कैंसर और एड्स के इलाज में कारगर दुर्लभ हिमालयी वनस्पतियों को विज्ञानियों ने दी संजीवनी
विज्ञानियों ने कैंसर और एड्स जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में कारगर दुर्लभ और लुप्तप्राय हिमालयी वनस्पतियों थुनेर और इलम को संरक्षित किया है। इन वनस्पतियों के डीएनए युक्त नमूने एकत्र कर राष्ट्रीय जीन बैंक में सुरक्षित रखे गए हैं। इनसे नई पौध तैयार की जा सकेंगी और भविष्य में इन रोगों के उपचार में दवाओं की उपलब्धता बनी रहेगी।
इलम इन रोगों में है कारगर
एंटीआक्सीडेंट गुणों वाला हिमालयी इलम (उल्मस वल्चियाना) भी थुनेर की भांति अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आइयूसीएन) की लुप्तप्राय सूची में है। तीन हजार मीटर ऊंचाई तक उगने वाले इलम के औषधीय गुणों से अनिद्रा, उच्चरक्तचाप, सूजन व हड्डी रोग का इलाज किया जाता है। भारत, चीन, तिब्बत की आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति में दोनों औषधीय वनस्पतियों का उपयोग होता आ रहा है।ऐसे तैयार होंगी नई पौध
तीन हिमालयी राज्यों में शोध
जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान अल्मोड़ा के राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत केंद्रीय विवि पंजाब के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. पंकज भारद्वाज की अगुआई में चार वर्ष पूर्व उत्तराखंड, हिमाचल व जम्मू कश्मीर में शोध शुरू किया था। विज्ञानियों ने इन क्षेत्रों में थुनेर व इलम के पनपने व क्षय संभावित क्षेत्र तलाशे। सिल्वर स्टेनिंग तकनीक का उपयोग यानि प्रोटीन व न्यूक्लिक एसिड का पता लगा इन प्रजातियों का संरक्षण का खाका तैयार किया। औषधीय गुणों वाले संकटग्रस्त प्रजातियों पर यह इस तरह का पहला अनुसंधान है। थुनेर व इलम से पूर्व विज्ञानी राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन के तहत मोटे अनाजों व अन्य औषधीय पौधों के डीएनए संरक्षित कर चुके हैं।कैंसर से लेकर सर्दी-जुकाम तक में कारगर
थुनेर व इलम दोनों औषधीय वनस्पतियों में मौजूद रसायन का एलोपैथिक व आयुर्वेदिक दवाओं में उपयोग किया जाता है। थुनेर की छाल में पाए जाने वाले टेक्सोल से कैंसर की दवा बनती है। सीमांत क्षेत्रों में इसकी पत्तियों व छाल से औषधीय चाय बनाते हैं। सर्दी जुकाम की आयुर्वेदिक दवाओं में भी थुनेर की छाल का रसायन मिलाया जाता है। इलम एंटी फंगस, एंटीबैक्टीरियल, एंटीआक्सीडेंट गुणों का भंडार है। इससे तैयार लेप का घाव भरने, हड़्डी रोग, छाले व जल जाने पर काम आता है।
डॉ. धनी आर्या, विभागाध्यक्ष वनस्पति विज्ञान सोबन सिंह जीना विवि अल्मोड़ा
हिमालय में यह पहला अनुसंधान है, जिसमें औषधीय थुनेर व इलम पर आनुवांशिकी अध्ययन किया गया। पहली बार जीन बैंक में आंकड़ों का संग्रहण भी किया है। यह संकटग्रस्त प्रजातियों के संरक्षण में सहायक बनेगा।
डॉ. पंकज भारद्वाज, वरिष्ठ शोध विज्ञानी
औषधीय वनस्पतियों पर यह शोध भविष्य में जीवनरक्षक दवाओं पर आत्मनिर्भरता की दिशा में अच्छी पहल है। आनुवांशिकी अध्ययन इन प्रजातियों के संरक्षण में महत्वपूर्ण है।
इंजीनियर एमएस लोधी, प्रभारी नोडल अधिकारी राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन