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यहां है माता सीता का प्राचीन मंदिर, यहीं लिखी गई थी रावण के विनाश की पटकथा, पढ़िए पूरी खबर

चमोली के जोशीमठ ब्‍लॉक स्थित चांई गांव में माता सीता का मंदिर है। यहीं पर वेदवती ने रावण को श्राप देते हुए स्वयं को उसके महाविनाश का कारण बताकर पाषाण रूप धारण किया था।

By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 02 Aug 2019 08:53 PM (IST)
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यहां है माता सीता का प्राचीन मंदिर, यहीं लिखी गई थी रावण के विनाश की पटकथा, पढ़िए पूरी खबर
चमोली, रणजीत सिंह रावत। चमोली जिले के सीमांत जोशीमठ विकासखंड स्थित चांई गांव में माता सीता का एक अति प्राचीन मंदिर है। कहते हैं कि देश में यह एकमात्र मंदिर है, जहां माता सीता की पाषाण मूर्ति के अलावा अन्य किसी देवी-देवता की कोई मूर्ति नहीं है। मान्यता है कि सतयुग के अंतिम चरण में माता सीता ने राजा कुशध्वज की पुत्री वेदवती के रूप में यहां तपस्या की थी। यहीं पर वेदवती ने रावण को श्राप देते हुए स्वयं को उसके महाविनाश का कारण बताकर पाषाण रूप धारण किया था। तब से माता सीता इस क्षेत्र की आराध्य देवी बन गईं। त्रेता युग में वेदवती ने ही जनकसुता के रूप में जन्म लिया।

माता सीता के इस मंदिर का संचालन श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति करती है। चांई गांव के लोगों का मानना है कि माता उनकी हर आपदा-विपदा से रक्षा करती है। वर्ष 2007, 2013 और फिर 2018 में आई भीषण आपदा में भी गांव सुरक्षित रहा, जबकि गांव के ऊपर से पांच नाले आते हैं और नीचे से भारी भू-धंसाव हुआ है। ग्रामीण बताते हैं कि गांव की खुशहाली एवं समृद्धि के लिए दशहरे के मौके पर यहां माता सीता के जागर लगाए जाते हैं। इस दौरान दो-दिवसीय मेले का आयोजन होता है और माता सीता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा में शामिल होने के लिए सभी धियाणियां (ब्याहता बेटियां) गांव बुलाई जाती हैं।

श्री बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल के अनुसार 'ब्रह्म वैवर्त पुराण' में उल्लेख है कि कुशध्वज और मालावती की कन्या ने बचपन में ही वेदों का ज्ञान अर्जित कर लिया था। इसलिए वह वेदवती कहलाईं। युवावस्था प्राप्त करते ही वह गंधमादन पर्वत पर जाकर तपस्या करने लगीं। इसी अवधि में एक दिन कैलास जाते हुए लंकापति रावण की नजर वेदवती पर पड़ी और वह उन पर मुग्ध हो गया। हालांकि, इस सबसे बेखबर वेदवती ने रावण का स्वागत कर उसे आसन पर बैठाया। इसी दौरान अहंकारी रावण ने जैसे ही वेदवती को छूने की चेष्टा की वह शिला रूप में परिवर्तित हो गईं, लेकिन शिला में बदलने से पूर्व उन्होंने रावण को श्राप दिया कि उसके महाविनाश का कारण वही बनेंगी।

यहीं से जाता है 'चेनाप घाटी' का रास्ता

चांई गांव पहुंचने के लिए ब्लॉक मुख्यालय जोशीमठ से मारवाड़ी पुल होते हुए 15 किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। 570 की आबादी वाले इस गांव तक सड़क सुविधा उपलब्ध है। फूलों की खूबसूरत 'चेनाप घाटी' का रास्ता भी इसी गांव से होकर जाता है। चेनाप घाटी चमोली जिले में स्थित दूसरी फूलों की घाटी है, जिसे आज तक पर्यटन मानचित्र पर जगह नहीं मिल पाई। ग्रामसभा चांई के प्रधान रघुबीर सिंह बताते हैं कि दशहरे के अलावा नंदाष्टमी के मौके पर भी ग्रामसभा में माता सीता के जागर (धार्मिक आह्वान गीत) लगाए जाते हैं।  

1960 से पूर्व था यहां लकड़ी का पठाल वाला मंदिर

श्री बदरीनाथ धाम के पुजारी रघुनंदन डिमरी बताते हैं कि वर्ष 1960 से पूर्व चांई गांव में लकड़ी का पठाल वाला मंदिर था। इसके बाद ग्रामीणों ने नया मंदिर बनाया। श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की ओर से ही इस मंदिर के लिए पुजारी नियुक्त किया जाता है।

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