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Maha kumbh 2021 : दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा की शुरुआत कुंभ मेला के दौरान

वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि इस सेवा की शुरुआत 110 वर्ष पूर्व 18 फरवरी 1911 को प्रयागराज में हुई थी। संयोग से उस साल कुंभ का मेला भी लगा था। उस दिन फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पिक्वेट ने एक नया इतिहास रचा था।

By Abhishek sharmaEdited By: Updated: Fri, 19 Feb 2021 01:49 PM (IST)
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प्रयागराज शहर को यह सौभाग्य प्राप्त है कि दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा यहीं से आरम्भ हुई।
वाराणसी, जेएनएन। कुंभ मेलों का अतीत भी किसी खास दस्‍तावेज से कम नहीं है। भारतीय डाक ने दरअसल इसी दौरान ऊंची उड़ान भरी थी और आज भारतीय डाक की पहचान पूरे विश्‍व भर में अनोखी बन चुकी है। कुंभ के कल्‍पावास के अनुभवों और डायरियों के साथ खतों को भेजने की शुरुआत के बाद से ही यह अनोखा वैश्विक स्‍नान पर्व भी आस्‍था के महाकुंभ की डुबकियों के साथ ही डाक व्‍यवस्‍था में एक अनोखे कीर्तिमान के तौर पर शामिल हो गया।  

डाक सेवाओं ने पूरी दुनिया में एक लम्बा सफर तय किया है। डाक सेवाओं के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का स्थान प्रमुख है। उ.प्र. के प्रयागराज शहर को यह सौभाग्य प्राप्त है कि दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा यहीं से आरम्भ हुई। इस अवसर पर वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि इस सेवा की शुरुआत 110 वर्ष पूर्व 18 फरवरी 1911 को प्रयागराज में हुई थी। संयोग से उस साल कुंभ का मेला भी लगा था। उस दिन  फ्रेंच पायलट मोनसियर हेनरी पिक्वेट ने एक नया इतिहास रचा था। वे अपने विमान में प्रयागराज से नैनी के लिए 6500 पत्रों को अपने साथ लेकर उड़े। विमान था हैवीलैंड एयरक्राफ्ट और इसने दुनिया की पहली सरकारी डाक ढोने का एक नया दौर शुरू किया।

पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव के अनुसार प्रयागराज में उस दिन डाक की उड़ान देखने के लिए लगभग एक लाख लोग इकट्ठे हुए थे जब एक विशेष विमान ने शाम को साढ़े पांच बजे यमुना नदी के किनारों से उड़ान भरी और वह नदी को पार करता हुआ 15 किलोमीटर का सफर तय कर नैनी जंक्शन के नजदीक उतरा जो प्रयागराज के बाहरी इलाके में सेंट्रल जेल के नजदीक था। आयोजन स्थल एक कृषि एवं व्यापार मेला था जो नदी के किनारे लगा था और उसका नाम ‘यूपी एक्जीबिशन’ था। इस प्रदर्शनी में दो उड़ान मशीनों का प्रदर्शन किया गया था। विमान का आयात कुछ ब्रिटिश अधिकारियों ने किया था। इसके कलपुर्जे अलग अलग थे जिन्हें आम लोगों की मौजूदगी में प्रदर्शनी स्थल पर जोड़ा गया। 

प्रयागराज से नैनी जंक्शन तक का हवाई सफ़र आज से 110  साल पहले मात्र  13 मिनट में पूरा हुआ था। यह उडान महज छह मील की थी, पर इस घटना को लेकर प्रयागराज में ऐतिहासिक उत्सव सा वातावरण था। ब्रिटिश एवं कालोनियल एयरोप्लेन कंपनी ने जनवरी 1911 में प्रदर्शन के लिए अपना एक विमान भारत भेजा थाए जो संयोग से तब प्रयागराज आया जब कुम्भ का मेला भी चल रहा था। वह ऐसा दौर था जब जहाज देखना तो दूर लोगों ने उसके बारे में ठीक से सुना भी बहुत कम था। ऐसे में इस ऐतिहासिक मौके पर अपार भीड होना स्वाभाविक ही था। इस यात्रा में हेनरी ने इतिहास तो रचा ही पहली बार आसमान से दुनिया के सबसे बडे प्रयाग कुंभ का दर्शन भी किया। पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव के अनुसार कर्नल वाई विंधाम ने पहली बार हवाई मार्ग से कुछ मेल बैग भेजने के लिए डाक अधिकारियों से संपर्क किया जिस पर उस समय के डाक प्रमुख ने अपनी सहर्ष स्वीकृति दे दी।

मेल बैग पर ‘पहली हवाई डाक’ और ‘उत्तर प्रदेश प्रदर्शनी, इलाहाबाद’ लिखा था। इस पर एक विमान का भी चित्र प्रकाशित किया गया था। इस पर पारंपरिक काली स्याही की जगह मैजेंटा स्याही का उपयोग किया गया था। आयोजक इसके वजन को लेकर बहुत चिंतित थे, जो आसानी से विमान में ले जाया जा सके। प्रत्येक पत्र के वजन को लेकर भी प्रतिबंध लगाया गया था और सावधानीपूर्वक की गई गणना के बाद सिर्फ 6,500 पत्रों को ले जाने की अनुमति दी गई थी। विमान को अपने गंतव्य तक पहुंचने में 13 मिनट का समय लगा।

भारत में डाक सेवाओं पर तमाम लेख और एक पुस्तक 'इंडिया पोस्ट : 150 ग्लोरियस ईयर्ज़' लिख चुके कृष्ण कुमार यादव ने बताया  कि इस पहली हवाई डाक सेवा का विशेष शुल्क छह आना रखा गया था और इससे होने वाली आय को आक्सफोर्ड एंड कैंब्रिज हॉस्टल, इलाहाबाद को दान में दिया गया। इस सेवा के लिए पहले से पत्रों के लिए खास व्यवस्था बनाई गई थी। 18 फरवरी को दोपहर तक इसके लिए पत्रों की बुकिंग की गई। पत्रों की बुकिंग के लिए आक्सफोर्ड कैंब्रिज हॉस्टल में ऐसी भीड लगी थी कि उसकी हालत मिनी जी.पी.ओ सरीखी हो गई थी। डाक विभाग ने यहाँ तीन-चार कर्मचारी भी तैनात किए थे। चंद रोज में हॉस्टल में हवाई सेवा के लिए 3000 पत्र पहुँच गए। एक पत्र में तो 25 रूपये का डाक टिकट लगा था। पत्र भेजने वालों में प्रयागराज की कई नामी गिरामी हस्तियाँ तो थी हीं, राजा महाराजा और राजकुमार भी थे।

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