शरीर पर रैशेज सीने में जलन मुहांसे व खट्टी डकार से परेशान हैं तो सावधान होने की जरूरत है। जंक फूड से तौबा कर लें और नशे से दूर हो जाएं अन्यथा काले बाल निश्चित आयु पूरी करने से पहले ही सफेद हो जाएंगे बाल झड़ने लगेंगे। बीएचयू के आयुर्वेद शरीर क्रिया विभाग ने 17 से 34 वर्ष आयु के 110 मेडिकल छात्रों पर शोध किया है।
संग्राम सिंह, वाराणसी। क्या आपका शरीर पित्त प्रकृति का है। शरीर पर रैशेज, सीने में जलन, मुहांसे व खट्टी डकार से परेशान हैं तो सावधान होने की जरूरत है। जंक फूड से तौबा कर लें और नशे से दूर हो जाएं अन्यथा काले बाल निश्चित आयु पूरी करने से पहले ही सफेद हो जाएंगे, बाल झड़ने लगेंगे।
बीएचयू के आयुर्वेद शरीर क्रिया विभाग ने 17 से 34 वर्ष आयु के 110 मेडिकल छात्रों पर शोध किया है। सबके बाल सफेद या पीले हो चुके थे। अधिकांश को बाल झड़ने की समस्या रही। अध्ययन में पाया गया है कि 64 प्रतिशत युवा फास्ट फूड का प्रतिदिन सेवन करते थे। सामान्य भोजन से दूरी बना चुके थे। 70 फीसद नशे के आदी रहे। चमक लाने के लिए बालों में केमिकल युक्त हेयर कास्मेटिक का इस्तेमाल करते रहे।
84 प्रतिशत लोग रात में देर से सोते और सुबह देर तक उठते। पित्तशामक आहार विहार और दिनचर्या में बदलाव से बाल पकने व झड़ने की समस्या कम हो गई। अध्ययन को वेब आफ साइंस इंडेक्स (जनरल आफ आयुर्वेदा इंटेग्रेटिव) ने स्वीकृति दी है।
ऐसे हुआ शोध
2023 में जुलाई से सितंबर के मध्य 110 छात्रों के दो समूह बनाए गए। 55 वालंटियर (ए ग्रुप) का चिकित्सकीय परीक्षण हुआ। वे किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित नहीं थे। तीन महीने तक ए और बी ग्रुप की मानीटरिंग शुरू की गई। ग्रुप बी में कोई बदलाव नहीं देखा गया। ए ग्रुप वाले छात्रों को हर्बल शैंपू से बाल धुलने और रात में सोने से पहले तिल के तेल के प्रयोग की सलाह दी गई। उनका नानवेज, अल्कोहल, ध्रूमपान व जंक फूड बंद करा दिया गया।
हास्टल में ऐसे छात्रों के लिए गाय का घी, मूंग दाल, गाय का दूध, कोहड़े की सब्जी, अनार, खजूर और नारियल का सेवन कराया गया। हर दिन फालोअप हुआ, चौथे महीने परिणाम दिखे।
काले होने लगे सफेद बाल, सिर में खुजली व जलन की समस्या दूर
शरीर क्रिया विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर नरेन्द्र शंकर त्रिपाठी ने बताया कि चौथे महीने वालंटियर का बाल झड़ना कम हो गया। पित्तशामक खान-पान और दिनचर्या निर्धारित हुई। बालों में कालापन आने लगा। सिर के जिस हिस्से पर बाल नहीं थे, वहां बाल उगने लगे। सिर में खुजली व जलन की समस्या दूर हो गई जबकि दूसरे ग्रुप में कोई बदलाव नहीं देखा गया।
शोध में उन्हें शामिल किया था जो अपने बालों में मेहंदी नहीं लगाते। वे बीएएमएस, एमबीबीएस, बीएससी कृषि, एमडी आयुर्वेद व एमडी मार्डन मेडिसिन की पढ़ाई कर रहे हैं। अध्ययन के दौरान शोधार्थी डा. कपिल कुमार और एसोसिएट प्रोफेसर राशि शर्मा ने सहयोग किया।
यह है पित्त प्रकृति
पित्त शब्द संस्कृत के
तप
शब्द से बना है। इसका अर्थ है कि शरीर में जो तत्व गर्मी उत्पन्न करता है, वही पित्त है। यह शरीर में उत्पन्न होने वाले एंजाइम और हार्मोन को नियंत्रित करता है। आयुर्वेद में पित्त में कमी से मतलब है कि पाचक अग्नि में कमी होना। अगर शरीर में पित्त ठीक अवस्था में नहीं है तो इसका मतलब है कि पाचन तंत्र में गड़बड़ी है। जिस व्यक्ति के शरीर में पित्त दोष ज्यादा होता है वो पित्त प्रकृति वाला कहलाता है।
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