बाजार में मौजूद आयुर्वेदिक दवाओं पर है शक तो करा सकते जांच, देश में हैं 74 केंद्र
अगर आयुर्वेदिक औषधियों में कोई दोष हो ताे आयुर्वेदिक औषधि निरीक्षक जांच करते हैं। इस दौरान तीन मानक मिसब्रांडेड एडल्टरेटेड व स्पूरियस की जांच की जाती है। इनमें कमी पाई जाती है तो आरोपित पर आर्थिक दंड औषधि का जब्तीकरण से लेकर लाइसेंस के निरस्तीकरण की कार्रवाई का प्राविधान है।
By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Fri, 28 May 2021 09:20 AM (IST)
वाराणसी, जेएनएन। बाजार में दो प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियां उपलब्ध हैं। पहली शास्त्रीय औषधियां व दूसरी पीएनपी (पेटेंट एंड प्रोपरायटरी)। आयुर्वेदीय औषधि निर्माण लाइसेंसी प्रयादी समिति, आयुर्वेद निदेशालय उत्तर प्रदेश के सदस्य एवं बीएचयू रस शास्त्र एवं भैषज्य विभाग के अध्यक्ष प्रो. आनंद चौधरी के अनुसार शास्त्रीय औषधियां उन्हेंं कहते हैं जो कि औषधी एवं प्रसाधन अधिनियम 1940 के अनुच्छेद प्रथम में उल्लिखित 55 आयुर्वेदिक पुस्तकों के आधार पर बनती है। इनके घटक और अनुपात प्राचीन पुस्तकों के अनुसार ही होते हैं। वहीं दूसरी तरह की पीएनपी आयुर्वेदिक औषधियां आधुनिक वैद्यों के अनुभव एवं आधुनिक आयुर्वेदीय औषधि निर्माताओं द्वारा प्रायोजित शोध पर आधारित होती हैं। हालांकि इसमें एक ही अनिवार्यता होती है कि उसके घटक आयुर्वेदिक शास्त्रों में वर्णित हों। इसमें लिव-52, ओजस, एडीजोवा, लिवोमिन, पंचारिष्ट, रत्न प्राश आदि शामिल हैं। ये दोनों ही औषधियां क्रमश: औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम 1940 के सेक्टर 3 ए एवं 3 एच में क्रमश: परिभाषित हैं। अगर किसी को इन औषधियों पर शक है तो वे देशभर में स्थित लखनऊ और बनारस समेत 74 केंद्रों पर शिकायत कर इसकी जांच करा सकते हैं। प्रो. चौधरी आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण, शेाध, ट्रायल, बाजार में आने से लेकर दोषी पाए जाने पर निर्धारित कार्रवाई के बारे में बता रहे हैं
प्रो. आनंद चौधरी बताते हैं कि आयुष मंत्रालय के केंद्रीय आयुर्वेद विज्ञान अनुसंधान परिषद ने फरवरी 2018 में नई आयुर्वेदीय औषधियों के विकास, निर्माण, संरक्षण एवं क्लीनिक ट्रायल के विस्तृत नियम प्रकाशित किए हैं। नई औषधियों के क्लीनिकल ट्रायल के नियम लगभग एलोपैथिक के समान ही है। इसमें रेंडम क्लीनिकल ट्रायल (आरसीटी) की अनिवार्यता भी दशार्यी गई है। औषधियों का ट्रायल चार चरणों में किया जाता है। कतिपय शास्त्रीय आयुर्वेदीय औषधियों के क्लीनिकल ट्रायल में अंतिम दो चरण का डेटा ही मांगा जाता है, जबिक नई पीएनपी आयुर्वेदि औषधियों के लिए चारों चरण का ट्रायल होना अनिवार्य है।
चार चरण में होते हैं ट्रायल
- क्लिनिकल अध्ययन के चार चरण होते हैं। इसमें विभिन्नता यह होती है कि इसमें परीक्षित औषधि का मरीजों की एक निश्चित संख्या के ऊपर किया जाता है।- प्रथम चरण के लगभग 100 मरीज से शुरू होकर चतुर्थ चरण में पांच हजार तक हो जाता है।
- इसमें प्राथमिक अवस्था में सामान्य चिकित्सकीय प्रभाव से लेकर अंतिम अवस्था में अन्य औषधियों के साथ इसके सम्मिलित प्रभाव या संभावित दुष्प्रभाव तक अध्ययन किया जाता है।
