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Varanasi Seerial Blast Case : आतंकियों के मंसूबे अगर सफल हो जाते तो वाराणसी में लाशों का लग जाता ढेर, इस तरह रची थी सजिश

सात मार्च 2006 को बनारस में शृंखलाबद्ध बम धमाका करने वाले लाशों का ढेर लगा देना चाहते थे। उन्होंने जिस तरह विस्फोटक का इस्तेमाल किया था वह बेहद खतरनाक था।जिस तरह का नुकसान हुआ था साफ लग रहा था कि आतंकियों की मंशा लाशों का ढेर लगा देने की थी।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Mon, 06 Jun 2022 09:07 PM (IST)
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सात मार्च 2006 को वाराणसी के कैंट स्टेशन पर बम ब्लास्ट के बाद का हाल। (फाइल फोटो)
जागरण संवाददाता, वाराणसी। सात मार्च 2006 को बनारस में शृंखलाबद्ध बम धमाका करने वाले लाशों का ढेर लगा देना चाहते थे। उन्होंने जिस तरह विस्फोटक का इस्तेमाल किया था, वह बेहद खतरनाक था। यह कहना है बनारस में हुए बम धमाकों की जांच करने वाले विस्फोटक विशेषज्ञों की टीम का नेतृत्व करने वाले फोरेंसिक अधिकारी का (सुरक्षा कारणों से नाम नहीं बता रहे)। बनारस में आतंकी वारदात के समय वह आगरा फोरेंसिक लैब में तैनात थे। शाम को उन्हें टीम के साथ जल्द से जल्द बनारस पहुंचने का आदेश मिला। अगली सुबह वह चार लोगों की टीम के साथ ट्रेन से बनारस के लिए निकल पड़े।

वे लोग आठ मार्च 2006 को दोपहर में बनारस पहुंचे और सबसे पहले कैंट स्टेशन का निरीक्षण किया। रामनगर स्थित फोरेंसिक लैब की टीम भी साथ में थी। स्टेशन का हाल देखकर वे स्तब्ध रह गए थे। जिस तरह का नुकसान हुआ था, साफ लग रहा था कि आतंकियों की मंशा लाशों का ढेर लगा देने की थी। जिस यात्री हाल में विस्फोट हुआ था, वहां कोने-कोने की जांच की गई। आरडीएक्स के सुबूत मिल रहे थे। एल्युमीनियम के टुकड़े भी मिले, जिससे पता चला कि आतंकियों ने बम बनाने के लिए कुकर का इस्तेमाल किया था। कुछ प्लास्टिक के टुकड़े भी मिले जो संकेत दे रहे थे कि विस्फोट का समय तय करने के लिए टाइमर का इस्तेमाल हुआ था। यहां से जांच के लिए काफी कुछ जमा करने के बाद टीम संकटमोचन के लिए निकल पड़ी।

बम को अमोनियम नाइट्रेट व फ्यूल आयल से बनाया घातक 

मंदिर में विस्फोट वाले स्थान से लेकर पूरे परिसर की बारीकी से जांच की गई। यहां भी आरडीएक्स व एल्युमीनियम के टुकड़े मिले। स्पष्ट था कि कैंट स्टेशन जैसा ही कुकर बम यहां भी इस्तेमाल किया गया है। उसे अधिक घातक बनाने के लिए अमोनियम नाइट्रेट व फ्यूल आयल भी प्रयोग किया गया था। जिस जगह विस्फोटक रखा गया था, वहां पास में ही पेड़ था। धमाके की काफी हद तक तीव्रता वह पेड़ ही झेल गया, नहीं तो मृतकों की सूची और लंबी होती। दो दिनों तक जांच के दौरान टीम ने दशाश्वमेध में जिंदा मिले कुकर बम की जांच भी की।

जांच के लिए अहम था दशाश्वमेध पर मिला बम

आगरा से आई टीम ने दशाश्मवेध घाट पर मिले जिंदा बम की भी जांच की। यह बम उनके लिए बेहद अहम था। इससे फोरेंसिक टीम को विस्फोटक की प्रकृति, उसकी मात्रा और तैयार के तरीका का पता चल सका। साथ ही जानकारी मिली कि इस तरह का बम कौन सा आतंकी संगठन इस्तेमाल करता है। बम में आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था। अमोनियम नाइट्रेट इसे और घातक बना रहा था। विस्फोटक को कुकर में ठूंस-ठूंसकर भरा गया था। इसे रखने वाले मौके दूर निकल जाएं, इसके लिए टाइमर का इस्तेमाल किया गया था। संकटमोचन व कैंट स्टेशन से मिले सुबूतों और दशाश्वमेध पर मिले जिंदा बम को लेकर टीम आगरा चली गई। लैब में इनकी बारीकी से जांच हुई।

विस्फोटक को कसकर भरना जरूरी

विस्फोटक विशेषज्ञ बताते हैं कि बम के फटने की गारंटी तब होती है, जब विस्फोटक को बहुत ही कसकर भरा गया हो। इससे टामइर की चिंगारी पूरे विस्फोटक तक पहुंच जाती है और एक साथ विस्फोट होता है। कुकर की विशेषता होती है कि उसमें रखा जाने वाला विस्फोटक बेहद कसकर भरा जाता है। विस्फोट तय समय पर करने के लिए लगाए गए टाइमर में एक सुई और एक पिन लगा होता है। पिन पर सल्फर आदि जैसा ज्वलनशील पदार्थ लगाते हैं। सुई तय समय पर पहुंचती है और पिन से टकराती है तो हल्की चिंगारी पैदा होती है और वह विस्फोटक में आग लगा देती है।

कई तरह के होते हैं विस्फोटक 

आतंकी आमतौर पर टाइमर या रिमोट से विस्फोट करते हैैं। इनका इस्तेमाल दूर से ही किया जा सकता है। लैंडमाइन आदि में स्प्रिंग लगाया जाता है। इस पर तय वजन पडऩे पर चिंगारी पैदा होती है और विस्फोट होता है। दबाव के विस्फोटक का इस्तेमाल माइंस आदि में किया जाता है। इसमें डेटोनेटर लगाया जाता है।

विशेषज्ञों की काबिल टीम ने की थी जांच

विस्फोटक विशेषज्ञों की बेहद अनुभवी टीम बनारस जांच करने के लिए आई थी। देशभर में 300 से ज्यादा धमाकों की जांच इस टीम ने किया था। 5000 से अधिक छोटे-बड़े विस्फोटकों की जांच मौके से लेकर फोरेंसिक लैब तक करने का अनुभव इस टीम के पास था। इस टीम की बनाई रिपोर्ट ने आतंकी वलीउल्लाह को फांसी के तख्ते तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई।

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