भारतीय सेना में कुमाऊं रेजिमेंट सर्वोपरि : त्रिवेंद्र
हाइलाइटर 'गौरवशाली सैन्य परंपरा, पराक्रम व भारत भूमि के लिए मर मिटने का जज्बा। यही है भारतीय
By JagranEdited By: Updated: Mon, 11 Jun 2018 11:11 PM (IST)
हाइलाइटर
'गौरवशाली सैन्य परंपरा, पराक्रम व भारत भूमि के लिए मर मिटने का जज्बा। यही है भारतीय सेना की सबसे पुरानी कुमाऊं रेजिमेंट की पहचान। देश के लिए पहला परमवीर चक्र दिलाने वाले मेजर सोमनाथ हों या मेजर शैतान सिंह। वीरता के किस्सों से भरी केआरसी ही है जिसने अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा तीन थल सेनाध्यक्ष भारत को दिए हैं। कुमाऊंनी वीरों की गाथा 1788 से शुरू होती है, जब हैदराबाद निजाम ने इन्हीं के बूते अपनी रेजिमेंट खड़ी की। 1794 में निजाम कांटीजेंट के रूप में बरार इंफेंट्री निजाम आर्मी व रसेल ब्रिगेड का विलय कर हैदराबाद कांटीजेंट की नींव पड़ी। 1903 में कुमाऊंनी लड़ाकों से भरी इस फौज का भारतीय सेना में विलय हुआ। फिर 1922 में हैदराबाद रेजिमेंट तथा 27 अक्टूबर 1945 को 'कुमाऊं रेजिमेंट' के नाम से एक नई गौरवगाथा का श्रीगणेश हुआ। इसके बाद रानीखेत में कुमाऊं रेजिमेंट का सबसे बड़ा मुख्यालय स्थापित किया गया। जिसने अब तक पराक्रम की कई पटकथाएं लिख डाली हैं। फिलवक्त कुमाऊं रेजिमेंट की देश भर में 21 से ज्यादा बटालियन मां भारती की सुरक्षा के लिए मुस्तैद हैं। अहम पहलू यह कि कई युद्ध व ऑपरेशनों में अग्रिम मोर्चा संभालने वाली केआरसी ने ही अपने साथ देश भक्ति से भरे नागा रेजिमेंट को अपने साथ रख भारतीय सैन्य परंपरा को एक नया आयाम भी दिया। अब तक के सैन्य इतिहास में अकेले कुमाऊं रेजिमेंट के जांबाजों मेजर भुकांत मिश्रा, सूबेदार सुज्जन सिंह, नायक रामवीर सिंह तोमर व नायक निर्भय सिंह को अशोक चक्र प्राप्त हुआ' ===================== दीप सिंह बोरा, रानीखेत कुमाऊं रेजिमेंट सेंटर मुख्यालय (केआरसी) का सोमनाथ मैदान एक बार फिर ऐतिहासिक पल का गवाह बना। 34 सप्ताह का कठिन प्रशिक्षण हासिल कर बहादुरगढ़ के द्वार से कदमताल कर विभिन्न राज्यों के 155 जाबांज भारतीय सेना के अभिन्न अंग बने। इनमें 67 उत्तराखंड जबकि शेष 88 उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा आदि प्रदेशों के युवा सैनिक शामिल हैं। सैनिक परिवार से जुड़े और यहां आने वाले पहले सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बतौर मुख्य अतिथि कसम परेड की सलामी ली। सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले छह सैनिकों को पदक प्रदान किए। उन्होंने रेजिमेंट के गौरवशाली इतिहास को कायम रखते हुए देश की सुरक्षा के लिए तत्पर रहने का आह्वान भी किया।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, कर्नल ऑफ द रेजिमेंट लेफ्टिनेंट जनरल (सेना मेडल) बीएस सेरावत तथा केआरसी कमाडेंट ब्रिगेडियर जीएस राठौड़ ने परेड की सलामी ली। सीएम ने बाद में परेड का निरीक्षण किया। भारतीय सेना के कैप्टन विकास कुमार के निर्देशन में केआरसी के धर्मगुरुसूबेदार गणेश दत्त जोशी ने गीता को साक्षी मान जांबाजों को देश की आन, बान व शान की रक्षा के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की शपथ दिलाई। परेड में केआरसी ध्वज नायब सूबेदार नरेंद्र सिंह व तिरंगे के ध्वज वाहक सूबेदार रघुवर सिंह रहे। संचालन सूबेदार लक्ष्मण सिंह व प्रतिभा अवस्थी ने किया।
================ उत्तराखंड देवभूमि ही नहीं वीरों की भी भूमि : त्रिवेंद्र
रानीखेत : मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा, सैनिक बनने से बड़ा देशप्रेम व सौभाग्य कुछ नहीं। नए जांबाजों से कहा कि उन्होंने आज जो शपथ ली है, उसे निष्ठा, कड़ी मेहनत के साथ देश की सुरक्षा व सेवा में लगा दें। सीएम ने कहा, उत्तराखंड देवभूमि ही नहीं वीरों की भूमि भी है। कुमाऊं रेजिमेंट के इतिहास को उन्होंने गौरवशाली बताते हुए कहा कि भारतीय सेना में इसका नाम सबसे ऊपर है। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों से पहुंचे बहादुर सैनिकों के परिजनों से कहा कि वे धन्य हो गए क्योंकि उन्होंने अपने-अपने पुत्रों को भारत माता की सेवा के लिए फौज में भर्ती होने की प्रेरणा दी। साथ ही इन जवानों ने भी देशसेवा के लिए सेना को चुन कर अपने जीवन का महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। ============== इन जाबांजों को मिला पदक =ऑल ओवर बेस्ट रिक्रूट : सैनिक रमेश कुमार =शारीरिक प्रशिक्षण : अतुल कुमार जोशी = बेस्क ड्रिल : परेड कमांडर विशाल सिंह =========== इन्होंने की परेड की अगुवाई मेजर सुरेंद्र सिंह, सागर कुमार राणा (बी कंपनी), करन सिंह बिष्ट व एम कियो (ए कंपनी), अतुल जोशी (डी कंपनी), पंकज सिंह व चिकम टी संगताम (सी कंपनी) =========== ये सैन्य अधिकारी रहे मौजूद कर्नल नीरज सूद, कार्यवाहक उपकमाडेंट केआरसी व टीबीसी प्रशिक्षण बटालियन (शौर्य चक्त्र) ले. कर्नल नक्षत्र भंडारी, जेएसओ-वन (प्रशिक्षण ) ले. कर्नल विजय नरसिंम्हन आदि रहे।
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