रानीखेत में अवैध कब्जे पर सत्तापक्ष ने साधी चुप्पी, विपक्ष के तेवर हुए हमलावर; आंदोलनकारी संगठन भी हुए मुखर
रानीखेत में जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान की भूमि पर अवैध कब्जे के मामले ने तूल पकड़ लिया है। सत्ता पक्ष की चुप्पी के बीच विपक्ष हमलावर हो गया है और कार्यकर्ता संगठन उच्च स्तरीय जांच की मांग कर रहे हैं। संस्थान की भूमि पर कब्जे से हिमालयी पर्यावरण को खतरा पैदा हो गया है। वहीं आंदोलनकारी संगठन भी मुखर हो रहे हैं।
संवाद सूत्र, रानीखेत। देश के हिमालयी राज्यों का प्रतिनिधत्व करने वाले जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान की भूमि पर अवैध कब्जे के मामले में सत्तापक्ष जहां चुप्पी साधे है, वहीं विपक्ष इस मामले में हमलावर हो गया है। कांग्रेस ने इस गंभीर मुद्दे पर सरकार की घेराबंदी की है।
तो जल, जंगल व जमीन के पैरोकार आंदोलनकारी संगठनों ने सरकारी भूमि पर अतिक्रमण की उच्चस्तरीय जांच और सरकार से अब तक हुए जमीन संबंधी प्रकरणों पर श्वेतपत्र जारी करने की पुरजोर वकालत की है। खास बात यह है कि सांसद अजय टम्टा संस्थान की समिति में नामित सदस्य हैं। दूसरा संस्थान का क्षेत्र सोमेश्वर विधानसभा में है, जहां से कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या विधायक हैं।
जिले के कोसी कटारमल में 1988 में राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान स्थापित किया गया था। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (भारत सरकार) की इस स्वायत्त संस्थान का उद्देश्य हिमालयी समाज, पर्यावरण, जैवविविधता, ग्लेशियर, जल संसाधन आदि विभिन्न पहलुओं पर अनुसंधान करना है। ताकि विज्ञानियों की शोध रिपोर्ट के आधार पर हिमालयी प्रदेशों के हित में केंद्र तथा संबंधित राज्यों की सरकार को संरक्षण की ठोस नीति बनाने में मदद मिल सके।
मगर हिमालय बचाने को नित नए शोध अनुसंधान करने वाले संस्थान की ही भूमि अवैध कब्जों से कराह रही है। हालांकि लगभग 120 नाली यानि छह एकड़ भूमि पर अतिक्रमण प्रकरण पर डीएम आलोक कुमार पांडेय बेहद गंभीर हैं। एसडीएम से जांच भी कराई जा रही है। इधर संस्थान की समिति के नामित सदस्य एवं सांसद अजय टम्टा तथा कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या से इस मामले में उनका पक्ष जानने के लिए कई बार संपर्क साधा गया पर बात नहीं हो सकी।
क्या बोले विपक्षी नेता
मनोज तिवारी, विधायक अल्मोड़ा
हिमालय हित में संस्थान राजीव गांधी के कार्यकाल में स्थापित किया गया था। ताकि यहां शोध कार्यों का लाभ स्थानीय लोगों को मिल सके। लेकिन भारत सरकार के अधीन संस्थान की भूमि पर अतिक्रमण चिंतनीय है। अतिक्रमणकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।
करन माहरा, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष-
धामी सरकार का हिमालय व पर्यावरण बचाने को बने संस्थान की जमीन पर अवैध कब्जों पर मौन रहना कई सवाल खड़े कर रहा। सुना है पूर्व में सीएम पोर्टल पर भी शिकायत की जा चुकी है लेकिन अब तक कार्रवाई न होना सरकार की कार्यशैली को दर्शा रहा। संस्थान की भूमि कब्जामुक्त न हुई तो कांग्रेस चुप नहीं बैठेगी।
पुष्पेश त्रिपाठी, पूर्व विधायक व वरिष्ठ उक्रांद नेता-
1962 के बाद भूमि बंदोबस्त नहीं हुआ है। कौन सी भूमि किसकी है पता ही नहीं। सरकारी व गैर सरकारी भूमि पर प्रभावशाली व बाहरी रसूखदार कब्जा कर रहे। राज्य की सरकारें डेमोग्राफी बिगाड़ने की खुद साजिश रच रही हैं। इसीलिए उक्रांद लगातार बंदोबस्त किए जाने की आवाज उठाता आ रहा है। जीबी पंत हिमालयी पर्यावरण संस्थान की भूमि पर कब्जा हो रहा है तो इसकी निष्पक्ष जांच व कड़ी कार्रवाई होनी ही चाहिए।
पूर्वोत्तर में 371 तो उत्तराखंड में क्यों नहीं : पीसी तिवारी
उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी (उपपा) भी अवैध कब्जा प्रकरण पर मुखर हो गई है। केंद्रीय संयोजक अधिवक्ता पीसी तिवारी ने दो टूक कहा- उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर वनभूमि, ग्रामीणों की नाप व सरकारी भूमि पर कब्जे हैं। सरकार को श्वेतपत्र जारी करना चाहिए। बीते 24 वर्षों में सरकारों ने जिसे भूमि दी है, यह स्पष्ट नहीं होता सशक्त भूकानून के कोई मायने नहीं।
सवाल उठाया कि पूर्वोर में धारा 371 लागू है तो उत्तराखंड की भूमि, प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण को यह यहां क्यों लागू नहीं हो सकती। पीसी तिवारी ने आरोप लगाया कि कोरोनाकाल में पहाड़ में बड़े पैमाने पर भूमि बिकी। भूमि खरीद की आड़ में अवैध कब्जा किए बैठे लोगों के विरुद्ध कानून बना कार्रवाई हो। तभी डर पैदा होगा।