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Varanasi Sangeet Gharana : कंठे महाराज ने कठिन रियाज से नई पीढ़ी के लिए साधना का मंत्र गढ़कर दिखाया

Varanasi Sangeet Gharana बनारसबाज के महारथी पं. कंठे महाराज (जन्मतिथि- 1880 पुण्यतिथि- एक अगस्त 1970) का संगीत की दुनिया में विशेष स्‍थान है। तबले के पर्याय पंडित कंठे महाराज के दाहिने-बाएं की जादुई टंकार के विशेषज्ञ थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Fri, 29 Jul 2022 10:13 PM (IST)
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Varanasi Sangeet Gharana : बनारसबाज के महारथी पं. कंठे महाराज का संगीत की दुनिया में विशेष स्‍थान है।
वाराणसी, कुमार अजय। दौर कोई 1960 के दशक का। काशी संगीत परिषद की ओर से सनातन धर्म इंटर कालेज के मैदान में रचाया गया था विशाल सांगीतिक उत्सव। कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण भारतीय संगीत के शलाका पुरुष बाबा अलाउद्दीन खां साहेब (मैहर संगीत घराने के प्रवर्तक) की मंच पर उपस्थित श्रोताओं को बेसब्र इंतजार, बाबा साहेब कब मंच पर आएंगे, किस की संगत पर सरोद के तार खनखाएंगे।

प्रतीक्षा खत्म हुई। रात के तीसरे पहर में बाबा साहेब अपने सरोद के साथ मंच पर पधारे, साथ में बनारसबाज के महारथी पं. कंठे महाराज (जन्मतिथि- 1880, पुण्यतिथि- एक अगस्त 1970) मंच पर नजर आए, अपना तबला संभाले। युगल जोड़ी को साथ देखकर संगीतानुरागी मानो बावरे हो गए। हर-हर महादेव के उद्घोष से गूंज उठा उत्सव मंडप। तय हो गया कि आज की यह जुगलबंदी रंग लाएगी, काशी के सांगीतिक इतिहास में एक स्वर्णिम पृष्ठ जोड़ जाएगी। हुआ भी ऐसा ही। एक तरफ बाबा साहेब के सरोद की मधुरिम झंकार, दूसरी तरफ तबले के पर्याय पंडित कंठे महाराज के 'दाहिने-बाएं' की जादुई टंकार। पूरे ढाई घंटे तक सुधी श्रोता सुरताल के संगम में गहरे गोते लगाते रहे, दीन-दुनिया बेखबर निर्मल आनंद के हिंडोले पर पींगे उड़ाते रहे।

भावुक पल तो तब आया, जब कार्यक्रम के समापन के बाद बाबा अलाउद्दीन खां साहब हुमक कर कंठे महाराज जी के पास आए और उमग कर उन्हें गले से लगा लिया। बांहों में बांहें डाले, माइक पर आए और उनके भर्राए कंठ से बस एक ही बात निकली, आज मेरे वादन को पूर्णता प्राप्त हुई। खां साहेब यही नहीं रुके। उन्होंने बात आगे बढ़ाई और कहा कि मैं तो शीतला स्वरूपा, मैहर माई का गर्दभ हूं। पर महाराज जी (पं. कंठे) तो नाद के आदिदेव महादेव के नंदी निकले। मैं इनकी फनकारी को सलाम बजाता हूं। इससे बड़ी सराहना भला और क्या हो सकती थी। महाराज जी की आंखों से आंसू झरझर बह निकले। यह वाकया बयां करते हुए उस ऐतिहासिक आयोजन के साक्षी रहे ख्यात संगीतकार तथा पं. कंठे महाराज के शिष्य रहे पंडित कामेश्वर नाथ मिश्र की आंखें भी छलक उठती हैं।

तालों के नाम सुनकर भाग खड़ हुए आकाशवाणी के साजिंदे

ऐसे ही एक अन्य दिलचस्प वाकये का जिक्र करते हुए वयोवृद्ध संगीतकार पं. कामेश्वरनाथ मिश्र बताते हैं, 'आकाशवाणी इलाहाबाद (प्रयागराज) के आमंत्रण पर कंठे महाराज इलाहाबाद पहुंचे। मैं उनके साथ था। संगम स्नान और लोकनाथ में चउचक जलपान के बाद महाराज जी आकाशवाणी के स्टूडियो पहुंचे। इलाहाबाद आकाशवाणी के तत्कालीन निदेशक एसएन बली भागे-भागे अभिनंदन के लिए आए।

कुशलक्षेम के बाद कंठे महाराज का पहला सवाल था-डायरेक्टर साहब, का बजावे क हा, बताव। बली भला अब क्या बताते-बस एक ही रटंत लगाए हुए थे कि कुछ प्रचलित बजा दीजिए। बार-बार की इस बात पर थोड़ा झल्लाए कंठे महाराज ने कहा, का अप्रचलित-अप्रचलित कइले हउव, अरे अप्रचलित में लीला विलास सुनाई कि रुद्र बजाईं, अष्टमंगल लक्ष्मी वैकुंठ में से कौन ताल बजाईं, कुछ त बताव। और ई भी बताव कि वादन पर लहरा के देई। रोचक बात यह रही कि बगल के कमरे में बैठे आकाशवाणी के स्टाफ साजिंदों गोपाल तथा नजीर ने इन तालों का कभी नाम ही नहीं सुना था।

उनके तो देवता कूच कर गए और दोनों ही आधे दिन की छुट्टी की अर्जी देकर भाग खड़े हुए। बाद में आफत स्थिति में महाराज जी ने वहीं बैठकर मात्र एक घंटे में मुझे (पं. कामेश्वर मिश्र) इन सभी शुद्ध तालों के संगत सूत्र समझाए और मुझे सौभाग्य हासिल हुआ तबले के बादशाह पं. कंठे महाराज को संगत देने का। मेरा तो जीवन ही धन्य हो गया। उस यादगार कार्यक्रम की रिकार्डिंग पं. किशन महाराज के पास सुरक्षित थी। प. कंठे महाराज की प्रथम पुण्यतिथि पर जब किशन मामा ने अपने घर पर आयोजित गोष्ठी में वह रिकार्डिंग सुनवाई तो लोग भावविभोर थे और मैं था भाव विह्लल।'

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