Uttarakhand: कुसुम के समर्पण से महका शिक्षा का मंदिर, क्यूआर कोड से चहकीं दीवारें; बच्चों में बढ़ा उत्साह
Uttarakhand चमोली के जोलाकोट की रहने वाली कुसुमलता वर्ष 1999 से अध्यापन कर रही हैं। अब तक की सेवा उन्होंने दुर्गम अति दुर्गम क्षेत्रों में ही दी है। वीणा में उनकी तैनाती वर्ष 2015 में हुई। कुसुमलता पोखरी विकासखंड के दूरस्थ क्षेत्र में स्थित इस विद्यालय में जब आईं तब यहां महज सात बच्चे पढ़ने आते थे। इससे विद्यालय पर बंदी की तलवार लटकी थी।
देवेंद्र रावत, गोपेश्वर। पेशे के प्रति समर्पण हो तो हालात मायने नहीं रखते। उत्तराखंड के सीमांत चमोली जिले में राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय वीणा की सहायक अध्यापिका कुसुमलता गडिया इसका उदाहरण हैं। कभी घटती छात्र संख्या के कारण बंदी की कगार पर पहुंच चुके इस विद्यालय की कुसुमलता ने अपने परिश्रम से तस्वीर बदल दी।
अध्यापिका कुसुमलता के नवाचारों से छात्र-छात्राओं की संख्या तो बढ़ी ही, शिक्षा में गुणात्मक भी सुधार आया। कुसुमलता के सेवाभाव को इसी से समझा जा सकता है कि वह अपने वेतन का 10 प्रतिशत हिस्सा विद्यालय पर खर्च करती हैं। इसी से यहां सुंदरीकरण और नवाचार किए जा रहे हैं। इसी को देखते हुए प्रदेश सरकार ने उनका चयन शैलेश मटियानी राज्य शैक्षिक पुरस्कार-2023 के लिए किया है। पूर्व में भी उन्हें राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कई सम्मान मिल चुके हैं।
1999 से पढ़ा रही हैं कुसुमलता
मूल रूप से थराली (चमोली) के जोलाकोट की रहने वाली कुसुमलता वर्ष 1999 से अध्यापन कर रही हैं। अब तक की सेवा उन्होंने दुर्गम, अति दुर्गम क्षेत्रों में ही दी है। वीणा में उनकी तैनाती वर्ष 2015 में हुई। कुसुमलता पोखरी विकासखंड के दूरस्थ क्षेत्र में स्थित इस विद्यालय में जब आईं, तब यहां महज सात बच्चे पढ़ने आते थे। इससे विद्यालय पर बंदी की तलवार लटकी थी। ऐसे में कुसुमलता ने घर-घर जाकर अभिभावकों से बच्चों को विद्यालय भेजने का आग्रह करना शुरू किया। उनका प्रयास रंग लाया और विद्यालय में छात्र संख्या बढ़ने लगी। आज यहां 28 छात्र-छात्राएं अध्ययनरत हैं।झंडे गाड़ रहे छात्र-छात्राएं
कुसुमलता के प्रयासों से विद्यालय शिक्षा के साथ अन्य गतिविधियों में भी पहचान बनाने में सफल हुआ है। पिछले कुछ वर्षों से निरंतर विद्यालय के छात्र-छात्राओं का राष्ट्रीय छात्रवृति परीक्षा में चयन हो रहा है। इस बार भी चार छात्र-छात्राओं को इस परीक्षा में सफलता मिली। इंस्पायर अवार्ड सहित विभिन्न प्रतियोगिताओं में भी विद्यालय के बच्चे झंडे गाड़ रहे हैं। इस बार कक्षा सात की छात्रा सानिया का चयन इंस्पायर अवार्ड के लिए किया गया है।
क्यूआर कोड से चहकीं दीवारें, खुला मस्तिष्क
नवाचार से किस तरह नए आयाम गढ़े जा सकते हैं, यह कुसुमलता से सीखा जाना चाहिए। अधिकांश विद्यालयों में दीवारों पर बने चित्र महज शोभा बनकर रह जाते हैं। उनसे संबंधित जानकारी से छात्र या तो अनभिज्ञ रह जाते हैं या उन तक बहुत कम जानकारी ही पहुंच पाती है।इससे इतर कुसुमलता ने कोरोना काल में दिन-रात इंटरनेट की खाक छानकर विद्यालय की दीवारों पर शिक्षण सामग्री से संबंधित चित्रों के साथ क्यूआर कोड भी बनवाए, जिसे मोबाइल पर गूगल लेंस से स्कैन करते ही चित्र से संबंधित इंटरनेट की दुनिया में मौजूद सारी सामग्री स्क्रीन पर आ जाती है।
इस विधा से बच्चों में न सिर्फ अध्ययन के प्रति रुचि जागृत हुई, बल्कि उन्हें तकनीक के सदुपयोग की सीख भी मिली। दावा है कि इस तरह का अभिनव प्रयोग करने वाला प्रदेश का यह पहला विद्यालय है।
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