काशी के ठाठ ये गंगा के घाट : शीतला मंदिर से मिली घाट को पहचान
वाराणसी स्थित शीतला घाट पर वर्ष भर आस्थावानों की भीड़ लगी रहती है।
वाराणसी : गंगा की अनंत कथाओं में गंगोत्री से लेकर गंगा सागर और घाटों से लेकर मंदिरों तक की पहचान आस्थावानों में युगों से बनी हुई है। कुछ इसी तरह की ही पहचान काशी के चौरासी प्रमुख गंगा तट स्थित घाटों की भी है। इसी कड़ी में शीतला घाट का भी खासा महत्व माना जाता है। हालांकि इसे आज भी स्थानीय लोग दशाश्वमेधघाट का ही हिस्सा मानता है। मान्यता है कि अठ्ठारहवीं सदी की शुरुआत में मध्यप्रदेश के इंदौर रियासत की रानी अहिल्याबाई होल्कर ने घाट का पुनर्निमाण कराया और इसे पक्का स्वरूप देते हुए श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए अनेक कार्य कराए, जिससे यहां दूर दराज से आने वालों के लिए काफी सहूलियत हो गई। पहले यह हिस्सा दशाश्वमेध घाट के अंर्तगत आता था। मगर घाट के निर्माण के कुछ वर्षो बाद यहां शीतला माता मंदिर की स्थापना की गई। जिसका फिर कालांतर में नाम शीतला घाट ही पड़ गया जो आज तक उसी नाम से ही पहचाना जाता है।
शीतला मंदिर अपनी स्थापत्य कला की वजह से विशेष पहचान रखता है। चैत्र और शारदीय नवरात्रि में यहां पर आस्थावानों की भीड़ होती है, घाट पर ही लोग स्नान-दान कर पुण्य की कामना करते हैं। वैसे तो वर्ष भर यहां लोगों की भीड़ रहती है मगर धार्मिक आयोजनों में खासकर घाट पर लोगों की भीड़ अधिक होती है।