Badrinath Dham: दिव्यांगों के लिए रोल मॉडल बने सूरदास कृष्णपाल, कुछ लोग लाए थे भीख मंगवाने लेकिन बन गए कारोबारी
Badrinath Dham Yatra 2024 झारखंड दुमका निवासी 35 वर्षीय कृष्णपाल बदरीनाथ धाम में भक्त सूरदास के नाम से चित परिचित है। जन्मांध कृष्णपाल को कुछ लोग भीख मंगवाने के लिए बदरीनाथ धाम लाए लेकिन उसने ऐसा करने से मना कर दिया। अब वह प्रतिवर्ष बदरीनाथ आकर यात्रा सीजन के दौरान फेरी लगाकर प्रसाद बेचता है। तथा इससे कमाए रुपयों से अपने परिवार का लालन पालन करता है।
संवाद सहयोगी, जागरण गोपेश्वर। Badrinath Dham Yatra 2024: जन्मांध कृष्णपाल को कुछ लोग भीख मंगवाने के लिए बदरीनाथ धाम लाए, लेकिन उसका स्वाभिमान ऐसा कि नारायण के चरणों में उसने यह काम करने के लिए मना कर दिया। 17 सालों से वह प्रतिवर्ष बदरीनाथ आकर यात्रा सीजन के दौरान फेरी लगाकर प्रसाद बेचता है तथा इससे कमाए रुपयों से वह अपने परिवार का लालन पालन करता है।
झारखंड दुमका निवासी 35 वर्षीय कृष्णपाल बदरीनाथ धाम में भक्त सूरदास के नाम से चित परिचित हैं। वह बदरीनाथ धाम में आस्था पथ पर या अन्य जगह प्रसाद की फेरी लगाते हुए देखा जाता है। कृष्णपाल के पैतृक गांव दुमका में बुजुर्ग माता पिता रहते हैं।
जन्म से ही दोनों आंखों से दिखाई नहीं देता
कृष्णपाल जन्म से ही दोनों आंखों से दिखाई नहीं देता है। गरीब परिवार में जन्मे कृष्णपाल की आंखों में रोशनी के लिए प्रयास ही नहीं हुए और वह स्कूल पढ़ लिख नहीं सका। कृष्णपाल चाहते थे कि वे बदरीनाथ धाम की यात्रा करें। इस दौरान वह हरिद्धार पहुंचा तो वह कुछ लोगों के संपर्क में आया, वह उसे बदरीनाथ ले आए और बदरीनाथ आस्था पथ पर भीख मांगने के लिए बैठा दिया। उसे इस बात का अहसास हुआ तो पहले ही दिन अपने साथियों से इसका विरोध करते हुए भीख मांगने से इनकार कर दिया ।साथियों ने भोजन आजीविका का वास्ता दिया तो उन्होंने कहा कि सब कुछ नारायण ही पूरा करेंगे। यह कहते हुए उसने स्थानीय प्रसाद की दुकानों से प्रसाद खरीदकर उसे लाइन में लगे यात्रियों को देना शुरु किया। यात्रियों ने भी दिव्यांग के स्वरोजगार के प्रयासों की सराहना की ओर प्रसाद को हाथों हाथ खरीदा। यहीं से शुरु हुआ कृष्णपाल के फेरी लगाकर स्वराेजगार का सफर।
टोकरी टांगकर बदरीशपुरी के चक्कर लगाता है सूरदास
अपने गले में प्रसाद की टोकरी टांगकर डंडी के सहारे सूरदास बदरीशपुरी में चक्कर लगाता है। उसको बदरीनाथ के पग पग का ज्ञान हो गया है। यात्री प्रसाद खरीदकर बताई गई राशि टोकरी में रख देते हैं। अगर कोई तय मूल्य से अधिक राशि देता है तो कृष्णपाल उसे लेने से इनकार कर देता है। या फिर उस राशि से अतिरिक्त प्रसाद और थमा देता है। वह जिस व्यक्ति की आवाज सुन लेगा व नाम सुन लेगा तो वह फिर दोबारा आवाज से ही उसे पहचान लेता व आदर भाव से प्रणाम करना नहीं भूलता।यही कारण है कि बदरीशपुरी में कृष्णपाल सबका चहेता है। वह सिक्कों व नोटों को हाथ लगाकर पहचानने के साथ मोबाइल फोन को भी बखूबी संचालित कर लेता है। शीतकाल में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद होने पर कृष्णपाल अपने गांव लौट जाता है। बताया कि उसको इतनी आमदनी हो जाती कि वह अपने बुजुर्ग माता पिता व स्वजनों का बेहतर ढंग से लालन पालन कर लेता है।कृष्णपाल का कहना है कि वह प्रसाद, सिंदूर, पूजा सामग्री बेचने के साथ क्यूआर कोड से डिजिटल पैमेंट भी स्वीकर करता है। कहा कि किसी भी यात्री ने उन्हें जन्माध होने के बाद भी कभी ठगा नहीं। ज्यादा पैंसे देने की कोशिश पर वह उसे स्वीकर नहीं करता है। कृष्णपाल ने दिव्यांगों से अनुरोध किया कि वे भी स्वरोजगार की दिशा में कार्य करें।
देश की जनता उनके दुख दर्दों को समझते हुए जरूर स्वरोजगार को आगे बढ़ाने के लिए मदद करती है। बीकेटीसी के मीडिया प्रभारी डॉ हरीश गौड़ ने बताया कि बदरीनाथ धाम में कृष्णपाल बहुत स्वाभिमानी है। वह जिस तरह से स्वरोजगार के लिए कार्य कर रहा है, वह किसी उदाहरण से कम नहीं है। वह खुद अपने लिए भोजन भी बनाता है तथा कपड़े भी स्वयं धोता है। प्रतिदिन नारायण के दर्शन कर अपने स्वरोजगार की शुरुआत करता है।
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