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उत्तराखंडः भारत-चीन सीमा से सटी नीती घाटी, जहां सीमा दर्शन के साथ होती है ऐतिहासिक-पौराणिक स्थलों की सैर भी

नीती घाटी के गांवों में भोटिया जनजाति के अलावा अनुसूचित जाति के लोग भी रहते हैं जो शीतकाल शुरू होते ही निचले स्थानों पर आ जाते हैं। शीतकाल में नीती घाटी बर्फ से लकदक रहती है। तब यहां सिर्फ सेना व आइटीबीपी रहती है। पर्यटक नीती गांव तक ग्रीष्मकाल में ही आवाजाही कर सकते हैं। हालांकि ग्रीष्मकाल में भी यहां ठंडक ही रहती है।

By Devendra rawat Edited By: Nitesh Srivastava Updated: Fri, 07 Jun 2024 07:45 PM (IST)
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सीमा दर्शन के साथ ऐतिहासिक-पौराणिक स्थलों की सैर भी

देवेंद्र रावत, जागरण, गोपेश्वर। उत्तराखंड में सीमा दर्शन यात्रा शुरू होने के बाद सीमांत चमोली जिले की नीती घाटी तेजी से नए डेस्टिनेशन के रूप में पर्यटन मानचित्र पर उभरी है।

जोशीमठ-मलारी-नीती हाईवे पर जोशीमठ से 88 किमी दूर नीती गांव पहुंचकर आप सीमा दर्शन के साथ पर्यटन का भी आनंद ले सकते हैं। समुद्रतल से 11,811 फीट की ऊंचाई पर स्थित नीती चीन सीमा से लगा देश का अंतिम गांव है। यहां जाने के लिए प्रशासन की अनुमति जरूरी है।

नीती घाटी के गांवों में भोटिया जनजाति के अलावा अनुसूचित जाति के लोग भी रहते हैं, जो शीतकाल शुरू होते ही निचले स्थानों पर आ जाते हैं। शीतकाल में नीती घाटी बर्फ से लकदक रहती है। तब यहां सिर्फ सेना व आइटीबीपी रहती है। पर्यटक नीती गांव तक ग्रीष्मकाल में ही आवाजाही कर सकते हैं।

हालांकि, ग्रीष्मकाल में भी यहां ठंडक ही रहती है। ऊंची पर्वत शृंखलाओं की तलहटी में धौली गंगा के किनारे-किनारे होने वाला घाटी का सफर पर्यटकों रोमांच की भी अनुभूति कराता है।

हनुमान ने तपोवन में किया था कालनेमी का वध

नीती घाटी की यात्रा पर्यटन नगरी जोशीमठ से शुरू होती है। यहां से 15 किमी की दूरी पर तपोवन नामक स्थान है। द्रोणागिरी पर्वत पर संजीवनी लेने जा रहे हनुमान को यहीं कालनेमी नामक राक्षस के साधु भेष में भ्रमित किया था। तब हनुमान को उसका वध करना पड़ा। तपोवन के पास गर्म पानी के स्रोत भी हैं।

घाटी की सैर और भविष्य बदरी के दर्शन

नीती घाटी में आप भगवान भविष्य बदरी के दर्शन भी कर सकते हैं। भविष्य बदरी धाम के लिए तपोवन से संपर्क मार्ग जाता है, जो कि 14 किमी लंबा है। मान्यता है कि कलयुग के अंत में जोशीमठ स्थित नृसिंह मंदिर में प्रतिष्ठित भगवान नृसिंह की मूर्ति की कलई टूटने पर विष्णु प्रयाग के पास जय-विजय नामक पर्वत आपस में मिल जाएंगे। इससे बदरीनाथ धाम की राह अवरुद्ध हो जाएगी। तब भगवान बदरी विशाल भविष्य बदरी धाम में ही अपने भक्तों को दर्शन देंगे।

चिपको आंदोलन की कर्मभूमि के दीदार

चमोली जिले का चीन सीमा से लगा नीती गांव। जागरण आर्काइव

तपोवन से आगे नीती हाईवे पर आठ किमी का सफर तय कर आप ऐतिहासिक चिपको आंदोलन की कर्मभूमि रैणी गांव का भी दीदार कर सकते हैं। वर्ष 1974 में यहां गौरा देवी के नेतृत्व में 27 महिलाओं ने जंगल को कटने से बचाने के लिए पेड़ों से चिपककर साइमंड कंपनी को बैरंग वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया था। ऋषिगंगा की तलहटी में रैणी गांव के पास महिलाओं के बचाए जंगल को देखने हर साल बड़ी संख्या में पर्यावरण प्रेमी यहां पहुंचते हैं। रैणी के पास ही लाता की नंदा का पौराणिक मंदिर भी है।

