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Joshimath Sinking: बढ़ता जा रहा खतरा, ज्योर्तिमठ और नृसिंह धाम को भारी नुकसान, कुल देवता का मंदिर हुआ धराशायी

Joshimath Sinking जोशीमठ के सिंहधार में स्थानीय जनता के कुलदेवता का मंदिर भी धराशायी हो गया है। नगरपालिका के इस वार्ड में 56 मकानों में दरारें प्रशासन ने चिहिन्त की हैं। यहां पर भूधंसाव भी लगातार हो रहा है।

By Jagran NewsEdited By: Nirmala BohraUpdated: Sat, 07 Jan 2023 12:23 PM (IST)
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Joshimath Sinking: सिंहधार में स्थानीय जनता के कुलदेवता का मंदिर भी धराशायी हो गया है।

संवाद सूत्र जोशीमठ : Joshimath Sinking: जोशीमठ के सिंहधार वार्ड में भूधंसाव बढ़ता जा रहा है। शुक्रवार की सायं को सिंहधार में स्थानीय जनता के कुलदेवता का मंदिर भी धराशायी हो गया है।

इससे स्थानीय निवासियों में दहशत बढ़ गयी है। नगरपालिका के इस वार्ड में 56 मकानों में दरारें प्रशासन ने चिहिन्त की हैं। यहां पर भूधंसाव भी लगातार हो रहा है।

ज्योर्तिमठ और नृसिंह धाम मंदिर को भू धंसाव से भारी नुकसान : स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

ब्रह्मलीन शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बताया कि जोशीमठ में हो रहे भू धंसाव के कारण ज्योर्तिमठ और भगवान बदरीनाथ के शीतकालीन प्रवास स्थल को भारी नुकसान पहुंचा है।

आरोप लगाया कि सरकारों की अदूरदर्शिता और अनियोजित विकास कार्यों ने सनातन धर्म के शिखर स्थलों सहित पौराणिक नगरी जोशीमठ (ज्योर्तिमठ) के लाखों नागरिकों के भविष्य को खतरे में डाल दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले एक वर्ष से लगातार क्षेत्र में जमीन धंसने की शिकायतें मिल रही थी, लेकिन उन पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया। नतीजा सबके सामने है।

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उन्होंने मठ-मंदिर को तात्कालिक प्रभाव से अन्यत्र स्थानांतरित किए जाने की संभावना से इन्कार करते हुए कहा कि इस पर परिस्थिति का आकलन करने के बाद ही विचार किया जाएगा। बताया कि ज्योर्तिमठ और नृसिंह धाम मंदिर के साथ नगर में हुए नुकसान की जानकारी लेने वह शनिवार तड़के जोशीमठ रवाना हो रहे हैं।

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कनखल स्थित शंकराचार्य मठ में पत्रकारों से बातचीत की। इस दौरान उन्होंने पीड़ित-प्रभावित परिवारों को तत्काल सहायता देने की मांग की।

एक प्रश्न के उत्तर में उन्होंने त्रासदी को प्रकृति प्रदत्त होने की बात से इन्कार किया। उन्होंने आरोप लगाया कि यह बिना पर्यावरण प्रभाव का आकलन के किए गए अनियोजित विकास कार्यों का परिणाम प्रतीत हो रहा है।

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भूगर्भीय स्थिति के आधार पर उठाए जाएं कदम

धार्मिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जोशीमठ शहर में स्थिति आज अधिक विकट हो चली है। जोशीमठ में भूधंसाव, भूस्खलन का सिलसिला 1970 के दशक से चल रहा है। स्थिति बिगड़ रही है। जंगलों का कटान हुआ है। विभिन्न निर्माण कार्यों के दौरान पहाड़ कटान के लिए धमाके हुए हैं। कारणों की तह तक जाने के साथ ही दीर्घकालिक कदम उठाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही हम सबको भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।

-पद्मभूषण चंडी प्रसाद भट्ट, प्रसिद्ध पर्यावरणविद्

निर्माण से पहले पहाड़ की क्षमताओं का अध्ययन जरूरी

पौराणिक नगरी जोशीमठ में भूधंसाव की घटनाएं पर्यावरणीय, मानवीय व वैज्ञानिक दृष्टि से तो चिंताजनक हैं ही, यह पर्वतीय क्षेत्र में विकास योजनाओं में एग्रेसिव कंसट्रक्शन (भारी निर्माण) के दृष्टिकोण से भी चिंता का विषय हैं। ऐसा नहीं है कि भूधंसाव की यह घटनाएं अचानक सामने आई हैं। आज से दो-तीन दशक पहले भी जोशीमठ के अणमठ गांव में भूधंसाव की घटना सामने आई थी। प्रकृति लगातार हमें चेताती रही, लेकिन हमने हमेशा इस चेतावनी को नजरअंदाज किया। पहाड़ पर एग्रेसिव कंस्ट्रक्शन से पहाड़ के पर्यावरण पर पड़ने वाले असर का आकलन व वैज्ञानिक अध्ययन बेहद जरूरी है।

- पद्मभूषण डा. अनिल प्रकाश जोशी, प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं संस्थापक, हिमालयी पर्यावरण अध्ययन एवं संरक्षण संगठन (हेस्को)

पहले कारण तलाशे तब होगा समाधान

जोशीमठ के हालात पर पहले स्पष्ट कारण तलाश किए जाने चाहिए। तभी यह साफ हो सकता है कि समाधान क्या होना चाहिए। क्योंकि हिमालय के सभी गांव मलबे के ढेर पर ही बसे हैं। अंतर सिर्फ यह है कि कालांतर में मलबे के ढेर ठोस सतह का रूप ले चुके हैं। हिमालयी क्षेत्रों में किसी भी तरह के निर्माण की एक सीमा तय की जानी चाहिए। हिमालय अभी निर्माण की प्रक्रिया से गुजर रहा है और इसमें निरंतर भूगर्भीय हलचल हो रही है। ऐसे में पहाड़ों पर निर्माण को नियंत्रित किया जाना जरूरी है।

-डा. विक्रम गुप्ता,वरिष्ठ विज्ञानी वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, देहरादून

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