जानें चीन सीमा से सटे भारत के सबसे ऊंचे हर्बल गार्डन के बारे में, जहां 40 से ज्यादा दुर्लभ प्रजातियां हैं संरक्षित
उत्तराखंड के चमोली जिले में 11000 फीट की ऊंचाई पर भारत के सबसे अधिक ऊंचाई वाले हर्बल गार्डन में 40 से अधिक ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियों की प्रजातियिां संरक्षित की गई हैं जो उच्च हिमालयी अल्पाइन क्षेत्रों में पाई जाती हैं
By Edited By: Updated: Sun, 22 Aug 2021 04:50 PM (IST)
संवाद सहयोगी, गोपेश्वर(चमोली)। चीन सीमा पर स्थित माणा गांव (उत्तराखंड) में 11,000 फीट की ऊंचाई पर भारत के सबसे अधिक ऊंचाई वाले हर्बल गार्डन में 40 से अधिक ऐसी दुर्लभ जड़ी-बूटियों की प्रजातियिां संरक्षित की गई हैं, जो उच्च हिमालयी अल्पाइन क्षेत्रों में पाई जाती हैं। इनमें से कई प्रजातियां लुप्तप्राय होने की कगार पर भी हैं। शनिवार को वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने हर्बल गार्डन का उद्घाटन किया। माणा के वन पंचायत सरपंच पीतांबर दत्त मोल्फा ने कहा कि यह उनके गांव के लिए महत्वपूर्ण सौगात है। देश का अंतिम गांव होने के चलते यहां प्रतिवर्ष लाखों लोग आते है। अब पर्यटक और तीर्थयात्री जड़ी-बूटियों से भी रूबरू हो सकेंगे।
मुख्य वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी ने बताया कि हर्बल पार्क को चार वर्गों में बांटा गया है। पहले खंड में भगवान बदरीनाथ से जुड़ी पादपों की प्रजातियां शामिल हैं। इनमें बदरी तुलसी, बदरी बेर, बदरी वृक्ष और भोजपत्र का पवित्र वृक्ष शामिल है।
दूसरे खंड में अष्टवर्ग की प्रजातियां शामिल हैं। यह आठ जड़ी-बूटियों का समूह है, जो हिमालयी क्षेत्र में पाई जाती है। इनमें रिद्धि (हैबेनेरिया इंटरमीडिया), वृधि (हैबेनेरिया एडगेवर्थी), जीवक (मलैक्सिस एक्यूमिनाटा), ऋषभक (मैलैक्सिस मुस्सिफेरा), काकोली (फ्रिटिलारिया रायली), क्षीर काकोली (लिलियम पालीफाइलम), मैदा (प्लायगोनाटम सिरिफोलियम) और महामैदा (बहुभुज वर्टिसिलैटम), जो च्यवनप्राश के सबसे महत्वपूर्ण तत्व हैं। इनमें से चार जड़ी-बूटियां लिली परिवार की हैं और चार आर्किड परिवार की हैं। इनमें से काकोली, क्षीर काकोली और ऋषभक बेहद दुर्लभ हैं।
तीसरा खंड, सौसुरिया प्रजाति का है और इसमें ब्रह्मकमल (सौसुरिया ओबवल्लता) शामिल है, जो उत्तराखंड का राज्यपुष्प है। इसके अलावा अन्य तीन सौसुरिया प्रजातियां, फेकमकल (सौसुरिया सिम्पसनियाना), नीलकमल (सौसुरिया ग्रैमिनिफोलिया), कूट (सौसुरिया कोस्टस) भी यहां उगाई गई हैं।
चौथा खंड, अन्य विविध महत्वपूर्ण अल्पाइन प्रजातियों को शामिल करता है। इनमें अतिश, मीठाविश, वंककड़ी और कोरू शामिल हैं। यह औषधीय जड़ी-बूटियां हैं और इनकी बेहद डिमांड है। इसके अलावा थूनेर (टैक्सस वालिचिआना) के पेड़, जिनकी छाल का उपयोग कैंसररोधी दवाएं बनाने में किया जाता है, तानसेन और मेपल के पेड़ भी यहां उगाए गए हैं। उन्होंने बताया कि हर्बल पार्क बनने से लुप्तप्राय: हो चुकी प्रजातियों को संरक्षित किया जाएगा। भविष्य में पार्क में जड़ी-बूटी की अन्य प्रजातियों का भी यहां सरंक्षण होगा।
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