द्रोणागिरी में आज भी हनुमान से नाराज हैं लोग

रैणी से करीब 25 किमी दूर नीती हाईवे पर ही द्रोणागिरी व्यू प्वांइट है। यहां से हिमाच्छादित द्रोणागिरी पर्वत के दर्शन होते हैं। यह वही पर्वत है, जिसका एक हिस्सा उखाड़कर हनुमान लंका ले गए थे। द्रोणागिरी गांव जाने के लिए जुम्मा से रुइंग गांव तक सड़क है। इसके बाद आठ किमी का पैदल ट्रेक है। यहां पर्यटकों के लिए हनुमान की तस्वीर व हनुमानी सिंदूर ले जाना, हनुमान की पूजा करना, यहां तक कि हनुमान का नाम लेना भी वर्जित है। द्रोणागिरी के ईष्ट पर्वतराज हैं और हनुमान द्रोणागिरी पर्वत का हिस्सा ही उखाड़कर ले गए थे, इसलिए गांव के लोग आज भी उनसे नाराज हैं। द्रोणागिरी गांव में पर्यटकों के रुकने के लिए होम स्टे व सरकारी गेस्ट हाउस भी मौजूद हैं।

मलारी का प्रसिद्ध हीरामणि देवी मंदिर

जुम्मा से 25 किमी की दूरी पर सीमावर्ती क्षेत्र का सबसे बड़ा गांव मलारी पड़ता है। यहां हीरामणि देवी का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां पीढ़ियों पुराना अखरोट का वृक्ष भी है, जो विशालकाय होने के साथ ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। मान्यता है कि इस पेड़ के नीचे तिब्बत से भारत आने के दौरान दलाई लामा ने कई दिन विश्राम कर पूजा-अर्चना की थी।

बाबा बर्फानी परिवार के साथ देते हैं दर्शन

नीती गांव के पास टिम्मरसैंण महादेव की इसी गुफा में उभरते हैं बर्फ के शिवलिंग। जागरण आर्काइव

मलारी से 22 किमी दूर नीती गांव में बाबा बर्फानी परिवार के साथ दर्शन देते हैं। बाबा बफार्नी की गुफा तक जाने के लिए नीती गांव के पास हाईवे से डेढ़ किमी का सफर पैदल तय करना पड़ता है। इस गुफा में फरवरी के बाद बर्फ के पांच से अधिक शिवलिंग उभरते हैं और अप्रैल आखिर तक बने रहते हैं। यहां जाने के लिए भी प्रशासन की अनुमति जरूरी है।

खाने-ठहरने की पर्याप्त सुविधा

नीती घाटी के हाईवे से लगे सभी 13 गांवों में 500 रुपये से लेकर दो हजार रुपये तक में आसानी से कमरे उपलब्ध हो जाते हैं। खाने में आलू, फाफर, राजमा, कुटु आदि से बने स्थानीय व्यंजनों को प्राथमिकता दी जाती है। खाने की थाली सौ से दो सौ रुपये तक में मिल जाती है। यहां की खास चीज नमकीन चाय व सत्तू है। चाय घी के साथ स्थानीय जड़ी-बूटियों को मिलाकर तैयार की जाती है, जो ठंड में शरीर को गर्म रखती है। साथ ही स्फूर्ति का भी एहसास कराती है।

ऐसे पहुंचें

धौली गंगा के किनारे से गुजरता जोशीमठ-मलारी-नीती हाईवे का मनमोहक नजारा। जागरण आर्काइव

जोशीमठ नीती घाटी का बेस कैंप है। ऋषिकेश से जोशीमठ तक सार्वजनिक व निजी वाहन से पहुंचा जा सकता है। यहां से आगे जाने के लिए जोशीमठ में आसानी से बुकिंग पर वाहन उपलब्ध हो जाते हैं। पूरी घाटी सड़क सुविधा से जुड़ी है। हां! घाटी की सैर पर जा रहे हैं तो गर्म कपड़े अवश्य साथ ले जाएं। साथ ही जरूरी दवाइयां भी अपने पास रखें।