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आदिब्रदी मां भगवती बदियाकोट में महापूजा

कपकोट तहसील के बदियाकोट भगवती मंदिर में पांच अगस्त से चार सितंबर तक महापूजा का आयोजन किया जा रहा है।

By JagranEdited By: Updated: Thu, 25 Aug 2022 09:42 PM (IST)
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आदिब्रदी मां भगवती बदियाकोट में महापूजा

आदिब्रदी मां भगवती बदियाकोट में महापूजा

जागरण संवाददाता, बागेश्वर : कपकोट तहसील के बदियाकोट भगवती मंदिर में पांच अगस्त से चार सितंबर तक महापूजा का आयोजन किया जा रहा है। विधायक सुरेश गढ़िया महापूजा का शुभारंभ करेंगे। 12 दानू भाइयों को देव शक्ति प्राप्त थी।

14 पट्टी दानपुर में प्राचीन काल से भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि को मां भगवती नंदा की पूजा की जा रही है। आदिबद्री मां भगवती नंदा बदियाकोट मंदिर को सिद्धपीठ माना जाता है। आदिकाल में मां नंदा एक मृग का वेश में गढवाल के बंड नामक स्थान से यहां आई थीं। दो पुरुष उनका यानी मृग का शिकार पीछे से आ रहे थे। माता ने कन्या का रूप रखकर उन्हें दर्शन किए। बदियाकोट की ऊंची पहाड़ी पर रहने और उन्हें मंदिर बनाकर पूजा अर्चना करने का आशीर्वाद दिया। इसी स्थान पर सतयुग में माता ने निशम्भु दैत्य का वध किया था। उन दो पुरुषों के छह-छह पुत्र हुए। मां की कृपा से बारह बदकोटी के नाम से प्रसिद्ध हुए। माता की सेवा के कारण भगवती नंदा ने उन्हें देव शक्ति प्रदान की। आज भी 12 बदकोटी दानू लोगों की पूजा होती है।

ये थे 12 दानू भाई

कालांतर में 12 भाई अलग-अलग स्थानों पर बस गए। जिसमें जमनी दानू, कपूर दानू, कुबाल दानू, बालचंद दानू, जयंग दानू, माल दानू, भग दानू, विरंग दानू, जीव दानू, बैनर दानू, वीर दानू, मली दानू आदि नामों से पुकारा जाता है।

दानपुर घाटी के शक्तिपीठ

बदियाकोट, पोथिंग, बैछम यह मां भगवती के शक्तिपीठ माने जाते हैं। बैछम में भुंवर और कटार प्रकट होने की सत्य कथा प्रचलित है। पोथिंग, बैछम और बदियाकोट में एक साथ नंदाजात और आठ्यों नहीं होती है। इस वर्ष पोथिंग में आठ्यों, बदियाकोट में सलपाती का आयोजन होगा। सभी गांवों से मां को चढ़ावा आता है। बैछम और पोथिंग में दानू ही पुजारी हैं।

ब्रह्मकल होता है अर्पित

नंदा अष्टमी की पूजा पवित्र ब्रह्म कमल से होती है। हिमालय से उसे लाया जाता है। जगथाना, तोली, गोगिना लीती, वाछम, बैछम धार, पेठी, बघर, ढोक्टी, सोरगा, कुंवारी गांव में मां की पूजा होती है।

शुक्ल पक्ष के प्रथमा को गेहूं भरा जता है। घराट में उसे पीसा जाता है। सप्तमी के दिन ढोल, दमाऊ, भुवर, और देव डागर आटा मंदिर ले जाते हैं। जागर लगता है। मां की उत्पति, विवाह, दैज्यों का संहार, कैलाश में रहने आदि का वर्णन जागर में होता है।

- जगत सिंह दानू, पुजारी

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