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Gyanvapi Case: तीन साल पहले ही कोर्ट ने दे दिया था ज्ञानवापी में सर्वे का आदेश, 5 पुरातत्ववेत्ताओं को भी किया गया था शामिल

Gyanvapi Case सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत ने आठ अप्रैल 2021 को ही ज्ञानवापी में खोदाई करके सच सामने लाने का आदेश दे दिया था। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार को सर्वे में पांच ख्यात पुरातत्ववेत्ताओं को भी शामिल करने का आदेश दिया था जिनमें दो अल्पसंख्यक समुदाय के हों। पुरातत्व विज्ञान के विशेषज्ञ को कमेटी का पर्यवेक्षक बनाया जाए।

By Jagran News Edited By: Swati Singh Updated: Thu, 08 Feb 2024 09:15 AM (IST)
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तीन साल पहले ही कोर्ट ने दे दिया था ज्ञानवापी में सर्वे का आदेश
विधि संवाददाता, वाराणसी। ज्ञानवापी में स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से 1991 में पं. सोमनाथ व्यास व अन्य की ओर से दाखिल मुकदमे में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी के प्रार्थना पत्र पर सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की अदालत ने आठ अप्रैल 2021 को ही ज्ञानवापी में खोदाई करके सच सामने लाने का आदेश दे दिया था।

अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार को सर्वे में पांच ख्यात पुरातत्ववेत्ताओं को भी शामिल करने का आदेश दिया था, जिनमें दो अल्पसंख्यक समुदाय के हों। पुरातत्व विज्ञान के विशेषज्ञ को कमेटी का पर्यवेक्षक बनाया जाए।

'ज्ञानवापी में कोई हिंदू मंदिर तो नहीं'

अदालत ने आदेश में कहा था कि एएसआई सर्वे का उद्देश्य यह है कि ज्ञानवापी में कोई हिंदू मंदिर तो नहीं था, जिस पर मस्जिद बना दी गई या अध्यारोपित या उसके ऊपर जोड़ दी गई। यदि ऐसा हुआ तो वर्तमान ढांचे के निर्णाम की समयावधि, आकार, वास्तुशिल्प और बनावट, निर्माण सामग्री आदि का पता लगाया जाए। कमेटी यह भी पता लगाएगी कि यदि वहां मंदिर था तो किस हिंदू देवता अथवा देवतागण को समर्पित था। इसके लिए कमेटी ज्ञानवापी के प्रत्येक भाग में प्रवेश कर सकेगी और सर्वे में जीपीआर (ग्राउंड पेनेट्रेटिंग राडार) अथवा जीयो रेडियोलॉजी सिस्टम अथवा दोनों का प्रयोग करेगी।

समानांतर खोदाई तभी होगी जब कमेटी मानेगी कि महत्वपूर्ण अवशेष जमीन के नीचे मिल सकते हैं। इस दौरान वादी अथवा प्रतिवादी पक्ष को संबल प्रदान करने वालीं प्राचीन कलाकृतियों को सुरक्षित, संरक्षित रखा जाए। किसी गहरी खोदाई से वर्तमान ढांचा गंभीर रूप से प्रभावित होता है तो फोटोग्राफी, वीडियोग्राफी और बाहरी माप, नक्शा, ड्राइंग आदि की मदद से सर्वे किया जाए। वा

कोर्ट में वकील ने पेश की थी ‘हिस्ट्री ऑफ बनारस’ पुस्तक

दमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने दलील दी थी कि वर्तमान वाद में विवादित स्थल की धार्मिक स्थिति 15 अगस्त 1947 को मंदिर की थी अथवा मस्जिद की, इसके निर्धारण के लिए मौके के साक्ष्य की आवश्यकता है। विजय शंकर रस्तोगी ने बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा.एएस आल्टेकर की लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ बनारस’ पुस्तक प्रस्तुत की थी। पुस्तक में ह्वेनसांग द्वारा विश्वनाथ मंदिर के लिंग की 100 फीट ऊंचाई और उस पर निरंतर गिरती गंगा की धारा के संबंध में किए गए उल्लेख किया है।

