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Bhai Dooj 2022: गांव में कायम है ओखली में च्यूड़े बनाने की परंपरा, देवों को अर्पण होंगे नए धान से बने च्यूड़े

Bhai Dooj 2022 च्यूड़े बनाने के लिए महिलाएं दीपावली से दो-चार दिन पहले से नए धान को पानी में भिगो देती हैं। गोवर्धन पूजा के दिन धान को पानी से निकालकर लोहे के एक तसले में भूना जाता है। फिर महिलाएं उसे ओखली में कूटती हैं।

By Jagran NewsEdited By: Rajesh VermaUpdated: Wed, 26 Oct 2022 08:51 PM (IST)
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भौतिकतावाद की इस चकाचौध में आज भी पहाड़ों में यह परंपरा कायम है।
जागरण संवाददाता, बागेश्वर : Bhai Dooj 2022: पहाड़ के गांवों में आज भी ओखली में च्यूड़े बनाने की परंपरा कायम है। बुधवार को महिलाओं ने च्यूड़े बनाए। भैया दूज के मौके पर गुुरुवार को ये च्यूड़े देवताओं को चढ़ाए जाएंगे।

ऐसे तैयार होता है च्यूड़ा

दीपावली पर्व पर भैया दूज के दिन देवताओं को नए अनाज से बने च्यूड़े चलाने की वर्षों पुरानी परंपरा आज भी गांवों में देखने को मिलती है। च्यूड़े बनाने के लिए गांवों में महिलाएं दीपावली से दो-चार दिन पहले से ही नए धान को पानी के एक बर्तन में भिगो देती हैं। गोवर्धन पूजा के दिन धान को पानी से निकालकर लोहे के एक तसले में भूना जाता है। फिर महिलाएं मूसलों से उसे ओखली में कूटती हैं, इससे च्यूड़े तैयार हो जाते हैं। फिर उन्हें छीटकर भैया दूज के दिन देवताओं को चढ़ाया जाता है।

पुरोहित यजमानों को देते हैं आशीर्वाद

भैया दूज के दिन गांवों में लोग अपने ईष्ट देवता, कुल देवता को भी च्यूड़े चढ़ाते हैं और वर्षभर अच्छी फसल की कामना करते हैं। इस दिन कुल पुरोहित यजमानों के घर जाकर च्यूड़े उनके सिरों में रखते हैं और उन्हें आशीर्वाद देते हैं। परिवार के बुजुर्ग भी बच्चों के सिरों में च्यूड़े रखकर उन्हें जी रया जागि रया... आदि आशीष के आंखरों के साथ सुखी, समृद्ध व उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं।

विवाहित बेटियों व ईष्ट-मित्रों को भी देने का रिवाज

मायके में विवाहित बेटियों व ईष्ट-मित्रों को भी च्यूड़े दिए जाते हैं। भैया दूज के दिन आसपड़ोस में भी पकवानों के साथ एक दूसरे को च्यूड़े देने का रिवाज है। भौतिकतावाद की इस चकाचौध में आज भी पहाड़ों में यह परंपरा कायम है। लोग बेसब्री से इस दिन का इंतजार करते हैं।

नए धान से च्यूड़े बनाने की परंपरा सदियों पुरानी है। पहाड़ों में यह परंपरा आज भी जीवित है। युवा पीढी़ को इस परंपरा को बचाने के लिए आगे आना होगा।

- डा. हेम चंद्र दुबे, साहित्यकार

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