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अपर पुलिस आयुक्‍त वाराणसी सुभाष चंद्र दुबे को चाय बेचते मिला बच्‍चा, कहा - 'कमाई से बेहतर पढ़ाई'

अपर पुलिस आयुक्त सुभाष दुबे रविवार को पेट्रोलिंग करने निकले थे लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि रास्ते में उनकी मुलाकात एक चाय बेचते हुए बालक से होगी। वह शूलटंकेश्वर मंदिर क्षेत्र में पेट्रोलिंग कर रहे थे तभी घाट पर एक बालक हाथ में केतली लिए हुए चाय लेकर पहुंचा।

By Abhishek SharmaEdited By: Updated: Mon, 20 Dec 2021 12:32 PM (IST)
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सुभाष चंद्र दुबे के सामने एक बालक हाथ में केतली लिए हुए चाय लेकर पहुंचा।

वाराणसी, जागरण संवाददाता। रविवार को शहर में भ्रमण पर निकले अपर पुलिस आयुक्त सुभाष चंद्र दुबे ने चाय बेच रहे बच्‍चे के पिता के कहा कि यह उम्र चाय बेचने की नहीं, बल्कि पढ़ाई की है। शूलटंकेश्वर मंदिर क्षेत्र में पेट्रोलिंग करते हुए उनकी बच्‍चे से हुई संक्षिप्‍त मुलाकात काफी चर्चा में है। बच्‍चे से उन्‍होंने कहा कि पढ़ाई करो और खूब आगे बढ़ो, उन्‍होंने बच्‍चे की पढ़ाई के लिए मदद के लिए पहल करने की भी बात कही। 

अपर पुलिस आयुक्त (मुख्यालय) सुभाष दुबे रविवार को पेट्रोलिंग करने निकले थे लेकिन उन्हें क्या मालूम था कि रास्ते में उनकी मुलाकात एक चाय बेचते हुए बालक से होगी। वह शूलटंकेश्वर मंदिर क्षेत्र में पेट्रोलिंग कर रहे थे, तभी घाट पर एक बालक हाथ में केतली लिए हुए चाय लेकर पहुंचा। उसने बढ़ी शालिनता से कहा, साहब चाय पीएंगे। नाबालिक के हाथ में चाय की केतली देख साहब के कदम रुक गए। उन्होंने नाबालिग से पूछा कि आप पढ़ाई करते हो या सिर्फ चाय बेचते हो। बिना सोचे बच्‍चे ने कहा, मैं महामना मालवीय इंटर कालेज बच्छाव में पढ़ता हूं। खाली समय में पिता की मदद करता हूं। इस बीच पिता भी पहुंच गए। सुभाष चंद्र दुबे ने पिता से पूछा कि क्या आप बेटे से दुकान पर काम कराते हैं तो उसने जवाब दिया - 'नहीं साहब, बेटा मेरे काम में सिर्फ सहयोग करता है।

सुभाष चंद्र दुबे ने पिता की बात सुनने के बाद कहा कि बेटे से काम लेना उचित नहीं है, उसे मन से पढ़ाइए, यह बेटा बहुत आगे जाएगा। यदि पैसे की दिक्कत हो तो मुझे बताओ, मैं पूरी मदद करूंगा। पिता ने कहा, साहब पैसे की दिक्कत नहीं है। मैं खुद चाहता हूं कि बेटा मेरा नाम रौशन करें। सुभाष दुबे ने कहा कि 13 साल की उम्र में चाय नहीं बेचना चाहिए, यह पढ़ाई का समय है। उसकी बातों से प्रभावित होकर सुभाष दुबे ने चाय बेच रहे बच्‍चे से को पांच सौ रुपये का पुरस्कार भी दिया।