संत कबीर की जन्मस्थली लहरतारा में यूपी पर्यटन ने संंभाली विकास की कमान, पर्यटकों के लिए पहुंचना आसान
संत कबीर की जन्मस्थली लहरतारा में इस बार 14 जून को विशेष आयोजन होने जा रहा है। दरअसल यूपी पर्यटन ने यहां पर जीर्णोद्धार के साथ ही संत की स्मृतियों को सहेजने के साथ ही विकास की कमान भी संभाली है।
वाराणसी, जागरण संवाददाता। काशी के संत शिरोमणि कबीर को कौन नहीं जानता। संत की जन्मस्थली लहरतारा इन दिनों एक बार फिर से चर्चा में है। मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ मास पूर्णिमा को कबीर जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष यह तिथि 14 जून को यह आयोजन मनाया जाना है। मगर उनकी जयंती के पूर्व ही उनकी जन्मस्थली लहरतारा में आयोजन की तैयारियां शुरू हो गई हैं।
मान्यताओं के अनुसार संत कबीर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन काशी में लहरतारा तालाब के कमल पुष्प पर अपने पालक जुलाहा माता-पिता नीरू और नीमा को प्राप्त हुए थे। कबीर दास ने अपने दोहों, विचारों से मध्यकालीन भारत के सामाजिक- धार्मिक, आध्यात्मिक जीवन में क्रांति का सूत्रपात किया था। कबीर दास ने तत्कालीन समाज के दौर में अंधविश्वास, रूढ़िवाद, पाखण्ड का घोर विरोध किया। उन्होंने उस काल में भारतीय समाज में विभिन्न धर्मों और समाज के मेल-जोल का मार्ग भी प्रशस्त किया था। उनहोंने हिंदू और इस्लाम में व्याप्त कुरीतियों और पाखंडों पर खूब साहित्यिक प्रहार किया।
संत कबीर की जन्मभूमि काशी में लहरतारा अब चर्चा में इसलिए भी है कि यूपी पर्यटन की ओर से उनके जन्मस्थली को दिव्य और भव्य बनाने का प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए पर्यटन विभाग ने पहल की है। इस बाबत यूपी पर्यटन ने बुधवार को इंटरनेट मीडिया में पोस्ट जारी कर लिखा है कि - 'देश-विदेश से श्रद्धालु एवं पर्यटक काशी में जन्मे निर्गुण पंथ शिरोमणि संत कबीर के धाम में माथा टेकने आते हैं। उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा इस मंदिर के जीर्णोद्धार एवं सुंदरीकरण के उद्देश्य से विभिन्न प्रकार के विकास कार्य कराए गए हैं।'
परिसर में जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण के साथ ही पर्यटकों की सहूलियत के लिए विभिन्न कार्य कराए गए हैं। इस बार 14 जून को कबीरपंथियों का काशी में जमावड़ा होगा तो उनके अनुयायियों के लिए सुविधाओं की अनोखी अनुभूति होगी। परिसर में लगातार विकास कार्यों के जरिए कबीर की स्मृतियों को सहेजा और संजोया जा रहा है। माना जा रहा है कि जल्द ही परिसर में सारे कार्य पूर्ण हो जाएंगे और पर्यटन के लिए आने वालों को संत शिरोमणि की जन्मभूमि में अनोखा अनुभव भी मिलेगा।
ऐसे पहुंचे संत की जन्मभूमि : संत कबीर की जन्मस्थली वाराणसी जिले में कैंट रेलवे स्टेशन के करीब ही है। आप वाकिंग डिस्टेंस के जरिए पैदल ही जा सकते हैं या लहरतारा के लिए आटो भी कर सकते हैं। बस स्टैंड के भी उतना ही करीब यह स्थल है और पैदल बीस मिनट तो आटो से पांच मिनट में ही पहुंच सकते हैं। वहीं बाबतपुर एयरपोर्ट पर उतरने के बाद आप लहरतारा आटो या कैब के जरिए आधे घंटे में पहुंच सकते हैं।