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वासंतिक नवरात्र : 25 मार्च से दो अप्रैल तक, घट स्थापन के लिए प्रात: 5.58 से 9 बजे तक विशेष शुभ

भारतीय नव वर्ष के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से से प्रारंभ होने वाला वासंतिक नवरात्र इस बार 25 मार्च को प्रारंभ हो रहा है जो दो अप्रैल रामनवमी तक चलेगा।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Wed, 25 Mar 2020 12:03 AM (IST)
वासंतिक नवरात्र : 25 मार्च से दो अप्रैल तक, घट स्थापन के लिए प्रात: 5.58 से 9 बजे तक विशेष शुभ

वाराणसी, जेएनएन। भारतीय नव वर्ष के प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से से प्रारंभ होने वाला वासंतिक नवरात्र इस बार 25 मार्च को प्रारंभ हो रहा है जो दो अप्रैल रामनवमी तक चलेगा। नवरात्र व्रत पारन तीन अप्रैल को किया जाएगा। इस बार नौ दिनों का होगा। मां पराम्बा का आगमन इस बार नौका पर और गमन हाथी पर हो रहा है, दोनों का फल शुभ है।

कलश स्थापन : ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार घट स्थापन के लिए प्रात: काल का समय विशेष शुभ माना जाता है। प्रात: 5.58 से 09 बजे तक जो लोग कलश स्थापन न कर सकें उनके लिए अभिजीत मुहूर्त सुबह 11.36 से 12.25 तक शुभ रहेगा। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 25 मार्च को दिन में 3.51 बजे तक रहेगी, इस समय तक कलश स्थापन अवश्य कर लें।

महानिशा पूजा : शास्त्र अनुसार महानिशा पूजा सप्तमी युक्त अष्टमी या मध्य रात्रि में निशीथ व्यापिनी अष्टमी में होनी चाहिए जो 31 मार्च-एक अप्रैल की रात मिलेगी। महानिशा पूजन -बलिदान आदि इसी दिन किया जाएगा। महाअष्टमी व्रत एक अप्रैल को किया जाएगा। चैत्र शुक्ल नवमी दो अप्रैल को मध्याह्न में व्याप्त होने से श्रीराम नवमी मनाई जाएगी।

पूजन विधान : ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि में प्रात: नित्य कर्मादि-स्नानादि कर संकल्पित हो ब्रह्मा जी का आह्वान करना चाहिए। आगमन, पाद्य, अघ्र्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत-पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य-तांबूल, नमस्कार-पुष्पांजलि व प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करना चाहिए। नवीन पंचांग से नव वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनाधीप, धान्याधीप, दुर्गाधीप, संवत्वर निवास और फलाधीप आदि का फल श्रवण करना चाहिए। निवास स्थान को ध्वजा-पताका, तोरण-बंदनवार आदि से सुशोभित करना चाहिए।

देवी पूजन के निमित्त तय स्थल को सुसज्जित कर गणपति व मातृका पूजन कर घट स्थापना करना चाहिए। इसके लिए लकड़ी के पटरे पर पानी में गेरू घोल कर नौ देवियों की आकृति बना कर नौ देवियों अथवा सिंह वाहिनी दुर्गा का चित्र या प्रतिमा पटरे पर या इसके पास रखनी चाहिए। पीली मिट्टी की एक डली व एक कलावा लपेट कर उसे गणेश स्वरूप में कलश पर विराजमान कराने के साथ ही घट के पास गेहूं या जौ का पात्र रखकर वरुण पूजन और भगवती का आह्वान करना चाहिए।  

प्रथमं शैलपुत्री

शक्ति की अधिष्ठात्री मां दुर्गा की पूजा आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र का आरंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हो रहा है। इसमें प्रथम दिन देवी शैलपुत्री के दर्शन -पूजन का विधान है।

द्वितीयं ब्रह्मचारिणी

देवी आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र के दूसरे दिन भगवती दुर्गा की नौ शक्तियों के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मïचारिणी के दर्शन-पूजन का विधान है।

तृतीयं चंद्रघंटेति

देवी आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र के तीसरे दिन शक्ति की अधिष्ठात्री जगदंबा के चंद्रघंटा स्वरूप के दर्शन-पूजन का विधान है।

कूष्मांडेति चतुर्थकम्

देवी आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र के चौथे दिन देवी के चतुर्थ स्वरूप कूष्मांडा का दर्शन-पूजन किया जाता है।

पंचमं स्कंदमातेति

देवी आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र के पांचवें दिन देवी जगदंबा के पंचम स्वरूप स्कंदमाता के दर्शन-पूजन का विधान है। स्कंदमाता की मान्यता वागेश्वरी देवी के रूप में है।

षष्ठं कात्यायनीति च

देवी आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र के छठें दिन देवी के षष्ठम स्वरूप मां कात्यायनी के दर्शन-पूजन का विधान है।

सप्तमंं कालरात्रीति

शक्ति की अधिष्ठात्री मां जगदंबा की पूजा आराधना के पर्व वासंतिक नवरात्र के सातवें दिन देवी के सप्तम स्वरूप कालरात्रि के दर्शन-पूजन का विधान है।

महागौरीति चाष्टमं

वासंतिक नवरात्र के आठवें दिन शक्ति की अधिष्ठात्री देवी जगदंबा के अष्टम स्वरूप में भगवती महागौरी की मान्यता है। इन्हें भगवती अन्नपूर्णा के रूप में भी पूजा जाता है।

नवमं सिद्धिदात्री

वासंतिक नवरात्र की नवें दिन भगवती दुर्गा के नवम् स्वरूप सिद्धिदात्री के दर्शन-पूजन की मान्यता है।

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