48वेंं अंतरराष्ट्रीय ध्रुपद मेले में वाराणसी के तुलसीघाट पर गूंजी सुर बहार, थिरक उठी गंगधार
महाराज बनारस विद्या मंदिर न्यास की ओर से गंगा तट पर शनिवार को 48वें अंतरराष्ट्रीय ध्रुपद मेला की शुरुआत हुई। इसमें पद्मश्री के लिए चयनित ख्यात सितार वादक पं. शिवनाथ मिश्र और उनके पुत्र देवव्रत मिश्र ने सुर बहार की युगलबंदी प्रस्तुत की।
By Milan KumarEdited By: Updated: Sun, 27 Feb 2022 01:43 AM (IST)
वाराणसी, जागरण संवाददाता। महाराज बनारस विद्या मंदिर न्यास की ओर से गंगा तट पर शनिवार को 48वें अंतरराष्ट्रीय ध्रुपद मेला की शुरुआत हुई। इसमें पद्मश्री के लिए चयनित ख्यात सितार वादक पं. शिवनाथ मिश्र और उनके पुत्र देवव्रत मिश्र ने सुर बहार की युगलबंदी प्रस्तुत की। राग यमन को सुर बहार के तारों पर झंकृत किया। इससे श्रोताओं के भाव ऐसे जैसे गंगधार भी थिरक उठी हो।
ख्यात ध्रुपद गायक पं. ऋत्विक सान्याल ने राग लीलावती में आलाप और चार ताल में प्रस्तुति दी। राग भीम शूल ताल में कोरोना काल के विषय पर ध्रुपद की प्रभावशाली प्रस्तुति की। पखावज पर अंकित पारिख, तानपुरे व गायन पर अनुराधा रतूड़ी, आशीष जायसवाल व आशुतोष भट्टाचार्य ने साथ दिया।
प्रवालनाथ ने पखावज वादन में चार ताल की रचनाओं की प्रस्तुति से मुग्ध किया। सारंगी पर ध्रुव सहाय की संगत रही। युवा बासुरी वादक डा. हरि प्रसाद पौडयाल ने अमृत वर्षिणी राग में आलाप, जोड़ झाला और चौताल में निबद्ध बंदिश की प्रस्तुति की। अप्रचलित रागों में से एक इस राग में गमक और तान का अप्रतिम संगम से श्रोतागण मन्त्रमुग्ध हुए। मौसम के अनुसार द्रुतलय सूल ताल में निबद्ध राग बहार में बजाकर अपनी प्रस्तुति का समापन किया। उनके साथ पखावज संगत में आदित्य दिप रहे।
संगीत से दुनिया में स्थापित हो सकती है शांति
ध्रुपद मेला का उद्घाटन करते हुए संयोजक व संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने कहा कि संगीत से ही पूरी दुनिया को एकता व शांति में बांधा जा सकता है। यूक्रेन युद्ध से मानवता कराह उठी है। इसे रोकना जरूरी है। उन्होंने कहा कि ध्रुपद मेला के आदि पुरुषों ने इसे पूरी तरह संभालकर 48 वें वर्ष में पहुंचाया।
उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी के अध्यक्ष पद्मश्री प्रो. राजेश्वर आचार्य ने कहा कि 21 फरवरी 1975 को ध्रुपद मेला का प्रथम उद्घाटन हुआ। उद्घाटनकर्ता महंत वीरभद्र मिश्र थे। सितार व सुर बहार वादक पद्मश्री शिवनाथ मिश्र ने कहा हम शुरुआत में अपने चाचा अमरनाथ मिश्र के साथ यहां आते थे। मैनें भी यहां सुर बहार बजाया है। यहां वादन करने से बहुत शांति और आनन्द मिलता है।
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