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माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि होती है 'षट् तिला एकादशी', जानिए व्रत के नियम और पुण्‍य फल

इस बार माघ कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि छह फरवरी शनिवार को आधी रात के बाद छह बजकर 27 मिनट पर लगेगी जो कि 7 फरवरी रविवार को आधी रात के बाद चार बजकर 48 मिनट तक रहेगी। सात फरवरी रविवार को एकादशी तिथि का मान पूरे दिन रहेगा।

By Abhishek sharmaEdited By: Updated: Sat, 06 Feb 2021 04:28 PM (IST)
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माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि षट्तिला एकादशी के नाम से जानी जाती है।
वाराणसी, जेएनएन। भारतीय सनातन परंपरा के हिंदू धर्मग्रंथों में हर माह की एकादशी तिथि भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। भारतीय सनातन धर्म में एकादशी तिथि अपने आप में अनूठी मानी गई है। ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि षट्तिला एकादशी के नाम से जानी जाती है।

इस बार माघ कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि छह फरवरी शनिवार को आधी रात के बाद छह बजकर 27 मिनट पर लगेगी जो कि 7 फरवरी रविवार को आधी रात के बाद चार बजकर 48 मिनट तक रहेगी। सात फरवरी रविवार को एकादशी तिथि का मान पूरे दिन रहेगा। षट्तिला एकादशी की खास महिमा है, जैसा तिथि के नाम से विदित है कि छह प्रकार के तिल का प्रयोग आज के दिन करते हैं। इस दिन पूरे समय व्रत उपवास रखकर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा अर्चना करके उनसे सुख समृद्धि की कामना की जाती है।

व्रत का विधान : ज्योतिषाचार्य विमल जैन के अनुसार व्रत के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कार्यों से निवृत होकर गंगा स्नान करने  के बाद अपने आराध्य देवी देवता की पूजा अर्चना के बाद षट्तिला एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। एकादशी के दिन व्रत रखकर भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा अर्चना के बाद उनकी महिमा में श्री विष्णु सहस्रनाम, श्रीपुरुष सूक्तक तथा श्री विष्णु जी से संबंधित मंत्र ऊं श्री विष्णवे नम: या ऊं नमो भगवते वासुदेवाय का जाप अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिए।

पूरे दिन निराहार रहकर व्रत पूरा करना चाहिए। एकादशी तिथि के दिन चावल ग्रहण नहीं किया जाता। इस दिन अन्न ग्रहण न करके विशेष परिस्थिति में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। इस दिन तिल से बने पदार्थों का सेवन करना चाहिए। साथ ही व्रत के समय दिन में शयन नहीं करना चाहिए। षट्तिला एकादशी के व्रत और भगवान श्री विष्णु की विशेष कृपा से सभी प्रकार के मनोरथ सफल होते हैं, साथ ही जीवन में सुख समृद्धि और खुशहाली का सुयोग बना रहता है। मन वचन और कर्म से पूर्ण रूप से शुचिता बरतते हुए व्रत करना विशेष फलदायी माना गया है। 

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