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Varanasi News: शैवाल से जैव ईंधन बनाने की ओर बढ़े कदम, घटेगा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन

वैश्विक स्तर पर पेट्रोल और डीजल की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर रोक लगाने का हर उपाय नाकाम सिद्ध हो रहा है। बायोडीजल का उपयोग बढ़ाकर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन घटाया जा सकता है। अभी जैव ईंधन बनाने का प्रोजेक्ट आरंभिक चरण में है लेकिन शैवालों की कम उत्पादकता व अधिक उत्पादन लागत जैसी बड़ी चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयास हो रहा।

By Jagran News Edited By: Swati Singh Updated: Thu, 25 Apr 2024 07:51 PM (IST)
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शैवाल से जैव ईंधन बनाने की ओर बढ़े कदम, घटेगा कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन
संग्राम सिंह, वाराणसी। वैश्विक स्तर पर पेट्रोल और डीजल की मांग लगातार बढ़ रही है। ऐसे में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन पर रोक लगाने का हर उपाय नाकाम सिद्ध हो रहा है। ऐसे में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग में टिकाऊ और अक्षय ऊर्जा के स्रोत की खोज की गई है। विज्ञानियों ने निष्प्रयोज्य पानी के सूक्ष्म शैवाल से बायोडीजल तैयार करने में सफलता पाई है।

बायोडीजल का उपयोग बढ़ाकर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन घटाया जा सकता है। अभी जैव ईंधन बनाने का प्रोजेक्ट आरंभिक चरण में है, लेकिन शैवालों की कम उत्पादकता व अधिक उत्पादन लागत जैसी बड़ी चुनौतियों का समाधान खोजने का प्रयास हो रहा है।

बायोडीजल को वाहनों के लायक बनाया जा रहा

बायोडीजल को वाहनों के इस्तेमाल के लायक बनाया जा रहा है। औसतन एक किलो सिनेडस्मस माइक्रो एल्गी से 400 मिलीलीटर बायोडीजल (कच्चा तेल) का उत्पादन हुआ है। एक लीटर का उत्पादन करने में करीब 84 रुपये का खर्च आ रहा है। हालांकि जब बड़े स्तर पर उत्पादन किया जाएगा तो यह गिरकर 30 रुपये प्रति लीटर हो जाएगा। निर्मित तेल पर अमेरिकन सोसायटी फॉर टेस्टिंग एंड मैटेरियल्स के विज्ञानियों ने अध्ययन शुरू किया है। वह परीक्षण के बाद अंतिम निष्कर्ष पर पहुंचेंगे कि निर्मित तेल को और प्रभावशाली कैसे बनाया जाए। इस तेल को यूरोपीय मानकों के अनुरूप भी ढाला जा रहा है।

लवणता तनाव से शैवाल करते हैं ट्राइग्लिसराइड का उत्पादन

वनस्पति विज्ञान विभाग के प्रो. आरके गुप्ता ने बताया कि शैवाल के बायोमास और ऊर्जा निहित अणुओं को बढ़ाने के लिए नया तरीका बेहद कारगर सिद्ध हुआ है। लवणता तनाव के अंतर्गत शैवाल ट्राइग्लिसराइड का उत्पादन करते हैं। यह बायोडीजल का प्रमुख कारक है। सिनेडस्मस सूक्ष्म शैवाल गंदे अनुपयोगी पानी में पाया जाता है। सबसे पहले इसे शुद्ध करने के बाद एक्सट्रैक्ट को निकाला जाता है, लेकिन बड़े स्तर पर इसे विकसित करने के लिए नमक की मात्रा बढ़ाई जाती है। इससे लिपिड में वृद्धि होती है। इसका कारण यह है कि शैवाल से बायोडीजल का उत्पादन करने के लिए यह प्रक्रिया अपनाना बेहद जरूरी है। ट्रांस एस्टरीफिकेशन प्रक्रिया के उपरांत ट्राइग्लिसराइड को बायोडीजल के रूप में परिवर्तित कर दिया जाता है।

दुनिया में बहुत सीमित हैं जीवाश्म ईंधन

विज्ञानियों का कहना है कि दुनिया में जीवाश्म ईंधन सीमित मात्रा में हैं। मृत जानवरों और पेड़-पौधों के अवशेष दीर्घकाल में जीवाश्म ईंधन का रूप लेते हैं, लेकिन इस प्रक्रिया में लाखों वर्ष लगते हैं। बायोडीजल बनाने के लिए अभी तक रतनजोत (जेट्रोफा) के पौधे का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके बीजों से बायोडीजल प्राप्त होता है, लेकिन हरित शैवाल ने बायोडीजल उत्पादन की दिशा में अच्छी पहल की है। इस अध्ययन में विभाग के शोधार्थी राहुल प्रसाद सिंह व प्रिया यादव शामिल हैं। स्विट्जरलैंड के दो जर्नल माइक्रो ऑर्गेनिज्म और फंट्रियर इन माइक्रोबायोलॉजी में यह अध्ययन प्रकाशित हो चुका है।

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