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जब वाराणसी में सरदार पटेल ने डांटा हैदराबाद निजाम को, तो हो गई बोलती बंद

लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का व्यक्तित्व कितना प्रभावशाली था और लोग उनके गुस्से तथा स्पष्टवादिता से कितना खौफ खाते थे इसकी एक झलक देश भर ने बनारस में देखी थी। अवसर था 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह का। मंच से महात्मा गांधी भाषण दे रहे थे।

By Anurag SinghEdited By: Updated: Sun, 31 Oct 2021 06:10 AM (IST)
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वाराणसी में सरदार पटेल ने डांटा था हैदराबाद निजाम को।
वाराणसी, शैलेश अस्थाना। लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का व्यक्तित्व कितना प्रभावशाली था, और लोग उनके गुस्से तथा स्पष्टवादिता से कितना खौफ खाते थे, इसकी एक झलक देश भर ने बनारस में देखी थी। अवसर था 1916 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के उद्घाटन समारोह का। मंच से महात्मा गांधी भाषण दे रहे थे। अपने उद्बोधन में देश के रईसों पर व्यंग्य करते हुए मालवीयजी की सूझ-बूझ और दृढ़निश्चय की प्रशंसा कर रहे थे तो हैदराबाद के निजाम और दूसरी रियासतों के राजा उन्हें अनसुना कर रहे थे। इस बीच दर्शक दीर्घा में बैठे निजाम ने बार-बार ‘अब बस भी करो गांधी’ कहना शुरू कर दिया। एनी बेसेंट और दूसरे नेताओं द्वारा शांत रहने के लिए किए गए अनुरोध का भी जब उन पर कोई प्रभाव न पड़ा तब अति विशिष्ट अतिथि सरदार पटेल ने मंच से ही जोर से डपटा। बोले, बकबक बंद करो और गांधी को सुनो। इसके बाद जब उन्होंने हैदराबाद निजाम और कपूरथला महाराजा पर आंखें तरेरीं तो दोनों सहम गए और बोलती बंद हो गई।

निजाम की जूती, निजाम के सिर

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के निर्माण के समय जब महामना मदन मोहन मालवीय हैदराबाद के निजाम के यहां दान लेने गए तो निजाम ने उनकी झोली में अपनी जूती फेंक दी। मालवीयजी ने उसी दिन अखबार में जूती की बोली लगाने का एक विज्ञापन छपवा दिया। शुभारंभ समारोह में महात्मा गांधी के भाषण के बाद मालवीयजी मंच पर आए। बोले, हमारे पास एक गैर-मामूली जूती है, जो कि निजाम साहब की है, इसलिए खुल कर बोली लगाइए। लोगों ने सौ से शुरू कर हजार रुपये तक बोली लगाई। इतने में सरदार पटेल उठे और बोले पूरे एक लाख। तभी किसी ने पूछा कि आप क्या करेंगे इस जूती का। उन्होंने जवाब दिया कि इसे निजाम के सिर पर मारूंगा। अब तुरंत निजाम इज्जत बचाने के लिए खड़े हुए और अपनी ही जूती पर दस लाख की बोली लगा दी। तभी सभा में बैठे किसी ने कहा, लो भई, पड़ गई निजाम की जूती, निजाम के सिर। 25 नवंबर 1948 को सरदार पटेल को बीएचयू ने डाक्टर आफ ला की मानद उपाधि दी।

विलय के बाद वाराणसी का काशी नाम ही चाहते थे सरदार

लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल ने 05 अक्टूबर 1949 को काशी राज्य का विलय भारतीय गणतंत्र में कराया। काशी नरेश महाराज डा. विभूतिनारायण सिंह व गोविंद मालवीय के अनुरोध पर वह भी काशी नाम ही चाहते थे लेकिन बाद में वरुणा और अस्सी के सम्मिलित स्वरूप को दर्शाने वाले वाराणसी को अंगीकार किया गया।

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