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चीन सीमा से लगे चमोली जिले के नीती गांव से निचले इलाकों की ओर पलायन करते भोटिया जनजाति के लोग

नीती घाटी के ग्रामीण शीतकाल की दस्तक के साथ ही चमोली जिले के छिनका नैग्वाड़ मैठाणा पुरसाड़ी आदि गांवों में आ जाते हैं। जबकि इस दौरान माणा घाटी के ग्रामीणों का ठौर बनते हैं घिंघराण सिरोखोमा सेंटुणा नरोंधार आदि गांव।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Fri, 30 Oct 2020 08:50 AM (IST)
चीन सीमा से लगे चमोली जिले के नीती गांव से निचले इलाकों की ओर पलायन करते भोटिया जनजाति के लोग।
देवेंद्र रावत, गोपेश्वर। माइग्रेशन चमोली जिले की नीती व माणा घाटी के जनजातीय ग्रामीणों की नियति है। ग्रीष्मकाल में वो मवेशियों के साथ चीन सीमा से लगी नीती व माणा घाटी के गांवों का रुख कर देते हैं और शीतकाल में निचले स्थानों की ओर लौट आते हैं। ठंड बढ़ने के साथ इन दिनों भी उनके निचले स्थानों पर लौटने का क्रम शुरू हो गया है। इससे नीती-माणा घाटी के गांवों में सन्नाटा पसरने लगा है।

अब शीतकाल के छह माह सरहद के साथ ही नीती व माणा घाटी के गांव भी सेना व भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आइटीबीपी) की निगरानी में रहेंगे। नीती व माणा घाटी के नीती, गमशाली, फरकिया, कैलाशपुर, बाम्पा, गुरगुटी, माणा व बामणी समेत 18 से अधिक गांवों में भोटिया जनजाति के लोग निवास करते हैं।

नीती घाटी के ग्रामीण शीतकाल की दस्तक के साथ ही चमोली जिले के छिनका, नैग्वाड़, मैठाणा, पुरसाड़ी आदि गांवों में आ जाते हैं। जबकि, इस दौरान माणा घाटी के ग्रामीणों का ठौर बनते हैं घिंघराण, सिरोखोमा, सेंटुणा, नरोंधार आदि गांव। दोनों घाटियों के ये गांव भारत-चीन सीमा से लगे हुए हैं, इसलिए यहां रहने वाले ग्रामीणों को द्वितीय रक्षा पंक्ति भी कहा जाता है।

सीमांत गांवों के ये ग्रामीण ऊनी वस्त्रों के निर्माण के अलावा सेब, राजमा, आलू, चौलाई आदि नकदी फसलों का उत्पादन कर अपनी आजीविका चलाते हैं। शीतकाल में निचले स्थानों पर आने के बाद ये पशुपालन व ऊनी वस्त्रों का निर्माण करते हैं। इन दिनों जब सीमांत क्षेत्र में बर्फबारी का दौर शुरू होने के कारण ठंड भी बढ़ने लगी है। ऐसे में ग्रामीण धीरे-धीरे निचले पड़ावों की ओर लौटने लगे हैं।

नीती निवासी प्रेम ¨सह फोनिया का परिवार भी भीमतला लौट चुका है। वह बताते हैं कि नीती व आसपास के गांवों में ठंड इस कदर बढ़ गई है कि दिन के वक्त भी बिना अलाव के वहां रहना संभव नहीं है। कुछ दिनों में ठंड और बढ़ने से पूरी घाटी शीत की चपेट में आ जाएगी। इसलिए अधिकतर परिवार निचले स्थानों पर लौट चुके हैं। बाम्पा के पूर्व प्रधान धर्मेंद्र पाल कहते हैं कि कोरोना संक्रमण के चलते इस बार घाटी में रहने को पर्याप्त समय नहीं मिल पाया।

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