कर्नाटक के यशस्वी मूर्तिकार अरुण योगीराज ने प्रभु श्रीरामलला की प्रतिमा को जिस रेखाचित्र के आधार पर तैयार किया वह चित्र काशी के कलाकार डा. सुनील विश्वकर्मा ने बनाया था। डा. सुनील इस गौरवभाव से आह्लादित हैं। मूलरूप से मऊ के कोपागंज नगर पंचायत के मोहल्ला हूंसापुरा निवासी डा. सुनील विश्वकर्मा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललितकला विभाग के अध्यक्ष हैं।
जागरण संवाददाता, वाराणसी/मऊ। शताब्दियों की प्रतीक्षा के बाद श्रीरामलला अपनी जन्मभूमि अयोध्या में बन रहे भव्य-दिव्य विशाल मंदिर के गर्भगृह में विराजमान हो गए हैं। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान भी काशी के विद्वान ब्राह्मणों ने ही पूर्ण कराया। बालक राम की जिस मनोहारी छवि को देख देव-मनुज आह्लादित-मुदित हैं, उसका मूल भी काशी से ही जुड़ता है।
कर्नाटक के यशस्वी मूर्तिकार अरुण योगीराज ने प्रभु श्रीरामलला की प्रतिमा को जिस रेखाचित्र के आधार पर तैयार किया, वह चित्र काशी के कलाकार डा. सुनील विश्वकर्मा ने बनाया था। डा. सुनील इस गौरवभाव से आह्लादित हैं।
कौन हैं डा. सुनील विश्वकर्मा
मूलरूप से मऊ के कोपागंज नगर पंचायत के मोहल्ला हूंसापुरा निवासी डा. सुनील विश्वकर्मा महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के ललितकला विभाग के अध्यक्ष हैं।
भारतीय संस्कृति के पुनरोदय के प्रस्थान बिंदु के रूप में उभरे श्रीराम मंदिर के लिए रामलला की मुख्य प्रतिमा के निर्माण की कथा का मूल समझने के लिए लगभग एक वर्ष पीछे जाना होगा। 11 फरवरी, 2023 के दूसरे सप्ताह में श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने देश के करीब 82 कलाकारों से भगवान श्रीराम की प्रतिमा के लिए रेखांकन का प्रारूप मांगा था।
मुख्य ट्रस्टी गोविंद देव महाराज, अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र, महासचिव चंपत राय सहित पांच सदस्यीय ज्यूरी ने सभी रेखाचित्रों का अवलोकन कर तीन कृतियां चयनित कीं। इसमें डा. सुनील विश्वकर्मा का रेखाचित्र भी था। दूसरे चरण में अप्रैल, 2023 को चयन समिति व प्रमुख न्यासी ने वैचारिक मंत्रणा के लिए चयनित चित्रों के चितेरों एवं चुनिंदा मूर्तिकारों की बैठक बुलाई।
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24 अप्रैल को नई दिल्ली स्थित प्रधानमंत्री संग्रहालय की लाइब्रेरी में तीनों चित्रकारों को भी बुलाया गया। विर्मश के बाद इन चित्रों के आधार पर तीन शिल्पियों ने अलग-अलग पाषाणखंड से तीन प्रतिमाएं तैयार कीं। तैयार प्रतिमाओं की भाव भंगिमा और रचनाकाल में शिल्पियों की मनःस्थिति आदि का विश्लेषण हुआ। अंततः डा. सुनील विश्वकर्मा के रेखांकन पर आधारित अरुण योगीराज द्वारा निर्मित प्रतिमा को मंदिर के गर्भगृह में स्थापित किया गया।
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मैंने भगवत्कृपा मानकर अत्यंत भावाभिव्यंजना के साथ कौशल्यानंदन श्रीरामचंद्र के बाल स्वरूप का चित्रांकन किया था। मेरा मानना है कि यह कार्य स्वयं प्रभु श्रीराम ने मुझसे कराया है। मेरा शरीर तो मात्र माध्यम बना है।
- डा. सुनील विश्वकर्मा, अध्यक्ष ललितकला विभाग, महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ, वाराणसी।
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