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तिरुपति मंदिर के प्रसाद में मिलावट पर राजनीति गरम, पूर्व राष्ट्रपति ने मिलावट को बताया पाप; गौमाता के लिए कही ये बात

तिरुपति मंदिर के तिरुमाला प्रसाद में मिलावट के मामले ने देश की राजनीति में हलचल मचा दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस पर चिंता जताते हुए इसे पाप बताया है। उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद आस्था का प्रतीक है और इसमें मिलावट करना निंदनीय है। इस घटना ने लोगों में शंका उत्पन्न की है। कोविंद ने खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।

By Sangram Singh Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Sun, 22 Sep 2024 04:36 PM (IST)
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बीएचयू में राष्ट्रीय संगोष्ठी में विचार व्यक्त करते पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ गोविंद । जागरण

जागरण संवाददाता, वाराणसी। तिरुपति मंदिर के तिरुमाला प्रसाद में मिलावट ने देश की राजनीति गरमा दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने लड्डू विवाद पर चिंता जताई और मिलावट को पाप बताया है।

काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शनिवार को आयोजित ''भारतीय गाय, जैविक खेती एवं पंचगव्य चिकित्सा'' विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उन्होंने कहा कि श्रद्धालुओं के लिए प्रसाद आस्था का प्रतीक है और इसमें मिलावट करना निंदनीय है। तिरुपति तिरुमाला प्रसादम जैसी घटनाएं लोगों में शंका उत्पन्न करतीं हैं। हर किसी के मन में प्रसाद के प्रति श्रद्धा होती है।

काशी आगमन के दौरान इस बार मुझे बाबा विश्वनाथ के दर्शन का सौभाग्य नहीं प्राप्त हो सका, लेकिन मेरे कुछ सहयोगी मंदिर गए थे। वह प्रसाद लेकर आए तो उस समय मेरे मन में तिरुमाला प्रसादम की बात खटकी। यह हर मंदिर और तीर्थस्थल की कहानी हो सकती है।

हिंदू शास्त्रों में ऐसी घटनाओं को पाप कहा गया है। कोविन्द ने कहा कि खाद्य पदार्थों में हो रही मिलावट दुर्भाग्यपूर्ण है। किसान भी सोचता है कि अगर उसके पास सौ बीघा खेत है तो वह 10 बीघा खेती रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल के बगैर करे ताकि गोवंश आधारित खेती से उसे और उसके परिवार को केमिकल मुक्त अन्न मिले।

वह किसान भूल जाता है कि गेहूं और धान की खेती तो ऐसे कर सकता है लेकिन मसाला और बाकी अन्न, सब्जियों की खेती व मिठाई के लिए बाजार पर ही निर्भर रहना पड़ता है। कुछ किसानों की यही सोच है कि वह बिक्री करने के लिए फसलों में कीटनाशकों व रासायनिक खादों का प्रयाेग करते हैं ताकि अच्छी उपज मिले और वह अधिक मुनाफा कमा सकें।

ऐसी एकांगी सोच भारतीय संस्कृति के अनुरुप नहीं हो सकती है। आखिर वह आइसोलेट होकर कैसे सोच सकते हैं। ऐसे में गोवंश के विज्ञानी देश को समाधान बताएं।

संस्कृति का केंद्र रहीं गोमाता कचरे के ढेर में तलाश रहीं भोजन, दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तक कैसे पहुंचे

आयुर्वेद संकाय के काय चिकित्सा विभाग और गो-विज्ञान अनुसंधान केंद्र देवलापुर द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने कहा कि हजारों वर्षों से हमारी संस्कृति का केंद्र रहीं गो माता अपनी भोजन की तलाश में इधर से उधर भटकने और कचरे के ढेर में भोजन को ढूढ़ते हुए पाई जातीं हैं। इस दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति तक कैसे पहुंच गए।

पिछले कुछ दशकों में उत्पादन बढ़ाने के लक्ष्य से गोमूत्र व गाेमय की जगह रासायनिक तत्वों का उपयोग शुरू हुआ, इससे गोवंश की उपयोगिता घटने लगी। उत्पादकता तो बढ़ा ली, लेकिन इन रासायनिक कीटनाशक और खादों के इस्तेमाल से कितनी कीमत चुका रहे हैं।

पर्यावरण और मानव सेहत को नुकसान पहुंच रहा है। खेत अपनी प्राकृतिक उर्वरता खोते जा रहे हैं। सौ रुपये कमाने के लिए ऐसा नहीं करें कि उस रोग के लिए के लिए दाे सौ रुपये खर्च करना पड़े। आज हर विस्तारित परिवार में लोग कैंसर से ग्रस्त हैं।

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि जब कोई विज्ञानी प्रयोग करता है तो वह बाहरी दुनिया के प्रभाव को इग्नोर करता है। विज्ञानी सोच का दायरा जान-बूझकर सीमित रखता है। यह अप्रोच भौतिक विज्ञान में तो काम कर सकती है लेकिन इकोलाजिकल, सोशल और बायोलाजिकल वर्किंग में ऐसी सीमित सोच का प्रयोग हानिकारक साबित हो सकती है।

गोवंश आज राष्ट्रीय चिंतन और नीति निर्धारण का विषय बन गया है, इस क्षेत्र में सीएसआइआर, एनवीआरआइ व आइआइसीटी जैसी शोध संस्थाएं अपना योगदान दे रही हैं। कैंसर जैसी असाध्य बीमारियों में पंचगव्य चिकित्सा कारगर सिद्ध हो रही है।

केंद्र सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन दे रही है, इसे ग्राम विकास को गति मिल रही। गोवंश आधारित खेती के लिए जन-जागरण अभियान चलाने की जरुरत है, लेकिन सरकार पर निर्भरता कम होनी चाहिए।