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Joshimath Sinking: भविष्‍य को लेकर चिंतित लोग, कहा- 'किस्मत कहां ले आई और कहां ले जाएगी, कुछ पता नहीं'

Joshimath Sinking जोशीमठ में घरों पर दरारें पड़ने का दौर लगातार जारी है। जमीन पर पड़ी दरारें भी लगातार चौड़ी हो रही हैं। यहां के लोगों को अपनी जीवनभर की पूंजी खोने और भविष्‍य की चिंता खाए जा रही है।

By Devendra rawatEdited By: Nirmala BohraUpdated: Mon, 09 Jan 2023 09:50 AM (IST)
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Joshimath Sinking: सिंहधार की बुजुर्ग भारती देवी मकान टूटने का दर्द भुलाए नहीं भुला पा रही हैं।

देवेंद्र रावत, जोशीमठ: Joshimath Sinking: वर्ष 2014 में एसएसबी से सेवानिवृत्त हुए देवेंद्र सिंह का सिंहधार में दोमंजिला मकान है, जिसमें उनका छह-सदस्यीय परिवार रह रहा था। लेकिन, भूधंसाव के चलते मकान में अचानक दरारें आने लगीं और उन्हें परिवार सहित नगर पालिका गेस्ट हाउस में बने राहत शिविर में शिफ्ट कर दिया गया। उनकी छह माह की पोती भी इस शिविर में है।

'सब-कुछ मटियामेट हो गया, पर किसे दोष दूं'

देवेंद्र कहते हैं, सब-कुछ मटियामेट हो गया, पर किसे दोष दूं। स्वयं को कोस रहा हूं, लेकिन हाथ में कुछ नहीं है। सोच रहा हूं शहर छोड़ दूं, पर स्वजन इसके लिए तैयार नहीं हैं।

सुबह उठकर अपने टूटते हुए मकान को देखता हूं तो आंखें भर आती हैं। अब तो निगाहें सरकार व प्रशासन पर टिकी हुई हैं। देखते हैं किस्मत कहां ले जाती है। फिलहाल तो सब-कुछ अस्त-व्यस्त है। समझ नहीं आ रहा, कैसे इसको व्यवस्थित करूं।

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यह महज देवेंद्र सिंह की पीड़ा नहीं है। राहत शिविर में रह रहा हर परिवार इसी मनोदशा से गुजर रहा है। तन शिविर में है और मन दरकते हुए मकान में। दिनोंदिन ठंड भी बढ़ रही है। अधिकतम तापमान 13 डिग्री सेल्सियस और न्यूनतम पांच डिग्री सेल्सियस के आसपास चल रहा है। ऐसे में राहत शिविर भला कहां राहत दे पाएगा।

'दोमंजिला पुश्तैनी मकान अब रहने लायक नहीं बचा'

नगर पालिका गेस्ट हाउस में ही पांच-सदस्यीय परिवार के साथ रह रहे दिगंबर सिंह का होटल माउंट व्यू के पीछे दोमंजिला पुश्तैनी मकान है, जो अब रहने लायक नहीं बचा। दिगंबर कहते हैं, जीवन में ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे, कभी सोचा तक नहीं था। पूरा परिवार एक ही कमरे में रह रहा है। आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारी कैसी मनोदशा होगी।

इसी राहत कैंप में शहर के बड़े होटल व्यवसायी ठाकुर सिंह राणा का छह-सदस्यीय परिवार भी रह रहा है। राणा मूलरूप से मलारी के रहने वाले हैं। उनका परिवार शीतकाल में जोशीमठ आ जाता है।

यहां कोतवाली के पास उनका दोमंजिला मकान है, जो कब ढह जाए, कहा नहीं जा सकता। राणा कहते हैं, पता नहीं कब तक शिविर में रहना पड़ेगा। अब यही चिंता खाए जा रही है कि दोबारा जिंदगी की शुरुआत कैसे होगी।

'मकान देखते ही देखते धंसने लगा'

सिंहधार निवासी गजेंद्र सिंह पंवार का पांच-सदस्यीय परिवार भी मकान के खतरे में जद में आने के बाद राहत शिविर के एक कमरे में रह रहा है। गजेंद्र कहते हैं कि उनका दोमंजिला मकान देखते ही देखते धंसने लगा।

अब उसमें दोबारा लौटना संभव नहीं है। समझ नहीं आ रहा इतना सामान कहां ले जाएं। सब छिन्न-भिन्न हो गया है। पता नहीं कब तक सरकारी मदद मिल पाएगी। जो-कुछ नष्ट हो गया, उसकी भरपाई शायद ही कभी हो पाएगी।

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शिविर में अपने परिवार के साथ रह रहीं बीना देवी सप्लाई इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। कोतवाली के पास उर्गम कालोनी में उनका मकान था, जो अब ढहने के कगार पर है। कहती हैं, न जाने किस बात की सजा मिल रही है।

'समझ नहीं आ रहा बच्चों के भविष्य का क्या होगा'

सिंहधार निवासी ऋषि देवी का मकान भी पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुका है। इस घर में वह अपने बेटे-बहू व पोतों को साथ रहती थीं। लेकिन, अब प्राथमिक विद्यालय सिंहधार के राहत कैंप में रह रही हैं। कहती हैं, समझ नहीं आ रहा बच्चों के भविष्य का क्या होगा, मवेशियों के लिए चारा-पत्ती की व्यवस्था कैसे होगी। इसी उधेड़बुन में रातों की नींद भी उड़ गई है।

इसी शिविर में रह रही भारती देवी कहती हैं कि यहां दो कमरों में दस-दस लोगों को रखा गया है। खाना खुद ही बना रहे हैं। यहां सबसे बड़ी दिक्कत शौचालय की है, लेकिन रहना तो है ही।

इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं। बस! अब तो यही कामना है कि जल्द से जल्द विस्थापन हो जाए। यही स्थिति मिलन केंद्र स्थित राहत शिविर की भी है। शौचालय की व्यवस्था न होने के कारण वहां रह रहे लोग परेशान हैं।

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