पुरानी मंदिर को चुनकर मस्जिद का दिया गया रुप

इन ऐतिहासिक तथ्यों का उल्लेख करते हुए विजय शंकर रस्तोगी ने कहा कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा के दीवारों में अंदरूनी और बाहरी विद्यमान हैं। पुरानी मंदिर की दीवारों और दरवाजों को चुनकर वर्तमान ढांचे का रूप दिया गया है। पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे, जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। खोदाई करके उनके चिह्न देखे जा सकते हैं। इस फैसले को अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी।

ज्ञानवापी में अतिरिक्त सर्वे की मांग पर 12 को सुनवाई

स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से 1991 में पं. सोमनाथ व्यास व अन्य की ओर से दाखिल मुकदमे में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने बुधवार को सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) प्रशांत कुमार सिंह की अदालत में ज्ञानवापी में अतिरिक्त एएसआई सर्वे कराने के लिए प्रार्थना पत्र दिया। सुन्नी वक्फ बोर्ड, अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को प्रार्थना पत्र की प्रति सौंपी गई, ताकि उनकी ओर से आपत्ति और तर्क रखे जा सकें। अगली सुनवाई 12 फरवरी को होगी।

हाई कोर्ट ने 19 दिसंबर 2023 को शृंगार गौरी वाद में ज्ञानवापी में हुए एएसआइ सर्वे की रिपोर्ट वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी और सिविल जज (सीनियर डिवीजन फास्ट ट्रैक) कोर्ट को भी देने का आदेश दिया था, ताकि सुनिश्चित किया जा सके कि सिविल जज (सी.डि. फास्ट ट्रैक) आशुतोष तिवारी की कोर्ट के आठ अप्रैल 2021 के आदेश का अनुपालन शेष रह गया हो तो पुनः सर्वे आदेश पारित किया जाए।

तलगृह में चार गुणा चार फीट की सुरंग बनाकर सर्वे की मांग

आराजी संख्या 9131 व 9132 में बड़ा मंदिर, चारदीवारी और कई छोटे मंदिर हैं, जिनके मालिक स्वयंभू काशी विश्वेश्वर है। वर्तमान में श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर न्यास परिषद सिर्फ प्रबंधन देखता है और इन आराजियों पर वास्तविक मालिकाना हक स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर का है। रुकावटों की वजह अभी कई स्थानों पर सर्वे नहीं हो सका है। मुख्य शिखर के नीचे तलगृह को तीन तरफ से बंद किया गया है।

तलगृह में मलबा भरा होने के कारण ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार तकनीक से भी परिणाम नहीं मिल सका। अदालत ने आठ अप्रैल 2021 के आदेश में कहा कि मुख्य शिखर के नीचे तलगृह में चार गुणा चार फीट की सुरंग बनाकर जीपीआर तकनीक से सर्वे किया जाए। तभी पता चलेगा कि उसके नीचे कुआं, शिवलिंग, अरघा है या नहीं। जहां अभी तक सर्वे नहीं हो सका है, उन सभी स्थानों की भी वैज्ञानिक विधि से जांच की जाए।

पानी की टंकी की जांच आवश्यक

सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सील पानी टंकी को नुकसान पहुंचाए बगैर उसकी जांच आवश्यक है, ताकि स्पष्ट हो सके कि वहां मिली आकृति शिवलिंग है या फव्वारा। इससे स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर को मालिकाना हक मिलने के साथ धार्मिक स्वरूप का निर्धारण हो सकेगा। अदालत में विजय शंकर रस्तोगी, राजेंद्र प्रताप पांडेय और अमरनाथ शर्मा ने बहस की और कहा कि हाई कोर्ट ने स्थानीय अदालत को छह माह के भीतर मुकदमे का निस्तारण करने का आदेश दिया है।

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