स्वतंत्रता दिवस: कत्यूर घाटी से 43 सेनानियों ने लड़ी थी आजादी की लड़ाई, 1929 में कौसानी आए थे महात्मा गांधी
आजादी के आंदोलन में कत्यूर घाटी के सेनानियों का अहम योगदान है। यहां के विभिन्न गांवों से 43 सेनानियों ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहां के दर्जनों सेनानियों ने गिरफ्तारी दी। बाजार स्थित गांधी चबूतरे पर बैठकर ही यहां के सेनानी स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति बनाते थे। यहीं पर अंग्रेजों के विरुद्ध सभाएं आयोजित होती थीं।
By ghanshyam joshiEdited By: Shivam YadavUpdated: Tue, 15 Aug 2023 05:00 AM (IST)
गरुड़ [चंद्रशेखर बड़सीला]। आजादी के आंदोलन में कत्यूर घाटी के सेनानियों का अहम योगदान है। यहां के विभिन्न गांवों से 43 सेनानियों ने आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहां के दर्जनों सेनानियों ने गिरफ्तारी दी।
बाजार स्थित गांधी चबूतरे पर बैठकर ही यहां के सेनानी स्वतंत्रता आंदोलन की रणनीति बनाते थे। यहीं पर अंग्रेजों के विरुद्ध सभाएं आयोजित होती थीं। 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में यहीं से करो या मरो का संकल्प लेकर आजादी के मतवाले आंदोलन में कूद गए।
21 जून 1929 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कौसानी पहुंचे। बागेश्वर जाते समय बापू गरुड़ में रुके। यहां पर जिस स्थान से बापू ने कत्यूर घाटी की जनता को संबोधित किया, वही गांधी चबूतरा कहलाता है। बापू की प्रेरणा से ही दर्जनों लोग आजादी के आंदोलन में कूद गए। गरुड़ बाजार के मध्य में स्थित गांधी चबूतरा स्वाधीनता आंदोलन का गवाह है।
ब्लाक मुख्यालय में स्वतंत्रता सेनानी स्मारक
स्वतंत्रता सेनानियों की याद में ब्लाक मुख्यालय गरुड़ में स्मारक बनाया गया है। स्मारक में कई सेनानियों के नाम अंकित हैं। स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के दीवान सिंह नेगी ने सभी सेनानियों के नाम स्मारक में अंकित करने की मांग की है साथ ही स्मारक को बड़ा बनाने की भी मांग की है।