यहां रक्षाबंधन पर वृक्षों पर भी बांधी जाती है स्नेह की डोर
चमोली और उत्तरकाशी में रक्षाबंधन का पर्व वन और जन के रिश्ते की डोर को भी मजबूत करता है। यही वजह है कि यहां लोग वृक्षों को राखी बांधते हैं।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Mon, 27 Aug 2018 09:15 AM (IST)
गोपेश्वर, चमोली [जेएनएन]: यूं तो रक्षा बंधन भाई-बहन का त्योहार है, लेकिन चमोली और उत्तरकाशी में यह पर्व वन और जन के रिश्ते की डोर को भी मजबूत करता है। यही वजह है कि चमोली के पपड़ियाण गांव के लोग वृक्षों को राखी बांध अपनी पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करते हैं तो उत्तरकाशी में पिछले 25 वर्षों से रक्षा सूत्र आंदालन चल रहा है। रविवार को ग्रामीण वृक्षों पर राखी बांधने की तैयारी कर रहे हैं।
कभी चिपको आंदोलन की जननी रही चमोली जिले की भूमि पर्यावरण को लेकर कितनी संवेदनशील है, पपड़ियाण गांव इसकी एक मिसाल है। इस गांव के लोग पिछले एक दशक से पेड़ों को राखियां बांध रहे हैं। इसकी शुरुआत की थी सर्वोदयी कार्यकर्ता मुरारी लाल ने। मुरारी लाल बताते हैं कि गांव के आसपास चार किलोमीटर के दायरे में पनपा मिश्रित वन इसी मुहिम का परिणाम है। वह बताते हैं कि एक समय ऐसा आ गया था कि ग्रामीणों को चारा-पत्ती के लिए भटकना पड़ रहा था। गांव के आसपास के प्राकृतिक स्रोतों में भी पानी की कमी होने लगी थी। ऐसे में उन्होंने ग्रामीणों को जागरूक करने का बीड़ा उठाया और शुरू हुआ रक्षा बंधन के दिन पेड़ों पर राखी बांधने का सिलसिला। शिक्षक मनोज तिवारी बताते हैं कि जंगल से चारा पत्ती निकालने के लिए बाकायदा ग्रामीणों की बैठक की जाती है। इस बैठक में दिन तय किया जाता है और सभी ग्रामीण उसी दिन चारा पत्ती लाते हैं।
मनोज बताते हैं कि इस जंगल में आग लगने की कोई घटना नहीं होती। वजह यह कि ग्रामीण खुद ही वन के रक्षक हैं। उन्होंने बताया कि पास के वन जब कभी सुलगते हैं ग्रामीण स्वयं टोलियां बनाकर आग बुझाने में जुट जाते हैं।
उत्तरकाशी में भी वृक्षों पर बांधे जाते हैं रक्षा सूत्र
गोपेश्वर की भांति उत्तरकाशी में रक्षा बंधन के दिन ग्रामीण वृक्षों पर रक्षा सूत्र बांध वनों की सुरक्षा का संकल्प लेते हैं। रक्षा सूत्र आंदोलन के प्रणेता पर्यावरणविद् सुरेश भाई बताते हैं कि टिहरी जिले के भिलंगना ब्लाक के खवाड़ा गांव कि निकट वन निगम ने अगस्त 1994 में जंगल में पेड़ों को काटने की तैयारी कर ली थी। इसकी भनक ग्रामीणों को लगी। ग्रामीणों ने चिपको आंदोलन में भाग ले चुके सुरेश भाई को इसकी सूचना दी। इस पर सुरेश भाई ने आसपास के गांवों की तीन सौ महिलाओं के साथ जंगल को बचान की मुहिम शुरू की।
इस आंदोलन के दौरान रक्षा बंधन का पर्व भी आया तो महिलाओं ने पेड़ों पर रक्षा सूत्र बांधे। इसके बाद यह रक्षा सूत्र आंदोलन बन गया। 1995 से 1997 के बीच चौरंगीखाल, हरून्ता, वयाली में वन कटान के विरोध में रक्षा सूत्र आंदोलन चलाया गया। अगस्त 1997 में हर्षिल के पास देवदार का जंगल कटना शुरू हुआ तो यहां भी प्रधान बसंती नेगी के नेतृत्व में रक्षा सूत्र आंदोलन चलाया गया। इस आंदोलन के कारण 121 वन कर्मी निलंबित हुए।
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