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Varanasi: काशी में है नेताजी सुभाष चंद्र बोस का मंदिर, राष्ट्र देवता के रूप में होती हैं पूजा; दलित बेटी है पुजारी

Varanasi वाराणसी के लमही क्षेत्र स्थित इंद्रेश नगर में स्थित सुभाष मंदिर की सीढ़ियां लाल रंग की हैं जो क्रांति की प्रतीक है चबूतरा सफेद रंग का है जो शांति का प्रतीक है। वहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की छह फीट की मूर्ति काले रंग की है जो शक्ति का प्रतीक है। ऊपर सुनहले रंग का छत्र लगा है जो समृद्धि का प्रतीक है।

By Mukesh Chandra Srivastava Edited By: Swati Singh Updated: Sat, 20 Jan 2024 03:54 PM (IST)
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वाराणसी के लमही क्षेत्र स्थित इंद्रेश नगर में स्थित सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा की आरती करती दलित पुजारी।
मुकेश चंद्र श्रीवास्तव, वाराणसी। मंदिरों के शहर काशी में भारत के वह महानायक राष्ट्र देवता के रूप में पूजे जाते हैं, जिन्होंने इस देश को न सिर्फ आजादी दिलाई बल्कि भारतीय स्वाभिमान को भी दुनियाभर में सम्मान दिलाया। वाराणसी के लमही क्षेत्र स्थित इंद्रेश नगर में स्थित सुभाष मंदिर की सीढ़ियां लाल रंग की हैं जो क्रांति की प्रतीक है, चबूतरा सफेद रंग का है जो शांति का प्रतीक है।

वहीं नेताजी सुभाष चंद्र बोस की छह फीट की मूर्ति काले रंग की है जो शक्ति का प्रतीक है। ऊपर सुनहले रंग का छत्र लगा है जो समृद्धि का प्रतीक है। इस मंदिर का देश के संदर्भ में संदेश है कि “क्रांति के पथ पर चलकर शांति की स्थापना होती है और शांति के आधार पर शक्ति प्रतिष्ठित होती है जिससे समृद्धि आती है।” इस मंदिर की पुजारी दलित बेटी है। इस मंदिर की स्थापना 2020 में हुई।

126वीं जयंती बनेगी पराक्रम दिवस के रूप में

वहीं 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पराक्रम दिवस में मनाने का संकल्प लिया गया है। इसे लेकर 20 जनवरी से पांच दिवसीय सुभाष महोत्सव शुरू होने जा रहा है। पहले दिन महिला अधिवेशन, दूसरे दिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं कांग्रेस विषय पर अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी, 22 जनवरी को असम और मणिपुर के कलाकारों द्वारा लोक नृत्य की प्रस्तुति श्रीराम उत्सव को लेकर, 23 को वैदिक ब्राह्मणों द्वारा पूजन, नारियल समर्पण एवं सुभाष गाथा व अंतिम दिन 24 24 जनवरी को असम, मणिपुर, उत्तर प्रदेश, जम्मू कश्मीर के सामाजिक कार्यकर्ताओं का सम्मान व संस्कृति मिलन समारोह का आयोजन होना है।

यहां होता है आजाद हिंद सरकार का राष्ट्रगान

देश विदेश के सुभाषवादी इस मंदिर में आकर दर्शन करते हैं और मन्नत मांगते हैं। काशी में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को महानायक और देवता दोनों का दर्जा दिया गया है, इसलिये परम् पावन राष्ट्र देवता सुभाष के रूप में प्रतिष्ठित सुभाष मन्दिर सुबह सात बजे भारत माता की प्रार्थना और आरती के साथ खुलता है और शाम को आजाद हिंद सरकार के राष्ट्रगान शुभ सुख चैन की बरखा बरसे… गाकर सलामी दी जाती है, फिर महाआरती होती है। अंतिम सलामी देने के बाद मन्दिर का पट बन्द कर दिया जाता है।

दलित बेटी है इस मंदिर की पुजारी

सुभाष मंदिर की पुजारी दलित बेटी को नियुक्त किया गया है। सामाजिक कुरीतियों को चुनौती देने वाला यह मंदिर किसी तरह के भेद को नहीं मानता। किसी भी धर्म जाति के लोग यहां दर्शन कर राष्ट्रभक्ति को प्रेरित कर सकते हैं। विशाल भारत संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. राजीव श्री गुरुजी ने 2020 में इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

इस मंदिर में चढ़ता है भोजन

मंदिर में प्रतिदिन सुभाष भवन में बनने वाले भोजन को ही चढ़ाया जाता है। पहले सुभाष मन्दिर में भोग लगाने के बाद ही सुभाष भवन में रहने वाले सभी सदस्य भोजन करते हैं।

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