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हिमालयी राज्यों की हवा भी लगातार होती जा रही जहरीली, दिल्ली के प्रदूषण से पहाड़ की हवाओं में तेजी से बढ़ा पीएम 2.5

हिमालयी राज्यों उत्तराखंड हिमांचल प्रदेश जम्मू कश्मीर आदि क्षेत्रों को पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित माना जाता था। स्वच्छ आबोहवा के लिए लोग यहां पहुँचते थे। लेकिन इंडो-गंगा के मैदानों से पहुँच रहा प्रदूषण हिमालय के वायुमंडल को लगातार प्रभावित कर रहा है। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान कोसी कटारमल के वायु गुणवत्ता निगरानी में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) के स्तर में खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई है।

By Jagran News Edited By: Vinay Saxena Updated: Tue, 26 Nov 2024 09:30 AM (IST)
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विज्ञानी हिमालयी क्षेत्र में लगातार बढ़ते प्रदूषण के स्तर को जैव विविधता के लिए खतरनाक मान रहे हैं।
चंद्रशेखर द्विवेदी, अल्मोड़ा। दिल्ली में जहरीली होती हवा का असर अब हिमालयी राज्यों में भी दिखाई देने लगा है। यहां ही हवाओं में भी पार्टिकुलेट मैटर में खतरनाक वृद्धि देखी गई है। जिससे एयर क़्वालिटी इंडेक्स भी सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक हो गया है। विज्ञानी हिमालयी क्षेत्र में लगातार बढ़ते प्रदूषण के स्तर को जैव विविधता के लिए खतरनाक मान रहे हैं।

हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, हिमांचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर आदि क्षेत्रों को पर्यावरण की दृष्टि से सुरक्षित माना जाता था। स्वच्छ आबोहवा के लिए लोग यहां पहुँचते थे। लेकिन इंडो-गंगा के मैदानों से पहुंच रहा प्रदूषण हिमालय के वायुमंडल को लगातार प्रभावित कर रहा है।

जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, कोसी कटारमल के वायु गुणवत्ता निगरानी में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) के स्तर में खतरनाक वृद्धि दर्ज की गई है। पीएम का स्तर अक्टूबर के अंतिम सप्ताह से नवंबर के पहले सप्ताह तक 22 प्रतिशत तक बढ़ा। और अगले सप्ताह में इसमें सात प्रतिशत की और वृद्धि हुई। पीएम10 का स्तर, जो आमतौर पर सुरक्षित सीमा के भीतर रहता है। अक्टूबर के अंत से नवंबर की शुरुआत में लगभग दोगुना वृद्धि (96 प्रतिशत) हो गया। हालांकि, दूसरे सप्ताह में इसमें 21 प्रतिशत की कमी आई। एयर क़्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) लगभग 110 है। जो सुरक्षित सीमा से कहीं अधिक है।

असाधारण रूप से बढ़ रहा पहाड़ में प्रदूषक

विज्ञानियों का मानना है कि आमतौर पर, इंडो-गंगा के मैदानों से हिमालय की ओर बढ़ने वाले प्रदूषक पहाड़ों में पहुंचकर कम हो जाते हैं। लेकिन इस बार की स्थिति असाधारण है। स्थिर मौसम और प्रदूषकों के लंबी दूरी तक पहुंचने से हिमालय के वायुमंडल की गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित हुई है। यह संकट फसल अवशेष जलाने के मौसम के साथ मेल खाता है। हालांकि नासा के उपग्रह डेटा के अनुसार, पिछले वर्षों की तुलना में इस साल सक्रिय आग की घटनाओं में 70-80 प्रतिशत की कमी आई है। विशेषज्ञ मानते हैं कि सेकेंडरी एरोसोल निर्माण और औद्योगिक व वाहनों से होने वाले उत्सर्जन ने स्थिति को और बिगाड़ा है।

50 तक एक्यूआई माना जाता है सुरक्षित

अल्मोड़ा: एक्यूआई (एयर क्वालिटी इंडेक्स) के मुताबिक, 0 से 50 तक का स्तर हवा को "अच्छा" और सुरक्षित मानता है। वहीं, 51-100 का स्तर "सामान्य" है, जो कुछ लोगों के लिए हल्की परेशानी पैदा कर सकता है। 101-200 के बीच का स्तर "मध्यम प्रदूषित" माना जाता है, जो खासतौर पर अस्थमा और सांस की दिक्कत वाले लोगों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। 201-300 का स्तर "खराब" होता है, जो सेहत को सीधे प्रभावित करता है। 301-400 के बीच की हवा "बहुत खराब" और 401-500 का स्तर "गंभीर" है, जहां फेफड़ों और दिल की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।

हिमालयी क्षेत्र की हवा लगातार खतरनाक हो रही है। हिमालय जैसे पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर इसके प्रभाव को देखते हुए ट्रांसबाउंड्री वायु प्रदूषकों के शमन पर विशेष अनुसंधान परियोजनाओं की आवश्यकता है।- डॉ. सुमित राय, वैजानिक, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान, अल्मोड़ा

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