Move to Jagran APP

भारत में प्राचीन काल से ही गांव रही व्यवस्था की छोटी इकाई, वैदिक काल में पंचों को माना जाता परमेश्वर

पंचायती राज व्यवस्था कोई नई नहीं है वैदिक काल से ही यह व्यवस्था अपने देश में किसी न किसी रूप में चलती आ रही है। वैदिक काल में पंचों को परमेश्वर माना जाता था। उस वक्त अधिकारियों में पुरोहित सेनापति और ग्रामीण मुख्य थे।

By Saurabh ChakravartyEdited By: Updated: Tue, 06 Jul 2021 04:53 PM (IST)
Hero Image
वैदिक काल से ही यह व्यवस्था अपने देश में किसी न किसी रूप में चलती आ रही है।
जागरण संवाददाता, बलिया। पंचायती राज व्यवस्था कोई नई नहीं है, वैदिक काल से ही यह व्यवस्था अपने देश में किसी न किसी रूप में चलती आ रही है। वैदिक काल में पंचों को परमेश्वर माना जाता था। उस वक्त अधिकारियों में पुरोहित, सेनापति और ग्रामीण मुख्य थे। ग्रामीण ही पंचायत का प्रमुख होता था। वह सैनिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था को स्थापित करने में मुख्य भूमिका का निर्वहन करता था। पंचायती राज व्यवस्था को स्थानीय स्वशासन भी बोला जाता है। अब इसे हम गांव की ''छोटी सरकार'' भी कहते हैं। भारत के हर काल खंड में किसी न किसी रूप में पंचायती राज की व्यवस्था के निशान मिलते हैं। कुंवर सिंह महाविद्यालय के प्राचार्य व राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डा. अशोक सिंह ने बताया कि हर काल खंड में अलग-अलग स्वरूप में पंचायती राज व्यवस्था के निशान मिलते हैं। कई पुस्तक व वेदों में इसका उल्लेख है। 

बौद्धकाल में पंचायती राज

इस काल में गांव की शासन व्यवस्था और सुगठित हुई। तब गांव के शासक को ग्रामयोजक कहते थे। गांव से जुड़े मामले सुलझाने का दायित्व ग्रामयोजक पर ही होता था। ग्रामयोजक चुनाव ग्राम सभा के मार्फत ही होता था। चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री चाणक्य ने ‘अर्थशास्त्र’ में सुगठित शासन प्रणाली का उल्लेख किया है। इसमें 800 गांवों का समूह, द्रोणमुख 400 गांवों का समूह, खार्वटिक 200 गांवों का समूह होता था। यह विभाजन राजस्व, न्याय व न्याय व्यवस्था को ध्यान में रखकर किया था। इस काल में गांव का प्रमुख ग्रामिक नाम से जाना जाता था, ग्रामिक की नियुक्ति सरकार करती थी, लिहाजा उसे सरकारी मुलाजिम समझा जाता था। शासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी। मुख्य अधिकारी को ग्रामिक, महतर अथवा भाजक कहते थे।

मध्य और मुगलकालीन पंचायती राज

सल्तनत काल में भी सबसे छोटी इकाई गांव ही थी। इसमें ग्राम पंचायतों का प्रशासनिक स्तर बहुद उम्दा था। गांवों का प्रबंधन लंबरदारों, पटवारियों, और चौकीदारों के जिम्मे था। मुगलकाल में भी गांव ही सबसे छोटी इकाई हुआ करती थी, तब परगना गांव में विभाजित थे। पंचायत में चार प्रमुख अधिकारी हुआ करते थे। मुकद्दम, पटवारी, चौधरी, और चौकीदार।

ईस्ट इंडिया कंपनी का राज

स्थानीय स्वशासन की जो परंपरा भारत में चली आ रही थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के आने के बाद इनका बजूद धुंधला सा होने लगा। ईस्ट इंडिया के शासन काल में ही 1687 में मद्रास नगर निगम और 1726 में कोलकाता और बॉम्बे नगर निगम का गठन हुआ। 1880 में लॉर्ड रिपन ने स्थानीय स्वशासन पर लगी पाबंदियों को हटाने का प्रयास शुरू किया। रिपन के कार्यकाल में ग्रामीण क्षेत्रों में स्थानीय बोर्डों की स्थापना की गई।

आजादी के बाद मिला संवैधानिक दर्जा

26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू हुआ। स्थानीय स्वशासन को राज्य की सूची में रखा गया। पंचायती राज को और ताकतवर बनाने का प्रयास पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल से शुरू हुआ। भारतीय इतिहास में 23 अप्रैल 1993 को पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा मिला। 73वां संविधान संशोधन अस्तित्व में आया और पंचायती राज व्यवस्था से गांव की सरकारों को कई अधिकार प्राप्त हुए।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।