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Varanasi Ramlila: मेघा भगत की भक्ति, काशी की रामलीला की शक्ति; देखें तस्‍वीरें

उत्तर भारत में रामलीला के मंचन का इतिहास लगभग 500 वर्ष पुराना है। रामभक्ति के क्षेत्र में सर्वप्रथम आदिकवि वाल्मीकि ने संस्कृत में रामायण लिख कर रामकथा को आदर्श चरित्र के नायकत्व का महाकाव्य तैयार किया। वाल्मीकि के इस कालजयी ग्रंथ रामायण ने तत्कालीन साहित्य व समाज के लिए धर्म व कर्म-पथ के अनुसरण के शास्त्रीय विमर्श का कपाट खोल दिया।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 13 Oct 2024 09:42 AM (IST)
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विजयदशमी के अगले दिन पूरी काशी भगवान श्रीराम और भरत के मिलन की साक्षी बनती है l जागरण (फाइल फोटो)
जागरण संवाददाता, वाराणसी। रामचरितमानस का लोकभाषा में लिखा जाना उस युग की एक क्रांतिधर्मी परिघटना थी। तत्कालीन पंडितों के भाषा दुराग्रह का कठिन विरोध सह कर भी तुलसी ने जिस मजबूत संकल्पशक्ति के साथ रामकथा को जनभाषा में प्रस्तुत किया उसकी सफलता का प्रमाण है कि आज सुदूर ग्राम्यांचल का निरक्षर व्यक्ति भी मानस की दो-चार पंक्तियां आपको दृष्टांत के रूप में कब सुना देगा, आप अंदाजा नहीं लगा सकते।

तुलसीदास ने जिस समय में रामचरितमानस की रचना की वो सामाजिक असुंतलन और विद्वेष का अस्थिर समय था। जनमानस को एक मजबूत नायक की जरूरत थी जो विषम परिस्थितियों पर अपने पुरुषार्थ की गहरी छाप छोड़ सके। एक ऐसे ही समय में तुलसी ने रामचरितमानस की रचना कर मानो निराश-हताश जनता को धीरोदात्त नायक के रूप में आलंबन प्रदान कर दिया।

मानस के राम एक ऐसे नायक के रूप में रामकथा में प्रस्तुत हैं जो घर, परिवार, समाज और सत्ता की परिस्थितियों के भंवर में ठीक उसी तरह फंस कर संघर्षरत दिखाई देते हैं जैसे-आम जनता। तुलसी के राम केवल नियति के भंवर में फंसे ही नहीं दिखाई देते अपितु इन दुःस्थितियों का निवारण एक योद्धा के रूप में अद्भुत पराक्रम और आदर्श आचरण के साथ करते हैं।

काशी के विश्व प्रसिद्ध लक्खा मेलों में शुमार नाटी इमली के भरत मिलाप का हृदयस्पर्शी दृश्य। जागरण (फाइल फोटो)


यही कारण है कि तुलसी बाबा की रामकथा जन-जन के आदर्श का प्रतिनिधि आख्यान बन गयी और तुलसी के राम भारतवर्ष के भाल पर प्रकाशित एक महानायक का प्रतीक बन गए। यूं तो भारतवर्ष में नाट्य व लीलानुकरण की परंपरा बहुत पुरानी है। रामनाटक का प्रथम उल्लेख हरिवंश पुराण में दिखता है, जिसे चौथी शताब्दी का ग्रंथ माना गया है।

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लीला की शास्त्रीय व्याख्या करते हुए विद्वानों ने कहा है कि -(प्रियानुकरणं लीला मधुरांग विशेष्टितैः) "प्रिय का अनुकरण ही लीला "है। कुल मिलाकर रामलीला एक अनुष्ठान है , जहां जनता के आराध्य कोई आकाश के देवता न होकर उसके बीच के अपने नायक श्री रामचंद्र हैं, जो जीवन के विविध क्षेत्रों में उच्च आदर्श की स्थापना के साथ धैर्यपूर्वक बुराइयों पर विजय प्राप्त करने की पराक्रमपूर्ण भूमिका से ओतप्रोत हैं।

इस तरह रामकथा के लीला- अनुकरण ( रामलीला) के इतिहास को देखा जाए तो यह परंपरा तुलसीदास के बाद खूब पुष्पित पल्लवित हुई। संत तुलसीदास व इनके प्रिय साथी मेघा भगत को काशी में रामलीलाओं की सुव्यवस्थित शुरुआत का श्रेय जाता है। काशी में रामलीला की प्राचीनता और और शुरुआत को लेकर अनेकों किंवदंतियां प्रचलित हैं।

