Diwali पर उत्तराखंड में गन्ने के तने से बनाई जाती है मां लक्ष्मी की प्रतिमा, 17वीं शताब्दी से निभाई जा रही अनूठी परंपरा
Diwali 2024 उत्तराखंड में दीवाली 2024 के अवसर पर गन्ने के तने से मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने की अनूठी परंपरा सदियों से चली आ रही है। पूरे कुमाऊं में मां लक्ष्मी की प्रतिमा गन्ने के तने से बनाई जाती है। यह परंपरा सत्रहवीं शताब्दी से चल रही है। जानिए इसका इतिहास महत्व और विधि। साथ ही इस साल गन्ने की कीमतों में हुए बदलाव के बारे में भी पढ़ें।
डीके जोशी, जागरण अल्मोड़ा। Diwali 2024: पहाड़ में गन्ने के तने से मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने की परंपरा अनूठी है। यह परंपरा सत्रहवीं शताब्दी से चल रही है। दीपावली पर्व पर दिन में मां लक्ष्मी की प्रतिमा का निर्माण किया जाता है। रात्रि में घर-घर में मां लक्ष्मी की विधि- विधान से पूजा की जाती है।
गन्ने की लक्ष्मी बनाने के पीछे की मान्यता यह है कि मानस खंड और पुराणों में गन्ने को काफी शुभ और फलदायक माना जाता है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी को भी गन्ना बेहद ही पसंद है। इसलिए पूरे कुमाऊं में मां लक्ष्मी की प्रतिमा गन्ने के तने से बनाई जाती है।
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मां लक्ष्मी को गन्ना बहुत प्रिय
मान्यता के अनुसार कुमाऊं में गन्ने के तनों से मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाने की शुरूआत सत्रहवीं शताब्दी से शुरू हुई। इस परंपरा का निर्वहन करते हुए पहाड़ में हर साल गांव- गांव, घर- घर गन्ने के तनों से मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाई जाती है। पं. राजेश चंद्र जोशी के अनुसार मां लक्ष्मी को गन्ना बहुत प्रिय है।
गन्ने को मां लक्ष्मी, श्री, धन का स्वरूप माना जाता है। गन्ने से मां लक्ष्मी की मूर्ति बनाए जाने पर मां लक्ष्मी प्रसन्न होकर भक्तों पर कृपा करती हैं। कहा कि महालक्ष्मी पर्व के दिन गन्ने से मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाए जाने का प्रावधान है। उनका कहना है कि प्रतिमा की पूजा के बाद इसे नदी या पानी में विसर्जित किया जाना चाहिए।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।प्रतिमा निर्माण में प्रयुक्त होने वाली सामग्री
मां लक्ष्मी की प्रतिमा निर्माण में मुख्य रूप से गन्ने के तने का प्रयोग किया जाता है। जिस स्थान पर यह बनाई जाती है। उस स्थान पर सबसे पहले लक्ष्मी चौकी बनाई जाती है। इसके बाद गन्ने के छोटे-छोटे तनों को स्थिर कर प्रतिमा का निर्माण किया जाता है। इसके बाद प्रतिमा का सोलह श्रृंगार किया जाता है। रात्रि में प्रतिमा की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। यह भी पढ़ें- Diwali 2024: दिल्ली आइएसबीटी पर उत्तराखंड के यात्रियों में सीट के लिए मारामारी, दून आने वाली बसें फुल; ट्रेनें पैकपहाड़ में गन्ना की मांग बढ़ी
पहाड़ में गन्ने की खेती बहुत कम होती है। कुछ लोग घरों के आसपास गन्ना उगाते हैं। अबकी जिला मुख्यालय के आसपास के गांवों के अलावा हल्द्वानी समेत अन्य क्षेत्रों से काफी मात्रा में गन्ना बिकने को आया है। पिछले साल जहां एक गन्ना का तना 30-40 रुपये में आता था वहीं इस बार यह 50 से 60 रुपये में बिका।पहाड़ में गन्ने के तने से मां लक्ष्मी के प्रतिमा निर्माण की शुरूआत सत्रहवीं शताब्दी से मानी जाती है। महालक्ष्मी के दिन पूरे श्रद्धाभाव से मां लक्ष्मी की प्रतिमा बनाई जाती है। रात्रि में पूजा की जाती है। इसके बाद शुभवार व तिथि को प्रतिमा को शंख व घंटी की ध्वनि के बीच नदी अथवा किसी पवित्र पेड़ के पास विसर्जित किया जाता है। - लता पांडे, वरिष्ठ कलाकार, अल्मोड़ा