122 वर्ष के स्वामी शिवानंद दुनिया में सबसे उम्रदराज, गिनीज बुक में दर्ज होगा नाम
पासपोर्ट व आधार कार्ड के अनुसार उनकी आयु 122 वर्ष है और वे पूरी तरह स्वस्थ भी हैं, स्वामी शिवानंद के बारे में दावा है कि वे दुनिया के सबसे वृद्ध व्यक्ति हैं।
By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Mon, 22 Oct 2018 09:14 PM (IST)
वाराणसी [मुहम्मद रईस] । गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड 2018 के अनुसार जापान के मासाजो नॉनका दुनिया के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं, जिनकी आयु 112 वर्ष है। मगर बनारस के स्वामी शिवानंद के बारे में दावा किया जा रहा है कि वे ही दुनिया के सबसे वृद्ध व्यक्ति हैं।
पासपोर्ट व आधार कार्ड पर अंकित जन्मदिन आठ अगस्त 1896 के अनुसार उनकी आयु 122 वर्ष है और वे पूरी तरह स्वस्थ भी हैं। 40 की उम्र में लोगों के बाल पकने लगते हैं, 50 की उम्र में जोड़ जवाब देने शुरू कर देते हैं। वहीं 60 की उम्र आते-आते व्यक्ति बीपी, शुगर, हृदय रोग आदि की गिरफ्त में आ जाता है। स्वामी शिवानंद बताते हैं कि उनकी लंबी आयु व स्वास्थ्य का राज इंद्रियों पर नियंत्रण, संतुलित दिनचर्या, सादा भोजन, योग व व्यायाम है। निरोग रहकर जीवन का आनंद लेने के फलसफे पर विश्वास रखने वाले शिवानंद इसका डेमो देने के लिए अमूमन अपने अनुयायियों के बीच ही रहते हैं। स्वामी शिवानंद अलसुबह 3 बजे ही सोकर उठ जाते हैं। नित्य क्रिया के उपरांत जाप व ध्यान करते हैं। इसके बाद व्यायाम व योग को तरजीह देते हैं। सुबह नाश्ते में लाई-चूड़ा, दोपहर व रात के खाने में दाल-रोटी व उबली हुई सब्जी लेते हैं। इसके अलावा स्वामी शिवानंद सामाजिक कार्यों में भी रूचि रखते हैं। प्रतिवर्ष पुरी में लगभग 500 कुष्ठ रोगियों को अन्न, तेल-मसाले व दैनिक उपयोग की सामग्री वितरित करते हैं।
गिनीज बुक में पंजीयन का इंतजार
शिष्य आसिम कृष्णा ने बताया कि बाबा दुनिया के सबसे उम्रदराज व्यक्ति हैं। पासपोर्ट, आधार कार्ड के साथ हमारे पास अन्य दस्तावेज भी हैं। कोलकाता निवासी शिष्य डा. सुभाष चंद्र गराई पर गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड में पंजीयन की जिम्मेदारी है। डा. सुभाष बताते हैं कि गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड के लिए दस्तावेज भेजे जा चुके हैं। प्रक्रिया लंबी है, अभी कुछ और प्रपत्र मांगे गए थे, जिन्हें भेजने की तैयारी है।
वर्तमान बांग्लादेश में हुआ था जन्म
स्वामी शिवानंद का जन्म सिलहट्ट जिला (वर्तमान में बांग्लादेश का हबीबगंज जिला) स्थित हरिपुर गांव में भगवती देवी एवं श्रीनाथ ठाकुर के घर हुआ था। निर्धन माता-पिता भिक्षाटन कर गुजारा करते थे। घोर आर्थिक तंगी के कारण माता-पिता ने चार साल की उम्र में उन्हें नवदीप (वर्तमान में पश्चित बंगाल का नदिया जिला) निवासी बाबा ओंकारानंद गोस्वामी को दान कर दिया था। जब छह वर्ष की उम्र में बाबा के साथ वापस अपने गांव गए तो मालूम चला कि उनकी बड़ी बहन ने दवा व भोजन के अभाव दम तोड़ दिया। उनके पहुंचने के एक सप्ताह बाद मां-बाप भी दुनिया छोड़ गए। नदिया में बाबा ओंकारानंद के सानिध्य में ही उन्होंने वैदिक ज्ञान हासिल किया और 16 वर्ष की उम्र में पश्चिम बंगाल आ गए।
दर्जनों देश का कर चुके हैं भ्रमण स्वामी शिवानंद अंतिम बार वर्ष 2011 में इंग्लैंड गए थे। इससे पहले वे अपने शिष्यों के बुलावे पर ग्रीस, फ्रांस, स्पेन, आस्ट्रिया, इटली, हंगरी, रूस, पोलैंड, आयरलैंड, नीदरलैंड, स्विटजरलैंड, जर्मनी, बुल्गेरिया, यूके आदि देशों का भ्रमण कर चुके हैं। उनके अनुयायियों में नार्थ-ईस्ट के लोगों की संख्या अधिक है।
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