ऐसा कहा जाता है कि तुलसीदास ने अयोध्या में दो बालकों को रघुनायक की लीला करते हुए देखा था जिससे प्रेरित होकर इन्होंने रामलीला की शुरुआत कराई। एक दूसरी किंवदन्ती के अनुसार तुलसीदास के अवसान के उपरांत एक बार मेघा भगत अयोध्या गए। वहां धनुष- बाण धारी दो बालक उन्हें मिले, जिन्होंने अपना धनुष बाण मेघा भगत को सौंप कर वापस लौटने की बात कही, लेकिन वे राजकुमार लौटे नहीं।

लाट भैरव की रामलीला में केवट प्रसंग का जीवंत दृश्य प्रस्तुत करते पात्र।-जागरण (फाइल फोटो)


प्रतीक्षा करते हुए थके मेघा भगत जब सो गए तो स्वप्न में उन्हें दोनों बालक दिखाई दिए, जिन्होंने काशी लौट कर रामलीला की झांकी शुरू करने का आदेश दिया। किवदंती के अनुसार मेघा भगत ने नाटी इमली पर प्रथम बार भरत मिलाप के प्रसंग का मंचन किया, इस मंचन के उपरांत मेघा भगत ने इहलोक त्याग दिया।

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वस्तुतः काशी की कौन सी रामलीला अति प्राचीन है, इसे लेकर विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों के द्वारा वाराणसी की चित्रकूट रामलीला के अति प्राचीन होने का दावा किया जाता है। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत मेघा भगत ने स्वयं की थी। सन 1908 में प्रयाग उच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश स्टैनली और न्यायमूर्ति बनर्जी के समक्ष एक मुकदमा चला था।

( 9,उ. उल. जे. पृ. 529-545 , छन्नूदत्त व्यास बनाम बाबूनन्दन महंत)। इस फैसले में जज ने गवाहों को सुनने के बाद अपने फैसले में लिखा कि- " रामलीला एक धार्मिक जुलूस है, जिसमे लोग ऐतिहासिक चरित्रों की पूजा करते हैं। यह लीला मेघा भगत के समय से हो रही है, जो संवत 1600 के लगभग विद्यमान थे।... "इस तरह काशी की रामलीलाएं 450 वर्षों से भी ज्यादा पुरानी सिद्ध होती हैं। मेघा भगत तुलसी के समकालीन थे।

संभवतः तुलसी बाबा के शिष्य थे और उन्हें मेघा भगत नाम भी तुलसीदास ने ही दिया था। इसी तरह तुलसीघाट पर होने वाली लीला तथा लाटभैरव की रामलीला की प्राचीनता व शुरुआत को तुलसीदास के साथ जोड़कर देखा जाता है। वर्तमान में काशी की रामलीला और उसमें भी रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला अपने मंचन, दर्शकों के समर्पण, नेमियों की निष्ठा व काशिराज की प्रतिष्ठा से जुड़कर अतुलनीय विश्व धरोहरों में अग्रणी दिखाई पड़ती है।

श्री चित्रकूट रामलीला में प्रभु श्रीराम को नदी पार कराते केवट।-जागरण


480 साल से अनवरत चल रही चित्रकूट की रामलीला

कोरोना त्रासदी हो या भीषण बाढ़, चित्रकूट की रामलीला पिछले 480 सालों से अनवरत जारी है। कोरोना काल में रामलीला बंद नहीं हुई। रामलीला की खासियत यह है कि 12 साल से कम आयु के बालक ही इसमें पात्र बनते हैं। हनुमान, सुग्रीव व अंगद की भूमिकाएं भी वंशानुगत हैं।

तीन परिवारों के लोग ही इस भूमिका को निभाते आ रहे हैं। रामलीला की शुरूआत 1543 ईस्वी में हुई थी। आश्विन शुल्क नवमी से आश्विन शुल्क पूर्णिमा तक चलने वाली रामलीला का आरंभ मानस की चौपाई राम व्याह घर आए ... से होता है।

रामलीला में गोस्वामी जी की ओर से रचित रामचरित मानस व गीतावली के पदों का प्रयोग किया जाता है। लीला का मंचन ईश्वरगंगी, पिशाचमोचन, चित्रकूट व नाटीइमली मोहल्लों में किया जाता है। रामलीला में स्वरूपों के श्रृंगार में बुंदकी और चमकी का इस्तेमाल नहीं किया जाता है।

वनवास के समय स्वरूप पीला वस्त्र, अलफी तथा तुलसी की मोटी माला धारण किए रहते हैं। उनके केश लंबे होते हैं। रोजाना उन्हें नया मुकुट धारण कराया जाता है। राम का मुकुट व हनुमान का मुखौटा पूजनीय होता है। लीला का समापन आरती से होता है। प्रकाश के लिए गैस व महताबी का इस्तेमाल किया जाता है।

प्रस्तुति: डा. अवधेश दीक्षित, स्वतंत्र लेखक।

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