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काशी में 'श्रीरामोत्सव' का उत्साह, समाज को 'राममय सूत्र' में बांधने का संकल्प पुख्ता; राममय में हुआ वातावरण

Ramotsav In Varanasi अयोध्या से पधारे जगद्गुरु रामानुजाचार्य विद्याभास्कर जी महाराज ने कहा कि श्रीराम का जीवन प्रत्येक मनुष्य के भीतर मनुष्यता को उदीप्त करने की प्रेरणा देता है। इसका अभाव ही आज के समय का सबसे बड़ा संकट है। हम निज संबंधों की मर्यादा विस्मृत करते जा रहे हैं। परिवार विखंडित हो रहे हैं व्यक्ति एकाकी होता जा रहा है।

By Jagran News Edited By: riya.pandey Updated: Sun, 07 Jan 2024 11:05 AM (IST)
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Ramotsav 2024: समाज को 'राममय सूत्र' में बांधने का संकल्प पुख्ता

संग्राम सिंह, वाराणसी। Ramotsav 2024: अयोध्या में होने जा रही रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के उल्लास से भोलेनाथ की नगरी काशी पुलकित है। दैनिक जागरण के 'श्रीरामोत्सव' में शनिवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के पाणिनी भवन पहुंचे लोगों की आंखों में यह उत्साह झलक रहा था।

'सबके राम' की मर्यादा के बीच समाज को 'राममय सूत्र' में बांधने का संकल्प और पुख्ता हुआ। महाआरती के साथ आयोजन को विराम जरूर लगा, लेकिन सबके हृदय में आस्था की ज्योति भी जला गया। जयश्री राम के उद्घोष से काशी ने 22 जनवरी को मर्यादा पुरुषोत्तम की छवि को अपने मन मंदिर में बसाने का दम भरा।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा, उप्र लोक सेवा आयोग के पूर्व सदस्य व पद्मभूषण प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी, दैनिक जागरण वाराणसी के निदेशक वीरेन्द्र कुमार, महापौर अशोक तिवारी, उद्यमी आरके चौधरी, श्रीकाशी मंदिर के अर्चक डॉ. श्रीकांत मिश्र और दैनिक जागरण के राज्य संपादक (उत्तर प्रदेश) आशुतोष शुक्ल द्वारा 'श्रीरामोत्सव' के दीप जलाते ही आयोजन स्थल राममय हो गया।

श्रीरामोत्सव की परिकल्पना और श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन में 'दैनिक जागरण' की राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सबने प्रणाम किया। आशुतोष शुक्ल ने उस दौर की याद दिलाते हुए कहा कि हिंदी पत्रकारिता में राममंदिर आंदोलन का पर्याय दैनिक जागरण बना।

राम केवल धर्म नहीं, जीवन के विषय हैं। हमने उस देश में जन्म लिया है, जो राजाओं से नहीं ऋषियों के नाम से जाना जाता है। यह समय अभिमान को जागृत करने का है। यह केवल मंदिर का प्रश्न नहीं है, यह हमारे संस्कृति और सभ्यता के उत्थान का कार्य है।

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बिहारी लाल शर्मा ने कहा कि दैनिक जागरण ने अपना पत्रकारीय धर्म बखूबी निभाया है।

पद्मभूषण प्रो. देवी प्रसाद द्विवेदी ने कहा कि श्रीराम हर प्राणी को जीने की कला सिखाते हैं। प्राणी को यथार्थ का बोध कराते हैं। प्रो. भगवती शरण शुक्ल बोले कि प्रभु श्रीराम के नाम का जितना भी चिंतन किया जाए, कम है। वह हमारे ह्रदय में विराजमान हैं।

श्रेय का त्याग करने वाले मूर्तिमान धर्म हैं श्रीराम

अयोध्या से पधारे जगद्गुरु रामानुजाचार्य विद्याभास्कर जी महाराज ने कहा कि श्रीराम का जीवन प्रत्येक मनुष्य के भीतर मनुष्यता को उदीप्त करने की प्रेरणा देता है। इसका अभाव ही आज के समय का सबसे बड़ा संकट है। हम निज संबंधों की मर्यादा विस्मृत करते जा रहे हैं। परिवार विखंडित हो रहे हैं, व्यक्ति एकाकी होता जा रहा है। हम उन वस्तुओं पर भी अधिकार चाहते हैं, जो हमारी हैं ही नहीं। जबकि श्रीराम का संपूर्ण जीवन त्याग का साक्षात प्रतिरूप है।

उन्होंने उस राज्य का भी त्याग किया, जिस पर उनका अधिकार था। श्रीराम श्रेय का भी त्याग करते हैं। आज के समय में जहां श्रेय लेने की होड़ मची हो, श्रीराम का जीवन और भी प्रासंगिक हो जाता है।

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श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के पूर्व अध्यक्ष रहे पद्मश्री पं. हरिहर त्रिपाठी कृपालुजी महाराज ने कहा कि श्रीराम सदाचार, धर्म व सत्य के स्वरूप है। वह भारतीय संस्कृति के सनातन अंग हैं।

भजन-कीर्तन और नृत्य नाटिका से माहौल झंकृत 

आठ सत्रों के इस उत्सव में विद्वतजनों ने श्रीराम के विराट व्यक्तित्व पर चर्चा की। निवेदिता शिक्षा सदन की छात्राओं ने रामायण पर नृत्य नाटिका प्रस्तुत कर सबका मन मोहा। संस्कृत विश्वविद्यालय के संस्कृत विद्या विभाग के छात्रों ने स्वस्तिवाचन, नृत्यांगना करिश्मा केशरी ने राम वंदना पर नृत्यांजलि प्रस्तुत की।

व्यास मौर्य, आस्था शुक्ला व अमरेश शुक्ला के राम भजनों पर सुर छिड़ा तो माहौल झंकृत हो गया। पद्मश्री अजिता श्रीवास्तव व डॉ. सुचरिता गुप्त ने सोहर गायन से मन मोह लिया। बनारस के बटुकों ने श्रीराम महाआरती के बाद रामोत्सव का समापन हुआ।

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