बलिया के इस गांव की अपनी तहसील 120 किलोमीटर दूर, सरकारी काम के लिए दूरी बनती चुनौती
उत्तर प्रदेश व बिहार की सीमा पर बसा नौरंगा। इस गांव की आबादी 40 हजार। आधे हिस्से पर यूपी और आधे पर बिहार की हुकूमत है। यहां के रोहित कुमार यादव को अपने ही तहसील तक पहुंचने में करीब 120 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी।
By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Sun, 25 Jul 2021 04:02 PM (IST)
बलिया [लवकुश सिंह]। उत्तर प्रदेश व बिहार की सीमा पर बसा नौरंगा। इस गांव की आबादी 40 हजार। आधे हिस्से पर यूपी और आधे पर बिहार की हुकूमत है। यहां के रोहित कुमार यादव को अपने ही तहसील तक पहुंचने में करीब 120 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ी। आप सोच रहे होंगे कि यह कैसे।
थोड़ा डिटेल में आपको समझाते हैं। दिसंबर 2020 में उन्हें निवास प्रमाण पत्र बनवाना था। चूंकि उन्हें छात्रवृत्ति चाहिये थी। उस वक्त अगर गंगा में पीपा पुल बना होता तो उनकी दूरी सिर्फ 20 किमी होती। लेकिन वे गांव की पगडंडी से छह किलोमीटर पैदल चले और चक्की नौरंगा बाजार (बिहार) पहुंचे। यहां वे यात्रियों से खचाखच भरी मिनी बस पर सवार हुए। किसी तरह लटक कर आरा के ब्रम्हपुर पहुंचे। यहां से बक्सर। फिर बलिया होते हुए अपनी तहसील बैरिया आ गए। लेकिन पहली बार में उनका काम नहीं हुआ। दूसरी बार जनवरी में फिर चक्कर लगाया। इस बार भी उनके हाथ निराशा लगी। तंग आकर उन्होंने प्रमाण पत्र बनवाने की कोशिश ही छोड़ दी। बकौल रोहित, अफसरों ने उनकी एक नहीं सुनीं, सिर्फ दौड़ाया। एक नहीं, कई बार। वह इतने दूर से गये थे, उनका काम तो पहले होना चाहिये था। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इस विकट स्थिति से सिर्फ रोहित ही नहीं, बल्कि उनके जैसे हजारों लोग रोज झेल रहे हैं। आजादी के बाद से उनके हिस्से सिर्फ मुसीबत आई। वह भी तब, जब इस गांव में यूपी व बिहार की सरकार बराबर चलती है। विकास के सब्जबाग दिखाकर हर बार वोट मांगे जाते हैं।
गर्मी में सिर्फ चार महीने रहता है पीपा पुल
गर्मी में हर साल एक पीपा पुल बनता है, जिससे तीन-चार माह लोगों को कुछ राहत मिलती है लेकिन बाद के दिनों में गांव के लोगों को सड़क मार्ग से आरा के ब्रम्हपुर, बक्सर होते तहसील पहुंचना पड़ता है। यूपी-बिहार की सीमा पर ऐसे दर्जनों घर मिले जिनका घर तो यूपी में था लेकिन द्वार बिहार में पड़ता है। ऐसे घरों के लोग दोनों तरफ की सुविधाओं से वंचित हैं।
दो प्रांतों से मांगा राशन, नहीं मिला अधिकार
गांव के घुरूल मंसूरी व मुन्नी खातून ने बताया कि राशन कार्ड के लिए यूपी और बिहार दोनों तरफ आवेदन किया लेकिन कहीं से भी न कार्ड और न ही राशन मिला। किसान रवींद्र ठाकुर व जितेंद्र ठाकुर ने बताया कि उन्हें खाद या बीज भी दोनों तरफ से नहीं मिलता।
गांव का इतिहास-भूगोलबैरिया विधानसभा क्षेत्र के नौरंगा में 7800 मतदाता हैं। विधायक सुरेंद्र सिंह हैं। गांव में पुरवे नौरंगा, चक्की नौरंगा, भुवाल छपरा, उदयी छपरा के डेरा है। यह इलाका बैरिया विधान सभा में पड़ता है। गांव का मुख्य धंधा खेती और पशुपालन है, यहां बिजली एक माह पहले एक समझौते के तहत एक माह पहले विधायक के प्रयास से पहुंची है लेकिन सड़कें नहीं है, कोई इंटर कालेज भी नहीं है। गांव में एक राजकीय इंटर कालेज का निर्माण हो रहा है। यह सौगात उप मुख्यमंत्री डा. दिनेश शर्मा ने 2019 में दी थी। गांव में पांच प्राथमिक और एक मिडिल स्कूल है लेकिन शिक्षक पढ़ाई के नाम पर सिर्फ काेरम पूरा करते हैं। गांव का आधा हिस्सा विधानसभा शाहपुर बिहार मेें है, लगभग आठ हजार मतदाताओं वाले इस इलाके के विधायक राजद के राहुल तिवारी हैं।
एक ही बाजार दोनों तरफ का आधारयूपी-बिहार दोनों सीमा के लोग चक्की नौरंगा बाजार से जरूरी सामानों की खरीदारी करते हैं। बाजार की सड़क का एक हिस्सा बिहार के आरा भोजपुर शाहपुर के परसौंडा गांव की सीमा में पड़ता है तो दूसरा बलिया यूपी के बैरिया ब्लाक के पंचायत नौरंगा में। बाजार तक सड़क बिहार सरकार ने बनाई है। नौरंगा चक्की नाम से बिहार और यूपी दोनों में पुरवा है। नौरंगा अस्पताल में चिकित्सक की जगह बकरियां ही बैठीं मिली। ज्यादा तबीयत खराब होने पर लोग बिहार के गौरा, ब्रह्मपुर या आरा पहुंचते हैं।
बोले प्रधान : सरकार नहीं देती विकास पर जोरयूपी सीमा में स्थिति नौरंगा के प्रधान सुरेंद्र ठाकुर ने बताया कि सरकार इस गांव के विकास पर जोर नहीं देती। यहां जब तक पक्का पुल नहीं बनेगा, हम यूपी का होकर भी यूपी के नहीं हैं। एक पक्का पुल इस गांव के सामने बनना था जिसे यहां से 15 किमी दूर बनाया जा रहा है।
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