Varanasi Ramlila: मेघा भगत की भक्ति, काशी की रामलीला की शक्ति; देखें तस्वीरें
उत्तर भारत में रामलीला के मंचन का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है। रामभक्ति के क्षेत्र में सर्वप्रथम आदिकवि वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण लिख कर रामकथा को आदर्श चरित्र के नायकत्व का महाकाव्य तैयार किया। वाल्मीकि के इस कालजयी ग्रंथ रामायण ने तत्कालीन साहित्य व समाज के लिए धर्म व कर्म-पथ के अनुसरण के शास्त्रीय विमर्श का कपाट खोल दिया।
जागरण संवाददाता, वाराणसी। रामचरितमानस का लोकभाषा में लिखा जाना उस युग की एक क्रांतिधर्मी परिघटना थी। तत्कालीन पंडितों के भाषा दुराग्रह का कठिन विरोध सह कर भी तुलसी ने जिस मजबूत संकल्पशक्ति के साथ रामकथा को जनभाषा में प्रस्तुत किया उसकी सफलता का प्रमाण है कि आज सुदूर ग्राम्यांचल का निरक्षर व्यक्ति भी मानस की दो-चार पंक्तियां आपको दृष्टांत के रूप में कब सुना देगा, आप अंदाजा नहीं लगा सकते।
तुलसीदास ने जिस समय में रामचरितमानस की रचना की वो सामाजिक असुंतलन और विद्वेष का अस्थिर समय था। जनमानस को एक मजबूत नायक की जरूरत थी जो विषम परिस्थितियों पर अपने पुरुषार्थ की गहरी छाप छोड़ सके। एक ऐसे ही समय में तुलसी ने रामचरितमानस की रचना कर मानो निराश-हताश जनता को धीरोदात्त नायक के रूप में आलंबन प्रदान कर दिया।मानस के राम एक ऐसे नायक के रूप में रामकथा में प्रस्तुत हैं जो घर, परिवार, समाज और सत्ता की परिस्थितियों के भंवर में ठीक उसी तरह फंस कर संघर्षरत दिखाई देते हैं जैसे-आम जनता। तुलसी के राम केवल नियति के भंवर में फंसे ही नहीं दिखाई देते अपितु इन दुःस्थितियों का निवारण एक योद्धा के रूप में अद्भुत पराक्रम और आदर्श आचरण के साथ करते हैं।
काशी के विश्व प्रसिद्ध लक्खा मेलों में शुमार नाटी इमली के भरत मिलाप का हृदयस्पर्शी दृश्य। जागरण (फाइल फोटो)
यही कारण है कि तुलसी बाबा की रामकथा जन-जन के आदर्श का प्रतिनिधि आख्यान बन गयी और तुलसी के राम भारतवर्ष के भाल पर प्रकाशित एक महानायक का प्रतीक बन गए। यूं तो भारतवर्ष में नाट्य व लीलानुकरण की परंपरा बहुत पुरानी है। रामनाटक का प्रथम उल्लेख हरिवंश पुराण में दिखता है, जिसे चौथी शताब्दी का ग्रंथ माना गया है।
प्रतीक्षा करते हुए थके मेघा भगत जब सो गए तो स्वप्न में उन्हें दोनों बालक दिखाई दिए, जिन्होंने काशी लौट कर रामलीला की झांकी शुरू करने का आदेश दिया। किवदंती के अनुसार मेघा भगत ने नाटी इमली पर प्रथम बार भरत मिलाप के प्रसंग का मंचन किया, इस मंचन के उपरांत मेघा भगत ने इहलोक त्याग दिया।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।इसे भी पढ़ें-अब कुशीनगर के सभी मंदिरों के पुजारियों को मिलेगा मानदेय, प्रस्ताव पर लगी मोहर
लीला की शास्त्रीय व्याख्या करते हुए विद्वानों ने कहा है कि -(प्रियानुकरणं लीला मधुरांग विशेष्टितैः) "प्रिय का अनुकरण ही लीला "है। कुल मिलाकर रामलीला एक अनुष्ठान है , जहां जनता के आराध्य कोई आकाश के देवता न होकर उसके बीच के अपने नायक श्री रामचंद्र हैं, जो जीवन के विविध क्षेत्रों में उच्च आदर्श की स्थापना के साथ धैर्यपूर्वक बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की पराक्रमपूर्ण भूमिका से ओतप्रोत हैं। इस तरह रामकथा के लीला- अनुकरण ( रामलीला) के इतिहास को देखा जाए तो यह परंपरा तुलसीदास के बाद खूब पुष्पित पल्लवित हुई। संत तुलसीदास व इनके प्रिय साथी मेघा भगत को काशी में रामलीलाओं की सुव्यवस्थित शुरुआत का श्रेय जाता है। काशी में रामलीला की प्राचीनता और और शुरुआत को लेकर अनेकों किंवदंतियां प्रचलित हैं।ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने अयोध्या में दो बालकों को रघुनायक की लीला करते हुए देखा था जिससे प्रेरित होकर इन्होंने रामलीला की शुरुआत कराई। एक दूसरी किंवदन्ती के अनुसार तुलसीदास के अवसान के उपरांत एक बार मेघा भगत अयोध्या गए। वहां धनुष- बाण धारी दो बालक उन्हें मिले, जिन्होंने अपना धनुष बाण मेघा भगत को सौंप कर वापस लौटने की बात कही, लेकिन वे राजकुमार लौटे नहीं। लाट भैरव की रामलीला में केवट प्रसंग का जीवंत दृश्य प्रस्तुत करते पात्र।-जागरण (फाइल फोटो)प्रतीक्षा करते हुए थके मेघा भगत जब सो गए तो स्वप्न में उन्हें दोनों बालक दिखाई दिए, जिन्होंने काशी लौट कर रामलीला की झांकी शुरू करने का आदेश दिया। किवदंती के अनुसार मेघा भगत ने नाटी इमली पर प्रथम बार भरत मिलाप के प्रसंग का मंचन किया, इस मंचन के उपरांत मेघा भगत ने इहलोक त्याग दिया।