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Shravan Purnima : पाप शमन और पुण्य कामना से निभाया श्रावणी उपाकर्म, वाराणसी के गंगा घाटों पर हुआ आयोजन

श्रावण पूर्णिमा के मान विधान के तहत सनातन धर्मावलंबियों ने गुरुवार को एकोहं बहुयस्याम् की ब्रह्म आकांक्षा के साथ श्रावणी पर्व मनाया। वाराणसी के गंगा घाटों पर गुरुवार की सुबह धा‍र्मिक अनुष्‍ठान हुआ। मठ-मंदिरों संस्कृत व वेद विद्या से संबंधित संस्थानों में दोपहर बाद तक अनुष्ठान किए गए।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Thu, 11 Aug 2022 11:53 AM (IST)
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मणिकर्णिका घाट पर गंगा श्रावणी उपक्रम पूजन करते
वाराणसी, जागरण संवाददता। श्रावण पूर्णिमा के मान विधान के तहत सनातन धर्मावलंबियों ने गुरुवार को 'एकोहं बहुयस्याम्' की ब्रह्म आकांक्षा के साथ श्रावणी पर्व मनाया। हेमाद्रि संकल्प के साथ दश विध गण स्नान किया। इसमें भस्म, गोबर, मिट्टी, गो मूत्र, गो दुग्ध, गो दूध से तैयार दधि, गो घृत, हल्दी, कुश और मधु आदि का लेपन कर सस्वर वेद मंत्रों के बीच गंगा की जल धारा में स्नान कराया गया।

स्नानांग तर्पण विधान के बाद आसन ग्रहण कर गणपति पूजन, ऋषि पूजन, यज्ञोपवीत दान, यज्ञोपवीत संस्कार, यज्ञोपवीत धारण, हवन और रक्षा विधान किए। इसके लिए दशाश्वमेध, अहिल्याबाई, केदारघाट, पंचगंगा, मणिकर्णिका समेत गंगा के विभिन्न घाटों पर सुबह से ही विप्रजनों की जुटान हुई। मठ-मंदिरों, संस्कृत व वेद विद्या से संबंधित संस्थानों में दोपहर बाद तक अनुष्ठान किए गए।

वास्तव में श्रावणी उपाकर्म के तीन अंग हैं। इसमें प्रायश्चित संकल्प, संस्कार और स्वाध्याय शामिल हैं। इसमें गुरु के सानिध्य या या पुरोहित के निर्देशन में दशविध स्नान कर वर्ष पर्यंत जाने-अनजाने पाप कर्मों से मुक्ति के लिए प्रायश्चित का विधान है। यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार करता है। रचनात्मक कार्यों के लिए स्फूर्ति भरता है। ऋषि पूजा व यज्ञोपवीत संस्कारादि आत्म संयम संस्कार की श्रेणी में आते हैं। साथ ही सावित्री, ब्रह्मा, श्रद्धा, मेधा, प्रज्ञा, सदसस्पति, अनुमति, छंद व ऋषि को समर्पित हवन-यज्ञ में घृत आहुति के साथ वेद-वेदांग के स्वाध्याय का श्रीगणेश होता है।

शुक्रवार को भी किए जाएंगे अनुष्ठान

तिथियों के फेर से इस बार श्रावण पूर्णिमा दो दिन पड़ने से मान अनुसार शुक्रवार को भी श्रावणी उपाकर्म किए जाएंगे। हालांकि पूर्णिमा गुरुवार को सुबह 9.35 बजे भद्रा के साथ लग रही। भद्रा रात में 8.30 बजे खत्म हो रहा और पूर्णिमा शुक्रवार को सुबह 7.17 बजे तक है। इसमें देखते हुए यजुर्वेदियों के लिए गुुरुवार तो तैत्तिरीय शाखा के लिए श्रावणी उपाकर्म शुक्रवार को मान्य पाया गया। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिष विभाग के अध्यक्ष प्रो. गिरिजा शंकर शास्त्री के अनुसार धर्म शास्त्र में उपाकर्म (श्रावणी) हेतु चारों वेदों की विभिन्न शाखाओं के लिए अलग - अलग काल नियत किए गए हैं। सभी श्रावण शुक्ल पूर्णिमा के विभिन्न अवयवों से संबंधित हैं।

यथा ऋग्वेदियों के लिए सूर्योदय के समय पूर्णिमा होनी चाहिए। यजुर्वेदियों के लिए संगव काल (दिन के द्वितीय पहर को संगव कहते हैं), सामशाखा वालों को स्पर्श काल, अथर्ववेदियों के लिए कर्क राशि के सूर्य की प्रधानता होती है। शास्त्रों में कहा गया है- उदयेसड़्गवस्पर्शे श्रुतौ पर्वणि चार्कभे। कुर्युः नभस्युपाकर्म ऋग्यजुः सामगाः क्रमात्।। वहीं तैत्तिरीय शाखा के लिए सभी धर्म शास्त्र एक मत से कहते हैं - पर्वण्यौदयिके कुर्युः श्रवणीं तैत्तिरीयकाः।।

उपाकर्म में हेमाद्रि संकल्प, दशविध गण स्नान, स्नानांग तर्पण, गणपति पूजन, ऋषि पूजन, यज्ञोपवीत दान, यज्ञोपवीत संस्कार, यज्ञोपवीत धारण, हवन और रक्षा विधान आदि उपाकर्म अंगी हैं। ये सभी अंग अतः अंगांगी संबंध से प्रत्येक शाखावलंबियों को उसी समय रक्षा धारण करना चाहिए। अब प्रश्न है कि तैत्तिरीय शाखा वाले कब रक्षा धारण करें, क्योंकि वहीं तो प्रतिपदा युक्ता रहेगी। अतः कहा गया है- एवं प्रतिपद्योगोपि न निषिद्धः।

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