शक्ति रूपेण संस्थिता : वाराणसी में मां विशालाक्षी मंदिर की मान्यता 51 शक्तिपीठों में, यहां देवी सती का मुख गिरा था
मां विशालाक्षी मंदिर श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के समीप दशाश्वमेध के मीरघाट गली में स्थित है। दर्शन-पूजन के लिए काशी के साथ ही आसपास के जिलों व दक्षिण भारत तक से श्रद्धालुओं का आना होता है। मान्यता है कि माता का स्वरूप कृपा बरसाता है।
By pramod kumarEdited By: Saurabh ChakravartyUpdated: Thu, 29 Sep 2022 10:27 PM (IST)
वाराणसी, जागरण संवाददाता। मां विशालाक्षी मंदिर श्रीकाशी विश्वनाथ धाम के समीप दशाश्वमेध के मीरघाट गली में स्थित है। दर्शन-पूजन के लिए काशी के साथ ही आसपास के जिलों व दक्षिण भारत तक से श्रद्धालुओं का आना होता है। मान्यता है कि माता का स्वरूप कृपा बरसाता है। श्रद्धालुओं को बार-बार अपने पास खींच लाता है।
विशालाक्षी मंदिर में देवी सती का मुख गिरा थाविशालाक्षी मंदिर की मान्यता 51 शक्तिपीठों में है। मान्यतानुसार यहां देवी सती का मुख गिरा था। शास्त्रीय मान्यता यह भी है कि जब काशी में ऋषि व्यास को कोई भी भोजन नहीं दे रहा था तब सती गृहिणी के रूप में प्रगट हुईं और ऋषि व्यास को भोजन दिया था। भाद्रपद मास में मंदिर में भव्य आयोजन होता है। चैत्र नवरात्र की पंचमी को नौ गौरी स्वरूप में मां विशालक्षी का दर्शन होता है। दशहरा के दिन भगवती शक्ति काठ के घोड़े पर विजमान हो नगर भ्रमण के लिए निकलती हैं।
मंदिर की बनावट दक्षिण भारतीय शैली की अनूठी वास्तु कला का प्रमाण विशालाक्षी मंदिर अनादि काल से है। इस मंदिर की बनावट दक्षिण भारतीय शैली की अनूठी वास्तु कला का प्रमाण है। आदि शंकराचार्य आठवीं शताब्दी में इस मंदिर में आए थे और एक श्रीयंत्र स्थापित किया था। मंदिर का जीर्णोद्धार 1908 दक्षिण भारतीय भक्त ने कराया था। देवी की श्याम रंग प्रतिमा मनमोहक है।