उत्तराखंड में विवाहित बहनों व बेटियों को हर साल रहता है जिस Bhitauli का इंतजार, अब भाइयों ने बदला देने का तरीका
Bhitauli उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल में चैत्र महीने में विवाहित बहनों व बेटियों को भिटौली देने की विशिष्ट परंपरा आज भी जीवित है। चैत्र माह को भिटौली का महीना भी कहते हैं। चैत्र मास यानि भिटौली के महीने की शुरुआत पहाड़ में फूलदेई त्योहार के साथ होती है। अब मायके से बहनों को मोबाइल से ही गूगल पे कर अथवा मनीआर्डर भेज कर भिटौली दी जाने लगी है।
डीके जोशी, अल्मोड़ा। Bhitauli: डान धरा फूल गै बुरांशी, आ गैछे चैत क महीना...। पर्वतीय अंचल में चैत्र महीने में विवाहित बहनों व बेटियों को भिटौली देने की विशिष्ट परंपरा आज भी जीवित है।
पहाड़ में चैत्र मास में ससुराल में रह रहीं बहनों से मिलने, उन्हें नए वस्त्र व विविध उपहार देने तथा मां के हाथों से तैयार पकवान देने का रीति- रिवाज काफी पुरातन है। चैत्र माह को भिटौली का महीना भी कहते हैं। शहरों और कस्बों में अब इस प्राचीन परंपरा का स्वरूप बदलता जा रहा है। व्यस्तता के दौर में अब मायके से बहनों को मोबाइल से ही गूगल पे कर अथवा मनीआर्डर भेज कर भिटौली दी जाने लगी है।
चैत्र मास यानि भिटौली के महीने की शुरुआत पहाड़ में फूलदेई त्योहार के साथ होती है। मायके की मधुर यादों में बहनें विचलित न हों, इसलिए चैत्र मास में बहनों व बेटियों से मिलने और उनकी कुशलक्षेम लेने को भिटौली देना कहते हैं। पर्वतीय अंचल में भिटौली भाई-बहनों के बीच असीम प्यार का प्रतीक है। चैत्र माह की संक्रांति अर्थात फूलदेई के दिन से बहनों को भिटौली देने का सिलसिला शुरू हो जाता है।
मायके की यादें हो जाती हैं ताजा
वसंत ऋतु के आगमन से छायी हरियाली, कोयल, न्योली व अन्य पक्षियों का मधुर कलरव, सरसों, गेहूं आदि से लहलहाते खेत, घर-घर जाकर बचपन में फूलदेई का त्योहार मनाना व भाभियों संग रंगोत्सव होली का अल्हड़ आनंद लेना उन्हें बरबस याद आने लगता है।सुदूर ससुराल में विवाहित लड़कियों को इस माह मायके की याद न सताए, इसलिए मायके वाले प्रतिवर्ष चैत्र माह में उनसे मुलाकात करने पहुंचते हैं। मां की ओर से तैयार विभिन्न प्रकार के पकवान, नए वस्त्र और तरह-तरह के उपहार बहनों को भेजने का प्रचलन काफी पुरातन है।
अब बदलता जा रहा भिटौली का स्वरूप
संस्कृति कर्मी नवीन बिष्ट ने बताया पहाड़ में भिटौली देने का स्वरूप आधुनिकता की हवा के चलते बदल गया है। वहीं अत्यंत व्यस्त और भागमभाग जीवन शैली तथा आधुनिक सूचना क्रांति युग के बावजूद यह भाई-बहन की याद से अवश्य जुड़ा हुआ है।
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