World Literacy Day: बच्चों के लिए चाचा नेहरू बन गए हैं चंदौली के दुर्गेश, वनवासी बच्चों को कर रहे शिक्षित
चंदौली में दुर्गेंश ने गांव के ही परिषदीय विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद सकलडीहा पीजी कालेज से स्नातक किया। कैलाश सत्यार्थी व युसूफ मलाला की अखबारों में छपी स्टोरी उनके मन में ऐसी उतरी कि कंधे पर झोला लटकाया और समाजसेवा की डगर पर चल पड़े।
जागरण संवाददाता, चंदौली : बहुत गुरूर है तुझको ऐ सिरफिरे तुफां, हमें भी जिद है कि दरिया को पार करना है। कर्मपथ पर बढ़ रहे आवाजापुर गांव निवासी दुर्गेश के रग-रग में यह पंक्तियां रच बस गई हैं। मन में समाज सेवा का ऐसा जुनून की परिवार की दुत्कार भी राह नहीं रोक पाई। वे पिछले पांच वर्षों से रेलवे स्टेशन, चट्टी चौराहों, कस्बा, बाजारों में लोगों से भिक्षाटन कर गरीब बच्चों में खुशियां तो बिखेर ही रहें हैं उनके लिए चाचा नेहरू भी बन गए हैं।
दुर्गेंश ने गांव के ही परिषदीय विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद सकलडीहा पीजी कालेज से स्नातक किया। अपने पैरों पर खड़े होने की लालसा मन में जगी तो वाराणसी के निजी संस्थान में नौकरी करने लगे, लेकिन मन में समाज सेवा का जज्बा कुलाचें मारता रहा। अंतत: नौकरी छोड़ 2012 में घर लौट आए। 2014 नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी व युसूफ मलाला की अखबारों में छपी स्टोरी उनके मन में ऐसी उतरी कि कंधे पर झोला लटकाया और समाजसेवा की डगर पर चल पड़े।
चट्टी, चौराहों, कस्बा बाजारों, रेलवे स्टेशन पर भिक्षाटन करने लगे। इससे अर्जित धन से परिषदीय विद्यालयों में गरीब बच्चों में कापी, किताब, कलम बांटना शुरू कर दिया। हौसला ऐसा बढ़ा कि भिक्षाटन करना ही उनकी दिनचर्या बन गई। माह में जो भी भिक्षाटन से धन एकत्रित होता है कापी, किताब के साथ खेल सामग्री बच्चों में बांटना उनके जीवन का उद्देश्य बन गया है।
भिक्षाटन के ही धन से गरीब बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी उठा रहे हैं। जिले के पहाड़ी इलाके वनांचल में वनवासी बच्चों को शिक्षित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। बीते दिनों छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुइया उड़के ने इस कार्य के लिए उन्हें सम्मानित किया था।
बच्चियाें के हाथ पीले करने में भी सहयोग
दुर्गेंश गरीब बच्चियों के हाथ पीले करने में भी सहयोग कर रहे हैं। भिक्षाटन व चंदा मांगकर अब तक दो बच्चियों का विवाह करा चुके हैं।