- क्लीनिकल ट्रायल में पूर्णतया सुरक्षित डाटा मिलने पर ही औषधि बाजार में विपणन के लिए लांच की जाती है।- इससे पहले प्रयोगशाला में प्री क्लीनिकल स्टडी की जाती है। इस दौरान औषधि की संरचना का निर्धारण एवं जंतुओं पर चिकित्सकीय गुण का परीक्षण किया जाता है ऐसे मिलता है लाइसेंस आयुर्वेदिक औषधि के निर्माण के लिए संबंधित राज्य के आयुर्वेद निदेशालयों के द्वारा लाइसेंस तभी निर्गत किया जाता है जब आवेदनकर्ता उत्तम उत्पादन पद्धति (जीएमपी) के सभी मानकों को पूरा करता है। जीएमपी की शर्तों में आवेदनकर्ता के पास एक निश्चित मात्रा में जमीन, यंत्र, उपकरण एवं तकनीकी कर्मचारियों का होना अनिवार्य है। आवेदनकर्ता पहले निदेशालय में आवेदन करता है। फिर जिले के आयुर्वेद अधिकारी इसका निरीक्षण कर इसकी अाख्या देता है। वह आख्या राज्य की लाइसेंस प्रदायी समिति के समक्ष रखा जाता है। फिर उसके गुण-दोष के आाधार पर लाइसेंस निर्गत किया जाता है या नहीं किया जाता है
औषधि विक्रय के लिए लाइसेंस की आवश्यकता नहीं आयुर्वेदिक औषधियों के विक्रय के लिए किसी भी तरह की लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है। वैसे यह एक दुर्भाग्यपूर्ण विषय भी है। हालांकि अनुभवी लोगों द्वारा ही आैषधियों का विक्रय किया जाता है। खरीदने के लिए भी कानूनी रूप से पर्ची पर लिखा हाेने की आवश्यकता नहीं है, लेकिन व्यवहार में दोनों ही प्रक्रिया विशेषज्ञों के द्वारा ही की जाती है
उपलब्ध कराना होता है डेटा -पीएनपी आयुर्वेदिक औषधियों के लिए औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 के अंतर्गत 158 में वर्णित अनिवार्यताओं की पूर्ति करनी होती है। आवेदनकर्ता अपने आवेदन के साथ नियम 158 के मानकों के अनुरूप डेटा उपलब्ध कराता है। उसकी विवेचना कर लाइसेंस के बारे में विचार किया जाता है।जांच में दोषी पर होती है कार्रवाई
अगर आयुर्वेदिक औषधियों में कोई दोष हो ताे आयुर्वेदिक औषधि निरीक्षक जांच करते हैं। इस दौरान तीन मानक मिसब्रांडेड, एडल्टरेटेड व स्पूरियस की जांच की जाती है। अगर इनमें कमी पाई जाती है तो आरोपित पर आर्थिक दंड, औषधि का जब्तीकरण से लेकर लाइसेंस के निरस्तीकरण तक की कार्रवाई का प्राविधान है।वाराणसी, लखनऊ सहित देश में 74 केंद्र जहां कर सकते हैं शिकायत
वैसे विज्ञापनों के लिए भी आयुष मंत्रालय ने औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 170 के तहत दिसंबर 2019 में नियम में निर्धारित किए हैं जो राज्यों को पालन करना होता है। साथ ही आयुर्वेदिक औषधियों की गुणवत्ता साबित करने के लिए आयुष मंत्रालय की ओर से फार्माको विजिलेंस कार्यक्रम भी चलाया जाता है। इसका मुख्यालय अखिल भातरीय आयुर्वेद संस्थान नई दिल्ली में है। साथ ही पूरे देश में 74 केंद्र हैं, जहां पर आयुर्वेदिक चिकित्सक के साथ आम जनता भी शिकायत कर सकती है। या फिर इस pharmacovigilanceayush
@
gmail.com मेल आइडी पर भी शिकायत भेजी जा सकती है।
आल इंडिया इंस्टीट्यूट आफ आयुर्वेदा, नई दिल्ली के एसोसिएट प्रोफेसर डा. गालिब बता रहे हैं उत्तर भारत में कहां-कहां हैं फार्माको विजिलेंस केंद्र- सेंट्रल आयुर्वेदा रिसर्च इंस्टीट्यूट फार कार्डियोवास्कुलर डिजीज, पंजाबी बाग-नई दिल्ली।- आरजी पोस्ट ग्रेजुएट आयुर्वेदा कालेज, पपरोला-हिमाचल प्रदेश।- उत्तराखंड आयुर्वेद यूनिवर्सिटी, मेन कैंपस, हर्रावाला-देहरादून।
- सीबीपी आयुर्वेदा चरक संस्थान, खेरा डाबर- दिल्ली।- इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंस, बीएचयू-वाराणसी।- श्री धन्वंतरी आयुर्वेदिक कालेज एंट हास्पिटल, कुरूक्षेत्र।- श्रीकृष्णा आयुष यूनिवर्सिटी, कुरुक्षेत्र।- सेंट्रल रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ यूनानी मेडिसिन, लखनऊ।- रिजनल रिसर्च इंस्टीट्यूट आफ यूनानी मेडिसिन, दिल्ली।
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