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वाराणसी में गंगा में दो और वरुणा में बह रहे नौ नाले, कार्य शैली से प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड व एनजीटी नाराज

वाराणसी में वरुणा नदी किनारे चैनलाइजेशन होने के पहले नगरीय सीमा के भीतर 15 नाले वरुणा नदी में गिर रहे थे लेकिन वरुणा कारिडोर बनने के बाद छह नाले टैप हो गए लेकिन अब भी नौ बड़े नाले वरुणा में गिर रहे हैं।

By santosh kumar tiwariEdited By: Saurabh ChakravartyUpdated: Tue, 11 Oct 2022 09:21 PM (IST)
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वाराणसी के नगवा स्थित गंगा में गिरा रहा असि नाले का गंदा पानी ।
जागरण संवाददाता, वाराणसी : करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी गंगा और उसकी सहायक नदी वरुणा में सैकड़ों एमएलडी सीवर का मलजल रोजाना अब भी बह रहा है। यह हाल तब है जब बनारस गंगा टाउन में दूसरे नंबर पर है। जल निगम की इस लापरवाही से गंगा निर्मलीकरण अभियान को पलीता लग रहा है।

प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और एनजीटी इसे लेकर नाराज है। उनकी कार्यशैली से नगर निगम भी बदनाम हो रहा है। चूंकि नगरीय सीमा में स्वच्छता से संबंधित काम करने में नगर निगम की एनओसी जरूरी होती है। ऐसे में बनारस में सीवरेज के काम तो हुए लेकिन असि व नगवां नाले की फाइनल टैपिंग न होने से अब भी सैकड़ों एमएलडी सीवेज गंगा में गिर रहा है। इस मामले में नगर आयुक्त की जवाबदेही तय करते हुए उनके खिलाफ अभियोजन की कार्यवाही के लिए शासन से अनुमति मांगी गई है।

नौ नाले अब भी गिर रहे वरुणा में

वरुणा नदी किनारे चैनलाइजेशन होने के पहले नगरीय सीमा के भीतर 15 नाले वरुणा नदी में गिर रहे थे लेकिन वरुणा कारिडोर बनने के बाद छह नाले टैप हो गए लेकिन अब भी नौ बड़े नाले वरुणा में गिर रहे हैं। जो नाले गिर रहे हैं उनमें सेंट्रल जेल रोड नाला, सारंग तालाब नाला, अर्दली बाजार नाला, चमरौटिया नाला, खजुरी कालोनी नाला, बनारस नाला नम्बर पांच, हुकुलगंज नाला, नई बस्ती नाला और नरोखर नाला है। वरुणा से होते हुए मलजल अंतत: गंगा में ही जाता है।

1986 में गंगा निर्मलीकरण प्रारंभ

गंगा एक्शन प्लान के तहत गंगा निर्मलीकरण का अभियान काशी से ही शुरू हुआ था। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 14 जून 1986 को यहीं के दशाश्वमेध घाट पर गंगा एक्शन प्लान की नींव रखी थी। पहले चरण में नगर में सीवेज सिस्टम को बनाने का प्रस्ताव बना।

इसके तहत 80 एमएलडी का एसटीपी दीनापुर में स्थापित हुआ जिसमें अंग्रेजों के जमाने के शाही नाले को कनेक्ट किया गया। इस नाले से प्रतिदिन करीब 60 एमएलडी मलजल रोज निकलता था जो सीधे गंगा में जा रहा था। यह कार्य धीमी गति से होते हुए अपने तय समय से करीब दो साल देर से कुछ दिन पहले ही पूरा हुआ है।

नगर में क्रियान्वित सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट

-पुराने शहर का सीवेज सिस्टम : क्षमता-80 एमएलडी, लागत-50 करोड़

-वरुणापार सीवेज सिस्टम : क्षमता-120 एमएलडी, लागत-400 करोड़

-सिस वरुणा सीवेज सिस्टम : क्षमता 140 एमएलडी, लागत-500 करोड़

-बीएचयू के लिए भगवानपुर सीवेज सिस्टम : क्षमता 12 एमएलडी, लागत- 25 करोड़

-डीरेका का सीवेज सिस्टम : क्षमता- 10 एमएलडी, लागत-25 करोड़

-असि नाले को जोड़ता सीवेज सिस्टम : क्षमता 50 एमएलडी, लागत-145 करोड़

-रामनगर का सीवेज सिस्टम : क्षमता 12 एमएलडी, लागत-75 करोड़

फाइनल टैपिंग के लिए शासन से 308 करोड़ मंजूर हुआ

अस्सी व नगवां नाले की फाइनल टैपिंग के लिए शासन से 308 करोड़ मंजूर हुआ है। अब टेंडर प्रक्रिया पूरी करते हुए दोनों नालों को टैप करते हुए अवजल शोधित किया जाएगा।

एसके बर्मन, प्रोजेक्ट मैनेजर, गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई

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