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UP Lok Sabha Election: प्रेमचंद के लमही में मत खीचों 'राजनीति की दीवार', विकास के आगोश में हैं गांव

UP Lok Sabha Election 2024 मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों जैसी ही है उनके गांव की कहानी। हालांकि लमही अब शहर का हिस्सा बन चुका है। अब यहां मुखिया नहीं पार्षद की हुकूमत है। बावजूद यहां के मूल निवासी प्रेमचंद की तरह बिंदास होकर अपनी बात रखने में झिझक नहीं करते हैं। चुनावी माहौल को टटोलती विकास ओझा की रिपोर्ट...

By Ashok Singh Edited By: Swati Singh Updated: Tue, 23 Apr 2024 09:35 PM (IST)
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प्रेमचंद के लमही में मत खीचों 'राजनीति की दीवार', विकास के आगोश में हैं गांव

विकास ओझा, वाराणसी। कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही महज एक गांव नहीं है, कथा सम्राट की कहानियों का तिलिस्म भी है। ईदगाह के हामिद का चिमटा, गोदान का होरी और नमक का दरोगा का नायक...। सब लमही की लाइब्रेरी में अपनी शिद्दत के साथ मौजूद हैं।

मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों जैसी ही है उनके गांव की कहानी। हालांकि लमही अब शहर का हिस्सा बन चुका है। अब यहां मुखिया नहीं पार्षद की हुकूमत है। बावजूद, यहां के मूल निवासी प्रेमचंद की तरह बिंदास होकर अपनी बात रखने में झिझक नहीं करते हैं। चुनावी माहौल को टटोलती विकास ओझा की रिपोर्ट...

कुछ ऐसा दिखा लमही गांव

लमही में जब पहुंचे तो सबसे पहले मनोज नाम का एक युवा मिला, गांव का हालचाल पूछा तो कहा- यहां सबकी जय-जय है, आप खुद गांव में टहल लीजिए, आपको सब कुछ आइने की तरह दिख जाएगा। हमसे मत कहलवाइए...। लमही के प्रवेश द्वार पर ही बूढ़ी काकी व बैलों की जोड़ी की आकृति प्रेमचंद लिखित समृद्ध् कहानियों को याद दिला गई। समाज में बहुत कुछ बदला पर प्रेमचंद की कहानी और पात्र आज भी किसी न किसी कोने में आप उन्हें ढूंढ सकते हैं।

द्वार के आसपास सजी पिज्जा, ऐग रोल की दुकान बदलते खानपान को दर्शा रही थी। शायद, यह बता रही थी कि अब मुंशी जी का गांव अब वह पुराना गांव नहीं रहा। प्रेमचंद के आवास तक चमचमाती सड़कें विकास की कहानी खुद ब खुद गुनगुना रही थीं। हालांकि, इस गांव को पर्यटन स्थल के रूप में विकास की मंशा अधूरी ही दिखी। लाइब्रेरी में न कोई पढ़ने वाला दिखा न ही, किसी पर्यटक की हलचल दिखी। मुंशी जी के आवास के समीप का तालाब सुंदरीकरण का बोध कराते नजर आया पर हिफाजत के मामले में सरकारी तंत्र को कोसता दिखा। छोटी-छोटी दुकानों पर लोगों की जुटान तो दिखी पर राजनीति की बातों से परहेज करते दिखे।

याद आई प्रेमचंद की पंक्ति

प्रेमचंद की वह पंक्ति याद आ गई कि 'साहित्यकार देशभक्ति और राजनीति के पीछे चलने वाली सच्चाई नहीं बल्कि उसके आगे मशाल दिखाती हुई चलने वाली सच्चाई है।' शायद गांव की जेहन में प्रेमचंद समाए हुए हैं। हालांकि झुग्गी-झोपड़ी के समूल मिटा चुके इस गांव के रामलीला मैदान में युवा और बुजुर्ग एक साथ मंदिर पर बतकही में जुटे दिखे। महंगी जमीनों से शुरू हुई बात लोकसभा चुनाव के अखाड़े तक भी पहुंची।

चुनावी माहौल को लेकर लोगों ने कही ये बात

कुंज बिहारी विश्वकर्मा से पूछा कि इस बार चुनावी माहौल क्या है। बेझिझक उन्होंने कहा कि सांसद जी डा. महेंद्र पांडेय गांव की चिंता ही नहीं करते। प्रमोद गुप्ता तपाक से बोले, आप को क्या पता। सांसद जी आते हैं और गांव की चिंता भी करते हैं। विकास की बात करें तो आजमगढ़ मार्ग देखिए। कितना सुंदर बन रहा है। बनारस के विकास का डंका बज रहा है। देश दुनिया के लिए मॉडल बन चुका है।

राधेश्याम ने प्रमोद की बातों में हामी भरी पर बोले, आपकी बात सौ आने सही है लेकिन हम तो आज भी सीवेज-पानी की समस्या से त्रस्त हैं। गंदगी इस कदर कि जीना दूभर है। बलिराम, संतोष, मनोज ने बात बीच में काटी। छोटी-छोटी समस्या लेकर मत बैठिए। देश के बारे में सोचिए। बहरहाल, राजनीति की चर्चा चलती रही।

महंगाई से परेशान हैं, लेकिन करेंगे मतदान

टीम आगे बढ़ी तो बच्चे को मालिस कर रही सुमन श्रीवास्तव से जब यह पूछा गया कि आप इस बार मतदान करेंगी। बोलीं, क्यों नहीं करूंगी। आपका परिवार तो सत्ता दल से जुड़ा है तो आप तो उन्हें सपोर्ट करेंगी। बोलीं, आपको यह तो नहीं बताउंगी कि किसे वोट दूंगी लेकिन हम तो महंगाई से परेशान हैं। गीता, रीता व मनीशा गुप्ता सत्ता पक्ष कृतित्व तारीफ का पुल बांधने में नहीं चूकीं। शिक्षक प्रमोद कुमार ने कहा कि राजनीति से हमें कोई लगाव नहीं। हमारे लिए यह गांव ही थाती है।

शहरीकरण की आगोश में है कलम के देवता का गांव

कलम के देवता के इस गांव को अंतरराष्ट्रीय फलक मिले। लमही के विरासत को सहेजते हुए यहां का विकास हो। गांव अब शहरीकरण के आगोश में है। आबादी बढ़ती जा रही है। अट्टालिकाएं तनती जा रही हैं। दुश्वारियां कोने-कोने में समाती जा रही हैं। हम तो यही कहेंगे कि दो संसदीय क्षेत्र के बीच राजनीति की दीवार मत खींचो, लमही को कथा सम्राट प्रेमचंद का गांव ही रहने दो...।

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