण्डी के बाद रामेश्वर में वरुणा के शांत कछार पर रात्रि भर विश्राम कर भगवान राम ने अपने हाथों एक मुठ्ठी रेत से शिव प्रतिमा की स्थापना कर तर्पण किया, जो स्थान आज पापों का नाश और मनोकामना के पूर्ण का पवित्र स्थल बन गया। यहां प्रति वर्ष हजारों हजार लोग आस्था के साथ जलाभिषेक कर पूजन -अर्चन करते हैं। "काशी महात्म" में उल्लिखित कथा के अनुसार -"एक रात्रेय तू मध्येय प्रविशे छुछि मानसः,वरुणा यासि तटे रम्ये सजाति परमां गतिम्।"

रामेश्वर में दिन -रात रुकने पर खाने, पहनने, धोने, शौच जाने, तामसी भोज्य पदार्थ त्याग, जूते चप्पल न पहनने, तेल व् साबुन का पूर्ण त्याग कर वरुणा के तट पर अर्पण व देव स्थान पर सफेद तिल, बेलपत्र, सफेद वस्त्र, चांदी सोना व् गंगा जल चढ़ाकर तर्पण करता है, शिवलिंग स्थापना पर उसे परम् गति (मोक्ष) की प्राप्ति होती है। इस आधार पर सभी ग्रहों ने आकर शिवलिंग की स्थापना की है।

राजा नहुष ने नहुषेश्वर, पृथ्वी आकाश के मालिक द्वारा द्यावा भूमिश्वर, भरत जी द्वारा भरतेश्वर सहित पंचपालेश्वर, लक्ष्मनेश्वर, शत्रुघ्नेश्वर, अग्निशेश्वर, सोमेश्वर की स्थापना के साथ परिसर में दत्तात्रेय, राम लक्ष्मण जानकी, हनुमान, गणेश, नरसिंह, कालभैरव, सूर्यदेव एवम साक्षी विनायक मन्दिर के बाहरी हिस्से में स्थित है। वैष्णव सम्प्रदाय में राधा -कृष्ण मन्दिर, आराध्य देवी मां तुलजा -दुर्गा की भव्य प्रतिमा, बहरी अलंग झारखंडेश्वर महादेव, श्मशान घाट, रुद्राणी, तपोभूमि, उतकलेश्वर महादेव, उदण्ड विनायक और इश्वरेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित है। मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा वरुणा तट पर जहाँ एक मुट्ठी रेत से शिवलिंग की स्थापना की गई वहींं पर वीर हनुमान और असंख्य बन्दरों ने विंध्य पर्वत की शीला से असंख्य लिंग की स्थापना श्री राम जी के आदेश पर किया जो तप स्थली के रूप में विशाल वट के नीचे आस्था का केंद्र बना है।

रामेश्वर के शिव दरबार में एक दम्पती ने पुत्र रत्न की कामना से यहां आकर पूजन अर्चन की। जिसकी कामना महादेव की कृपा से पूर्ण हुई। इसको लेकर अगहन छठ पर "लोटा -भंटा" का विशाल मेला लगता है जिसमें वरुणा नदी में डुबकी लगाने के बाद रामेश्वर महादेव में मत्था टेककर बाटी -चोखा दाल प्रसाद बनाकर भोले बाबा को चढ़ाकर स्वयं प्रसाद ग्रहण कर मेले का आनन्द उठाते हैं। प्रतिवर्ष अगहन छठ पर यह मेला लगता है। रामेश्वर महादेव मन्दिर पुजारी अन्नू तिवारी के अनुसार मेले में लाखों नर -नारी जुट कर रामेश्वर महादेव से मनोकामना करते हैं। लोटा -भंटा मेला पूर्वांचल का सबसे बड़ा मेला है जहां पहुंचकर महाभारत काल के स्थापित पंचशिवाला शिवमन्दिर में भी दर्शन -पूजन किया जाता है।

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