बदरीनाथ धाम में बाबा केदार के दर्शन, स्कंद पुराण में कही गई ये बात
भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम में भी श्री आदि केदारेश्वर के रूप में बाबा केदार निवास करते हैं। स्कंद पुराण के केदारखंड में इसका उल्लेख है।
By Sunil NegiEdited By: Updated: Fri, 26 Jul 2019 03:38 PM (IST)
चमोली, रणजीत सिंह रावत। क्या आपको मालूम है कि भू-वैकुंठ बदरीनाथ धाम में भी श्री आदि केदारेश्वर के रूप में बाबा केदार निवास करते हैं। 'स्कंद पुराण' के 'केदारखंड' में उल्लेख है कि बदरीनाथ धाम पहले भगवान शिव का ही धाम था, लेकिन भगवान नारायण के यहां विराजमान होने से भगवान शिव केदारपुरी चले गए। हालांकि, श्री आदि केदारेश्वर के रूप में आज भी बदरीनाथ धाम में दर्शन देते हैं।
बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवनचंद्र उनियाल बताते हैं कि बदरीनाथ धाम में भगवान बदरी विशाल के दर्शनों से पूर्व भगवान आदि केदारेश्वर के दर्शन का विधान है। 'स्कंद पुराण' में कहा गया है कि जो यात्री केदारनाथ धाम नहीं जा सकते, वे बदरीनाथ में ही बाबा केदार के दर्शन कर सकते हैं। इन दिनों श्रावण मास के चलते आदि केदारेश्वर मंदिर में भी भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया जा रहा है। बदरीनाथ और आदि केदारेश्वर मंदिर के कपाट एक ही दिन खुलते हैं और बदरीनाथ के कपाट बंद होने से तीन दिन पूर्व आदि केदारेश्वर के कपाट बंद हो जाते हैं।
बदरीनाथ धाम ऐसे बना श्रीहरि का निवास
'स्कंद पुराण' में कथा आती है कि भगवान शिव माता पार्वती के साथ हमेशा नीलकंठ क्षेत्र व बामणी गांव के आसपास विचरण करते रहते थे। एक दिन उन्हें वहां किसी बालक के रोने की आवाज सुनाई दी, जो एक चट्टान पर बैठा हुआ था। बालक को देख माता पार्वती का हृदय पसीज गया और वह भगवान से उसे अपने साथ ले जाने की जिद करने लगीं। भगवान शिव ने लाख मना किया, लेकिन माता पार्वती नहीं मानीं। त्रिकालदर्शी भगवान शिव जानते थे की यह कोई साधारण बालक नहीं है, लेकिन माता पार्वती की जिद के आगे उन्हें विवश होना पड़ा।
माता पार्वती ने बदरीनाथ धाम स्थित तप्तकुंड में बालक को नहलाया और फिर स्वयं भी स्नान करने लगीं। इसी बीच बालक ने मौका देख बदरीनाथ मंदिर में प्रवेश कर अंदर से दरवाजा बंद कर दिया। मान्यता है कि भगवान विष्णु तिब्बत के थोलिंग मठ से बदरीनाथ पहुंचे थे और वहां शिव-पार्वती को देखकर बालक का रूप धारण कर लिया। बामणी गांव में जहां श्रीहरि ने बालक का रूप धरा, उस स्थान को आज 'लीलाढुंगी' कहते हैं। मान्यता है कि इस घटना के बाद भगवान शिव ने बदरीनाथ धाम को छोड़ दिया और ज्योतिर्लिंग के रूप में केदारनाथ धाम में विराजमान हो गए।
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